दिशा-फ़्रेंज़ काफ़्का कहानी | Franz Kafka Story In Hindi
“बड़े दुख की बात है कि दुनिया दिन प्रतिदिन छोटी होती जा रही है” –चूहे ने कहा– “पहले यह इतनी बड़ी थी कि मुझे बहुत डर लगता था। मैं दौड़ता ही जा रहा था और जब आख़िर में मुझे अपने दाएँ-बाएँ दीवारें दिखाई देने लगीं थीं तो मुझे ख़ुशी हुई थी। परन्तु अब ये लम्बी-लम्बी दीवारें इतनी तेज़ी से एक दूसरे की तरफ बढ़ रही हैं कि मैं पलक झपकते ही उस अंतिम छोर पर आ पहुँचा हूँ, जहाँ कोने में एक चूहेदानी रखी है और मैं उसकी ओर बढ़ता जा रहा हूँ।”
“और यहाँ बस, दिशा-भर बदलने की ज़रूरत है ।” बिल्ली ने कहा, और उसे खा गई । (1)
-फ़्रेंज़ काफ़्का
अनुवाद – सुकेश साहनी
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