छोटे बच्चों की मजेदार कहानियां-Panchtantra Ki Kahaniyan

छोटे-बच्चों-की-मजेदार-कहानियां-Panchtantra-Ki-Kahaniyan-मज़ेदार-पंचतंत्र-की-कहानियाँ

Panchtantra Ki Kahaniyan: बच्चों के कोमल मन में बातों को गहराई तक पहुंचाने का तरीका कहानियों से बेहतर और क्या हो सकता है। खासकर, पंचतंत्र की कहानियां, जिसमें बेहतर सीख, संस्कार व जीवन में अच्छी चीजों की ओर बढ़ने की प्रेरणा मौजूद होती है।

पांच भागों में बंटी पंचतंत्र की कहानियां ही हैं, जो दोस्ती की अहमियत, व्यवहारिकता व नेतृत्व जैसी अहम बातों को सरल और आसान शब्दों में बच्चों तक पहुंचा कर उन पर गहरी छाप छोड़ जाती हैं।

शायद यही वजह है कि अक्सर बचपन में सुनी कहानियां और उनकी सीख जीवन के अहम पड़ाव में मार्ग दर्शक के रूप में भी काम कर जाती हैं।

पंचतंत्र की कथाओं को पांच विभागों में विभक्त किया जा सकता हैं.

  1. मित्र भेद ( मित्रों में मनमुटाव व अलगाव )
  2. मित्र सम्प्रति ( मित्र प्राप्ति एवं लाभ )
  3. काकोलूकीय  (कौवे और उल्लुओं की कथा )
  4. लब्ध ( हाथ लगी चीज का हाथ से निकल जाना )
  5. अपरीक्षित कारक ( जिसको परखा न गया हो उसे करने से पहले सावधान रहे )

Table of Contents

एकता में बल है – Panchatantra Ki Kahaniyan In Hindi

एकता में बल है – Panchatantra Ki Kahaniyan In Hindi

एक समय की बात हैं कि कबूतरों का एक दल आसमान में भोजन की तलाश में उडता हुआ जा रहा था। नीचे हरियाली नजर आने लगी तो भोजन मिलने की उम्मीद बनी। एक कबूतर ने संकेत किया “नीचे एक खेत में बहुत सारा दाना बिखरा पडा हैं। हम सबका पेट भर जाएगा।’

कबूतरों ने सूचना पाते ही उतरकर खेत में बिखरा डेन के पास जाने लगे। सारा दल नीचे उतरा और दाना चुनने लगा। वास्तव में वह दाना पक्षी पकडने वाले एक बहलिए ने बिखेर रखा था। ऊपर पेड पर तना था उसका जाल। जैसे ही कबूतर दल दाना चुगने लगा, जाल उन पर आ गिरा। सारे कबूतर फंस गए।

उन में से एक कबूतर बोला “ओह! यह तो हमें फंसाने के लिए फैलाया गया जाल था। भूख ने हमारी अक्ल पर पर्दा डाल दिया है। हमे सोचना चाहिए था कि इतना अन्न बिखरा होने का कोई मतलब हैं।”

दूसरा कबूतर रोने लगा “हम सब मारे जाएंगे।”

Panchatantra Short Stories

बाकी कबूतर तो हिम्मत हार बैठे थे। एक बुद्धिमान कबूतर ने कहा “सुनो, जाल मजबूत हैं यह ठीक हैं, पर इसमें इतनी भी शक्ति नहीं कि एकता की शक्ति को हरा सके। हम अपनी सारी शक्ति को जोडे तो मौत के मुंह में जाने से बच सकते हैं।”

युवा कबूतर फडफडाया “साफ-साफ बताओ तुम क्या कहना चाहते हो। जाल ने हमें तोड रखा हैं, शक्ति कैसे जोडे?”

बुद्धिमान कबूतर बोला “तुम सब चोंच से जाल को पकडो, फिर जब मैं फुर्र कहूं तो एक साथ जोर लगाकर उडना।”

सबने ऐसा ही किया। तभी जाल बिछाने वाला शिकारी आता नजर आया। जाल में कबूतर को फंसा देख उसकी आंखें चमकी। हाथ में पकडा डंडा उसने मजबूती से पकडा व जाल की ओर दौडा।

शिकारी जाल से कुछ ही दूर था कि वह बुद्धिमान कबूतर बोला “फुर्रर्रर्र!”

सारे कबूतर एक साथ जोर लगाकर उडे तो पूरा जाल हवा में ऊपर उठा और सारे कबूतर जाल को लेकर ही उडने लगे। कबूतरों को जाल सहित उडते देखकर शिकारी अवाक रह गया।

सच्चे मित्र ( हिरण , कबूतर और चूहा ) – Hindi panchatantra stories

सच्चे मित्र ( हिरण , कबूतर और चूहा ) – Hindi panchatantra stories

एक जंगल में एक कबूतर , चूहा और एक हिरण तीनों घनिष्ठ मित्र रहा करते थे। जंगल में बने सरोवर में पानी पीते फल खाते और वही सरोवर के आसपास घुमा फिरा करते थे।

एक समय की बात है 

जंगल में एक शिकारी , शिकार करने आया उसने हिरण को पकड़ने के लिए जाल बिछाया।

काफी प्रयत्न और मेहनत से शिकारी ने जाल को छिपाकर लगाने सफलता पा ली। शिकारी के जाल में  हिरण आसानी से फंस गया। इस पर कबूतर ने कहा घबराओ मत मित्र मैं देखता हूं शिकारी कहां है और कितनी दूर है मैं। मैं उसको रोकता हूं जब तक हमारा मित्र चूहा तुम्हारे जाल को कुतर देगा और तुम जल्दी से निकल जाओगे।

यही हुआ कबूतर ने शिकारी को ढूंढना शुरू किया।

वह दूर था कबूतर ने अपने प्राण को जोखिम में डालकर शिकारी के ऊपर वार करना शुरू कर दिया। कबूतर के प्रहार से  शिकारी को कुछ समझ में नहीं आया और वह परेशान होकर बचने लगा मगर कबूतर शिकारी को ज्यादा देर तक रोक नहीं पाया।

शिकारी ने जल्दी ही कबूतर पर काबू पा लिया और वह जाल की ओर आया।

यहां चूहे  ने जाल को लगभग काट दिया था अब हिरण आजाद होने वाला था , तभी शिकारी वहां पहुंचा इतने में कबूतर का एक झुंड वह जल्दी से आकर उस शिकारी के ऊपर ताबड़तोड़ आक्रमण कर दिया।

इस आक्रमण से  शिकारी घबरा गया।

थोड़ा सा समय उन कबूतर पर काबू पाने में लगा। इतने मे चूहे ने निडर भाव से जाल को कुतर दिया जिससे हिरण आजाद हो गया। अब क्या था हिरण और चूहा अपने अपने रास्ते भाग चलें। कुछ दूर भागे होंगे उन्होंने पीछे मुड़कर देखा तो उनका मित्र कबूतर शिकारी के चंगुल में आ गया था।

हिरण ने सोचा उसने मेरी जान बचाने के लिए अपनी जान खतरे में डाल दी।

इस पर हिरण धीरे – धीरे लंगड़ाकर चलने लगा शिकारी को ऐसा लगा कि हिरण घायल है  उसके पैर में चोट लगी है इसलिए वह धीरे धीरे चल रहा है , वह भाग नहीं सकता।

शिकारी ने झट से कबूतर को छोड़ दिया और हिरण की तरफ दौड़ा।

शिकारी को आता देख  कबूतर उड़ कर आकाश में चल पड़ा हिरण जो अभी नकल कर रहा था वह भी तेज दौड़ कर भाग गया और चूहा दौड़ कर बिल में घुस गया।

इस प्रकार तीनों दोस्तों की सूझबूझ ने एक दूसरे की रक्षा की।

नैतिक शिक्षा – आपसी सूझबुझ और समझदारी हो तो किसी भी मुसीबत का सामना किया जा सकता है।

पंचतंत्र की कहानी: कबूतर और चींटी | Panchatantra Story In Hindi

पंचतंत्र की कहानी: कबूतर और चींटी | Panchatantra Story In Hindi

गर्मियों का मौसम था, एक चींटी को बहुत तेज प्यासी लगी थी। वह पानी की खोज में यहां-वहां भटकने लगी। कुछ ही देर में वह एक नदी के पास पहुंच गई। वह नदी पानी से भरा था, लेकिन चींटी सीधे उस नदी में नहीं जा सकती थी।

इस वजह से वह एक छोटे से पत्थर पर चढ़ गई और वहीं से झुककर नदी का पानी पीने की कोशिश करने लगी। जैसे ही चींटी पानी पीने के लिए नीचे की तरफ झुकी वह नदी में गिर पड़ी।

उसी नदी के किनारे एक पेड़ पर बैठा कबूतर यह सब देख रहा था। उसे चींटी की हालत पर दया आ गई और उस कबूतर ने चींटी को बचाने की योजना बनाई। उसने जल्दी से पेड़ की डाली से एक पत्ता तोड़कर नदी के पानी में बह रही चींटी के पास फेंक दिया।

चींटी उस पत्ते पर चढ़कर बैठ गई और जब वह पत्ता नदी के किनारे पहुंचा, तो वह पत्ते से कूदकर जमीन पर आ गई। चींटी ने अपनी जान बचाने के लिए कबूतर को धन्यवाद किया और वहां से चली गई।

कुछ दिनों के बाद उसी नदी के किनारे एक शिकारी आया। उसने कबूतर के घोंसले के पास अपना जाल बिछा दिया। जाल पर दाने फैलाकर वह पास के एक झाड़ी में छिपकर बैठ गया। 

कबूतर शिकारी और उसके जाल को नहीं देख सका। उसने जमीन पर जब दाना देखा, तो वह उसे चुगने के लिए नीचे उतर गया और शिकारी के जाल में फंस गया।

उसी समय चींटी भी वहां आ गई थी। उसने कबूतर को शिकारी के जाल में फंसता हुआ देख लिया था। बेचारा कबूतर लाख प्रयास करने के बाद भी शिकारी के जाल से नहीं निकल पाया। इसके बाद शिकारी आया और जाल में फंसे कबूतर को उठाकर चलगे लगा। तभी चींटी ने कबूतर की जान बचाने का फैसला किया। चींटी दौड़ती हुई आई और उसने शिकारी के पैर में काटना शुरू कर दिया।

चींटी के काटने के कारण शिकारी को बहुत तेज दर्द होने लगा। उसने जाल को नीचे फेंक दिया और अपना पैर साफ करने लगा। इसी बीच मौका पाते ही कबूतर जाल से निकल गया और वह तेजी से उड़ गया।

इस तरह चींटी ने कबूतर की जान बचा ली।

कहानी से सीख – अगर कोई बिना किसी स्वार्थ के किसी की मदद करे तो उसका अच्छा परिणाम भी कभी न कभी जरूर मिलता है। अच्छे व्यक्ति के साथ हमेशा अच्छा ही होता है।

कौवे का शिकार – Panchatantra ki Kahaniyan in Hindi

कौवे का शिकार – Panchatantra ki Kahaniyan in Hindi

एक पहाड़ की ऊंची चोटी पर एक बाज रहता था, वह पेड़ के आसपास रहते हुए खरगोश को आसानी से पकड़ कर खा जाता था। पहाड़ की तराई में बरगद के पेड़ पर एक कौआ अपना घोंसला बनाकर रहता था। वह बाज को खरगोश की शिकार करते हुए देखता था।

उसकी कोशिश सदा यही रहती थी कि बिना मेहनत किए खाने को मिल जाए। जब भी खरगोश बाहर आते तो बाज ऊंची उड़ान भरते और एकाध खरगोश को उठाकर ले जाते, पर कौआ मजबूर होते।

एक दिन कौए ने सोचा, “वैसे तो ये चालाक खरगोश मेरे हाथ आएंगे नहीं, अगर इनका नर्म मांस खाना है तो मुझे भी बाज की तरह करना होगा। एकाएक झपट्टा मारकर पकड़ लूंगा।”

Panchatantra stories in hindi

दूसरे दिन कौए ने भी एक खरगोश को दबोचने की बात सोचकर ऊंची उड़ान भरी। फिर उसने खरगोश को पकड़ने के लिए बाज की तरह जोर से झपट्टा मारा। अब भला कौआ बाज का क्या मुकाबला करता। खरगोश ने उसे देख लिया और झट वहां से भागकर चट्टान के पीछे छिप गया।

कौआ अपनी हीं झोंक में उस चट्टान से जा टकराया। नतीजा, उसकी चोंच और गरदन टूट गईं और वह गंभीर रूप से घायल हो गया। अब कौए ने अपना सबक सिख लिया था।

पंचतंत्र की कहानी: बोलने वाली गुफा | बच्चों की नई कहानियां

बहुत पुरानी बात है, एक घने जंगल में बड़ा-सा शेर रहता था। उससे जंगल के सभी जानवर थर-थर कांपते थे। वह हर रोज जंगल के जानवरों का शिकार करता और अपना पेट भरता था।

पंचतंत्र की कहानी: बोलने वाली गुफा | बच्चों की नई कहानियां

एक दिन वह पूरा दिन जंगल में भटकता रहा, लेकिन उसे एक भी शिकार नहीं मिला। भटकते-भटकते शाम हो गई और भूख से उसकी हालत खराब हो चुकी थी। तभी उस शेर को एक गुफा दिखी। शेर ने सोचा कि क्यों न इस गुफा में बैठकर इसके मालिक का इंतजार किया जाए और जैसे ही वो आएगा, तो उसे मारकर वही अपनी भूख मिटा लेगा। यह सोचते ही शेर दौड़कर उस गुफा के अंदर जाकर बैठ गया।

वह गुफा एक सियार की थी, जो दोपहर में बाहर गया था। जब वह रात को अपनी गुफा में लौट रहा था, तो उसने गुफा के बाहर शेर के पंजों के निशान देखे। यह देखकर वह सतर्क हो गया। उसने जब ध्यान से निशानों को देखा, तो उसे समझ आया कि पंजे के निशान गुफा के अंदर जाने के हैं, लेकिन बाहर आने के नहीं हैं। अब उसे इस बात का विश्वास हो गया कि शेर गुफा के अंदर ही बैठा हुआ है।

फिर भी इस बात की पुष्टि करने के लिए सियार ने एक तरकीब निकाली। उसने गुफा के बाहर से ही आवाज लगाई, “अरी ओ गुफा! क्या बात है, आज तुमने मुझे आवाज नहीं लगाई। रोज तुम पुकारकर बुलाती हो, लेकिन आज बड़ी चुप हो। ऐसा क्या हुआ है?”

अंदर बैठे शेर ने सोचा, “हो सकता है यह गुफा रोज आवाज लगाकर इस सियार को बुलाती हो, लेकिन आज मेरे वजह से बोल नहीं रही है। कोई बात नहीं, आज मैं ही इसे पुकारता हूं।” यह सोचकर शेर ने जोर से आवाज लगाई, “आ जाओ मेरे प्रिय मित्र सियार। अंदर आ जाओ।”

इस आवाज को सुनते ही सियार को पता चल गया कि शेर अंदर ही बैठा है। वो तेजी से अपनी जान बचाकर वहां से भाग गया।

कहानी से सीख :

मुश्किल से मुश्किल परिस्थिति में भी बुद्धि से काम लिया जाए, तो उसका हल निकल सकता है।

शेर और चूहे की कहानी-Panchatantra stories in hindi

Sher aur chuha Ki Kahani: एक समय की बात है। एक जंगल में बहुत ही खतरनाक शेर रहता था। उसका नाम खड़क सिंह था। उससे जंगल के सारे जानवर बहुत ही डरते थे।

शेर और चूहे की कहानी-Sher aur chuha Ki Kahani

एक दिन की बात है, वह भर पेट भोजन करके एक पेड़ के नीचे बहुत ही गहरी नींद में सोया हुआ था। शेर जहां सोया हुआ था उससे कुछ ही दूरी पर एक चूहे का बिल भी था। शेर के खर्राटों से डर कर जब चूहा अपने बिल से बाहर निकला तो पहले उसे देखकर थोड़ा डरा लेकिन फिर वह सोचने लगा – “अभी तो यह गहरी नींद में खर्राटे भर रहा है इसलिए अभी तो यह मेरा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। चलो कुछ मस्ती ही कर लूं। वैसे भी इसके खर्राटों ने मेरी नींद खराब कर दी है।”

चूहा यह सोचकर सोते हुए शेर के ऊपर चढ़कर उछलने लगा। एक दो बार तो खड़क सिंह ने अपनी पूछ मार कर चूहे को भगा दिया। पर मस्ती करने के लिए चूहा फिर उसके नाक पर चढ़ गया।

तभी खड़क सिंह की आंख खुल जाती है और अपने आस-पास चूहे को मस्ती करता देख उसे बहुत क्रोध आता है और वह चूहे को अपने आगे के पंजे में जकड़ लेता है, और जोर से दहाड़ते हुए चूहे से बोलता है, “शैतान चूहे तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मेरी नींद खराब करने की। अब मैं तुम्हे नहीं छोडूंगा। मैं तुम्हे खा जाऊंगा।”

यह बात सूनकर चूहे की हालत खराब हो गई। उसका हाल बुरा हो गया और उसके पीसने छुटने लगे। वह कांपती आवाज़ में खड़क सिंह से बोलता है –

“आप इस जंगल के राजा है, महाराजा है। मुझे आप पागल समझकर ही क्षमा कर दे। मुझ जैसे छोटे से जानवर को मारकर अपकी शान नहीं बढ़ेगी। बल्कि सारे जंगल के जानवर यही बोलेगें कि महाराजा खड़क सिंह ने एक छोटे से चूहे को एक छोटी सी गलती के लिए मार डाला।”

चूहे की यह बात सुनकर शेर ने अपनी गरदन हिलाई लेकिन बोला कुछ नहीं।

फिर चूहे ने बोला – “मुझे जाने दीजिए महाराज। मुझे मत मारिये महाराज। मैं वादा करता हूं, कि आज आप मुझे छोड़ देगें तो जीवन में कभी न कभी आपकी सहायता जरूर करूंगा।”

चूहे की यह बात सुनकर शेर जोर-जोर से ठहाके मार कर हँसने लगा और फिर बोला – “तुम्हारे जैसा छोटा सा चूहा मेरी क्या मदद करेगा। तुम्हारी यह बात सुनकर मुझे इतनी हंसी आ रही है जितनी आज तक नहीं आई। खैर, मैं तुम्हे छोड़ता हूं। तुमने आज मुझे बहुत हंसाया है। इसी का इनाम तुम्हारी जिंदगी है।”

यह कहते हुए शेर ने चूहे को छोड़ दिया। चूहा गिरते-पड़ते वहां से भाग गया।

इस घटना के कई दिनों के बाद कुछ शिकारी शेर को पकड़ने के लिए जंगल में आए। उन्होंने शेर को पकड़ने के लिए एक मजबूत जाल बिछाई।

एक दिन शेर उसी रास्ते से गुजर रहा था, जिस रास्ते में जाल बिछा हुआ था और बदकिस्मती से शेर उसी जाल में फंस गया। शेर ने उस जाल से निकलने की बहुत कोशिश की लेकिन वह निकल ही नहीं पाया। शेर जोर-जोर से दहाड़ मारने लगा।

“कोई है इधर? क्या कोई मेरी मदद कर सकता है?”

तभी चूहा वही से गुजर रहा था। वह शेर की आवाज़ सुनकर तुंरत शेर के पास आ जाता है और बोलता है-

‘ये कैसे हो गया महाराज? आप कैसे इस जाल में फंस गये। पर आप चिंता न करें मैं अभी अपने पैने दांतों से इस जाल को कुतर डालूंगा। आपको डरने की जरूरत नहीं। यह कहकर चूहे ने जल्दी-जल्दी उस जाल को कुतरना शुरू कर दिया। जल्दी ही शेर जाल से मुक्त हो गया।‘

फिर चूहा शेर से बोला – “उस दिन आप मुझ पर हंस रहे थे न महाराज, मैंने आपसे कहा था न किसी न किसी दिन मैं आपकी सहायता जरूर करूंगा। अब आपको यह तो समझ आ गया होगा कि एक छोटा और कमजोर प्राणी भी आपकी मदद कर सकता है।”

इस पर शेर बोला – “हाँ, दोस्त आज से तुम मेरे खास दोस्त हो। आज तुमने मुझे जीवन का पाठ पढ़ाया है।”

शिक्षा (Moral of the Story) : इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें किसी को भी छोटा और कमजोर नहीं समझना नहीं चाहिए। ईश्वर के बनाये हरेक प्राणी का अपना महत्व है। जो काम सुई कर सकती है वो काम तलवार नहीं कर सकती और जो तलवार कर सकती है वो सुई नहीं। तो बच्चों दोनों का अपना.अपना महत्व है।

दो मित्र-हाथी और खरगोश की कहानी ( Short panchatantra stories in hindi with moral )

दो मित्र-हाथी और खरगोश की कहानी ( Short panchatantra stories in hindi with moral )

एक जंगल में नंदू नामक एक हाथी रहता था और चिंटू खरगोश उसका दोस्त था। दोनों घनिष्ठ मित्र थे , वह जंगल में एक साथ घूमा करते थे। उन दोनों की दोस्ती के चर्चाएं होती थी।

एक दिन की बात है

मौसम अच्छा था , सुहावना था। हरी – हरी घास में चारों तरफ लहरा रही थी।

पेड़ों पर कोमल – कोमल पत्तियां आई हुई थी।

खरगोश और हाथी ने खूब पेट भर कर के खाना खाया। जब दोना  विश्राम कर रहे थे तो उन्हें खेल खेलने का मन किया। दोनों ने प्लान बनाया और खेल खेलने के लिए तैयार हो गए।

मगर पुराने खेल नहीं खेलना था , नए खेल खेलना था।

इस पर नंदू ने बोला हम ऐसा खेल खेलेंगे जो पुराने खेल से अच्छा हो।

वह खेल ऐसे होगा

पहले मैं बैठ जाऊंगा और तुम मेरे ऊपर से उछल कर दूसरी पार कूदोगे  फिर तुम बैठोगे मैं तुम्हारे ऊपर से कूद कर दूसरी तरफ निकलूंगा।

मगर इस खेल  में एक – दूसरे को स्पर्श  नहीं होना है।

बिना स्पर्श किये  दूसरी तरफ कूदना होगा।

चिंटू खरगोश डर रहा था किंतु मित्र का मन था इसलिए वह खेल खेलने को राजी हो गया।

पहले हाथी जमीन पर बैठ गया खरगोश दौड़ कर आया और हाथी के ऊपर से कूदकर दूसरी तरफ बिना स्पर्श किए कूद गया। अब हाथी की बारी थी खरगोश नीचे बैठा मगर डर के मारे यह सोच रहा था कि कहीं मेरे ऊपर कूद गया तो मेरा तो कचूमर निकल जाएगा।

मेरे तो प्राण निकल जाएंगे इस पर हाथी दौड़ता हुआ आया।

हाथी के  दौड़ने से दाएं बाएं लगे नारियल के पेड़ हिलने लगे और ऊपर से नारियल टूटकर दोनों पर गिरे।

हाथी कुछ समझा नहीं वहां से भाग गया।

खरगोश ने भी अपनी जान बचाकर वहां से भाग गया।

खरगोश भागता हुआ सोच रहा था मित्र हाथी से अच्छा यह नारियल है।

अभी मित्र मेरे ऊपर गिरता तो मेरा कचूमर निकल जाता।

नैतिक शिक्षा – सच्चा मित्र सभी को बनाना चाहिए मगर ऐसा खेल नहीं खेलना चाहिए जिससे हानि हो।

ब्राह्मण, बकरी और तीन ठग | बच्चों की बाल कहानियां

किसी गांव में शम्भुदयाल नाम का एक प्रसिद्ध ब्राह्मण रहता था। वह बहुत विद्वान था और लोग आए दिन उस अपने घर में भोजन के लिए निमंत्रण देते रहते थे। एक दिन ब्राह्मण एक सेठ जी के यहां से भोजन करके आ रहा था। लौटते समय सेठ ने ब्राह्मण को एक बकरी उपहार में दी, जिससे ब्राह्मण रोजाना उसका दूध पी सकें।

ब्राह्मण बकरी को कंधे पर रखकर घर की ओर जा रहा था। रास्ते में तीन ठगों ने ब्राह्मण और उसकी बकरी को देख लिया और ब्राह्मण को लूटने का षड्यंत्र रचा। वे ठग थोड़ी-थोड़ी दूरी पर जाकर खड़े हो गए।

जैसे ही ब्राह्मण पहले ठग के पास से गुजरा, तो ठग जोर-जोर से हंसने लगा। ब्राह्मण ने इसका कारण पूछा तो ठग ने कहा, ‘महाराज मैं पहली बार देख रहा हूं कि एक ब्राह्मण देवता अपने कंधे के ऊपर गधे को लेकर जा रहे हैं।’ ब्राह्मण को उसकी बात सुनकर गुस्सा आ गया और ठग को भला-बुरा कहते हुए आगे बढ़ गया।

थोड़ी ही दूरी पर ब्राह्मण को दूसरा ठग मिला। ठग ने गंभीर स्वर में पूछा, ‘हे ब्राह्मण महाराज, क्या इस गधे के पैर में चोट लगी है, जो आप इसे अपने कंधे पर रखकर ले जा रहे हैं।’ ब्राह्मण उसकी बात सुनकर सोच में पड़ गया और ठग से कहा, ‘तुम्हे दिखाई नहीं देता है कि यह बकरी है, गधा नहीं। ठग ने कहा, ‘महाराज शायद आपको किसी ने बेवकूफ बना दिया है, बकरी की जगह गधा देकर।’ ब्राह्मण ने उसकी बात सुनी और सोचता हुआ आगे बढ़ गया।

कुछ दूरी पर ही उसे तीसरा ठग दिखाई दिया। तीसरे ठग ने ब्राह्मण को देखते ही कहा, ‘महाराज आप क्यों इतनी तकलीफ उठा रहे हैं, आप कहें, तो मैं इसे आपके घर तक छोड़ कर आ जाता हूं, मुझे आपका आशीर्वाद और पुण्य दोनों मिल जाएंगे।’ ठग की बात सुनकर ब्राह्मण खुश हो गया और बकरी को उसके कंधे पर रख दिया।

थोड़ी दूर जाने पर तीसरे ठग ने पूछा, ‘महाराज आप इस गधे को कहां से लेकर आ रहें हैं।’ ब्राह्मण ने उसकी बात सुनी और कहा, ‘भले मानस यह गधा नहीं बकरी है।’ ठग ने जोर देकर कहा, ‘हे ब्राह्मण देवता, लगता है किसी ने आपके साथ छल किया है और यह गधा दे दिया।’

ब्राह्मण ने सोचा कि रास्ते में जो भी मिल रहा है बस एक ही बात कह रहा है। तब उसने ठग से कहा, ‘एक काम करो, यह गधा मैं तुम्हें दान करता हूं, तुम ही इसे रख लो।’ ठग ने ब्राह्मण की बात सुनी और बकरी को लेकर अपने साथियों के पास आ गया। फिर तीनों ठगों ने बाजार में उस बकरी को बेचकर अच्छी कमाई की और ब्राह्मण ने उनकी बात मानकर अपना नुकसान कर लिया।

कहानी से सीख : किसी भी झूठ को अगर कई बार बोला जाए, तो वो सच लगने लगता है, इसलिए हमेशा अपने दिमाग का उपयोग करें और सोच-विचार कर ही किसी पर विश्वास करें।

हाथी और चिड़िया का झगड़ा – Panchtantra Ki Kahaniyan

हाथी और चिड़िया का झगड़ा – Panchtantra Ki Kahaniyan

साहनपुर जंगल में बहुत सारे हाथी रहने के लिए आये क्योंकि वहां बहुत सारा पानी उपलब्ध था। पहले सिर्फ दस हाथी रहते थे, लेकिन अब उनकी संख्या लगभग पचास पर पहुंच गयी थी। जंगल के नदी किनारे पेड पर एक चिडिया व चिडे का छोटा-सा सुखी परिवार रहता था। चिडिया अंडो पर बैठी नन्हें-नन्हें प्यारे बच्चों के निकलने के सुनहरे सपने देखती रहती थी।

एक दिन क्रूर हाथी गरजता, चिंघाडता पेडों को तोडता-मरोडता उसी ओर आया। देखते ही देखते उसने चिडिया के घोंसले वाला पेड भी तोड डाला। घोंसला नीचे आ गिरा। अंडे टूट गए और ऊपर से हाथी का पैर उस पर पडा।

चिडिया और चिडा चीखने चिल्लाने के सिवा और कुछ न कर सके। हाथी के जाने के बाद चिडिया छाती पीट-पीटकर रोने लगी। तभी वहां एक तोता आया। वह चिड़ियों का बहुत अच्छा दोस्त था। तोते ने उनके रोने का कारण पूछा तो चिडिया ने अपनी सारी कहानी कह डाली। तोता बोला “इस प्रकार गम में डूबे रहने से कुछ नहीं होगा। उस हाथी को सबक सिखाने के लिए हमे कुछ करना होगा।”

चिडिया ने निराशा दिखाई “हमें छोटे-मोटे जीव उस बलशाली हाथी से कैसे टक्कर ले सकते हैं?” तोते ने समझाया “एक और एक मिलकर ग्यारह बनते हैं। हम अपनी शक्तियां जोडेंगे।”

Short panchatantra stories in hindi with moral

“कैसे?” चिडिया ने पूछा। “मेरा एक मित्र सोरु हैं। हमें उससे सलाह लेना चाहिए।” चिडिया और तोता सोरु से मिलने गए। सोरु बोला “यह तो बहुत बुरा हुआ। मेरा एक मेंढक मित्र हैं आओ, उससे सहायता मांगे।”

अब तीनों उस सरोवर के किनारे पहुंचे, जहां वह मेढक रहता था। सोरु ने सारी समस्या बताई। मेंढक बोला “आप लोग धैर्य से जरा यहीं मेरी प्रतीक्षा करें। मैं गहरे पाने में बैठकर सोचता हूं।”

ऐसा कहकर मेंढक जल में कूद गया। आधे घंटे बाद वह पानी से बाहर आया तो उसकी आंखे चमक रही थी। वह बोला “दोस्तो! उस हत्यारे हाथी को नष्ट करने की मेरे दिमाग में एक बडी अच्छी योजना आई हैं। उसमें सभी का योगदान होगा।”

मेंढक ने जैसे ही अपनी योजना बताई,सब खुशी से उछल पडे। योजना सचमुच ही अदभुत थी। मेंढक ने दोबारा बारी-बारी सबको अपना-अपना रोल समझाया।

कुछ ही दूर वह हाथी तोडफोड मचाकर व पेट भरकर खाकर मस्ती में खडा झूम रहा था। पहला काम सोरु का था। वह हाथी के कानों के पास जाकर मधुर राग गुंजाने लगा। राग सुनकर हाथी मस्त होकर आंखें बंद करके झूमने लगा।

Panchtantra Kahani In Hindi

तभी तोते ने अपना काम कर दिखाया। वह अपने कई दोस्तों के साथ आया और अपनी नुकीली चोंच से उसने तेजी से हाथी की दोनों आंखें बींध डाली। हाथी की आंखे फूट गईं। वह तड़पता हुआ अंधा होकर इधर-उधर भागने लगा।

जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा था, हाथी का क्रोध बढता जा रहा था। आंखों से नजर न आने के कारण ठोकरों और टक्करों से शरीर जख्मी होता जा रहा था। जख्म उसे और चिल्लाने पर मजबूर कर रहे थे।

चिडिया कॄतज्ञ स्वर में मेढक से बोली “बहिया, मैं आजीवन तुम्हारी आभारी रहूंगी। तुमने मेरी इतनी सहायता कर दी।” मेढक ने कहा “आभार मानने की जरुरत नहीं। मित्र ही मित्रों के काम आते हैं।” एक तो आंखों में जलन और ऊपर से चिल्लाते-चिंघाडते हाथी का गला सूख गया। उसे तेज प्यास लगने लगी। अब उसे एक ही चीज की तलाश थी, पानी।

मेढक ने अपने बहुत से मित्रों को इकट्ठा किया और उन्हें ले जाकर दूर बहुत बडे गड्ढे के किनारे बैठकर टर्राने के लिए कहा। सारे मेढक टर्राने लगे। मेढक की टर्राहट सुनकर हाथी के कान खडे हो गए। वह यह जानता ता कि मेढक जल स्त्रोत के निकट ही वास करते हैं। वह उसी दिशा में चल पडा।

टर्राहट और तेज होती जा रही थी। प्यासा हाथी और तेज भागने लगा। जैसे ही हाथी गड्ढे के निकट पहुंचा, मेढकों ने पूरा जोर लगाकर टर्राना शुरु किया। हाथी आगे बढा और विशाल पत्थर की तरह गड्ढे में गिर पडा, जहां उसके प्राण पखेरु उडते देर न लगे इस प्रकार उस अहंकार में डूबे हाथी का अंत हुआ।

रंगा सियार-Short panchatantra stories in hindi with moral

रंगा सियार-Short panchatantra stories in hindi with moral

एक दिन जंगल में रहने वाला चंडरव नाम का सियार भूख से बेहाल, भूख मिटाने के लिए नगर में आ पहुंचा। वह कुत्तों से घिर गया। वे उसे नोचने लगे। बचकर भागते-भागते वह एक धोबी के मकान में घुस गया और नील की कड़ाही में छपाक से गिर पड़ा। कुत्तों के जाने के बाद वह भी बाहर निकला और जंगल में भाग गया। जब जंगल के जानवरों ने उसे देखा तो भयभीत हो गए और बोले, “अरे! यह कौन-सा जानवर हमारे बीच आ गया है?”

तब चंडरव ने सबको बुलाकर कहा, “मित्रों! मुझसे डरते क्यों हो? ईश्वर ने एक नए अवतार में मुझे तुम्हारा राजा बनाकर भेजा है।” सबने उसकी बात पर विश्वास कर लिया। सियार ने शेर को मंत्री, लोमड़ी को स्त्री और बाघ को नगर-रक्षक बना दिया।

प्रतिदिन शेर, लोमड़ी और बाघ जानवरों का शिकार करते और भोजन के रूप में उसे सियार को परोसते। वह आराम की जिन्दगी जीने लगा और धीरे-धीरे अपनी असलियत भूल गया।

एक दिन उसकी सभा चल रही थी तभी पास से सियारों के एक दल ने हूकना शुरू किया। उनकी हूक सुनकर चंडरव खुशी से पागल हो गया और वह भी चिल्लाया हू, हू।

उसकी हूक ने उसकी पोल खोल दी। शेर आदि सभी जानवर समझ गए कि यह ईश्वर का भेजा कोई नया अवतार नहीं है… सियार है, इसने सबको मूर्ख बनाया है। सियार ने पोल खुलती देख भागने की चेष्टा की पर शेर ने झपटकर पकड़ लिया और उसे मार दिया।

शिक्षा (Moral of Panchatantra): सच्चाई सामने आ ही जाती है।

शरारती बंदर – Panchtantra ki kahani

शरारती बंदर – Panchtantra ki kahani

एक समय की बात है , एक जंगल में एक शरारती बंदर रहा करता था। वह बन्दर सभी को पेड़ों  से फल फेक – फेक करके मारा करता था। गर्मी का मौसम था पेड़ों पर खूब ढ़ेर सारे आम लगे हुए थे।

बंदर सभी पेड़ों पर घूम-घूमकर आमो का रस चूसता और खूब मजे करता।

नीचे आने – जाने वाले जानवरों पर वह ऊपर से बैठे-बैठे आम फेंक कर मारता  और खूब हंसता।

एक समय  हाथी उधर से गुजर रहा था।

बंदर जो पेड़ पर बैठकर आम खा रहा था , वह अपने शरारती दिमाग से लाचार था।

बन्दर ने  हाथी पर आम तोड़कर मारा।एक  आम  हाथी के कान पर लगी और एक आम उसके आंख पर लगी। इससे हाथी को गुस्सा आया। उसने अपना सूंढ़  ऊपर उठाकर बंदर को गुस्से में लपेट लिया और कहा कि मैं आज तुझे मार डालूंगा तू सब को परेशान करता है। इस पर बंदर ने अपने कान पकड़ लिए और माफी मांगी।

अब से मैं किसी को परेशान नहीं करूंगा और किसी को शिकायत का मौका नहीं दूंगा।

बंदर के बार बार माफी मांगने और रोने पर हाथी को दया आ गई उसने बंदर को छोड़ दिया।

कुछ समय बाद दोनों घनिष्ट मित्र हो गए।

बंदर अब अपने मित्र को फल तोड़ – तोड़ कर खिलाता और दोनों मित्र पूरे जंगल में घूमते थे।

नैतिक शिक्षा – किसी को परेशान नहीं करना चाहिए उसका परिणाम बुरा ही होता है।

चतुर खरगोश-पंचतंत्र की कहानियाँ with Moral

चतुर खरगोश-पंचतंत्र की कहानियाँ with Moral

Panchatantra short Stories

दो खरगोश अपने माँ के साथ एक सूंदर से गांव के हरे भरे मैदान में रहते थे। उन दो खरगोश के नाम थे चिंटू और मिंटू। चिंटू बहुत ही नटखट था, और पिंटू बिलकुल उसके अपोजिट बहुत ही शांति पूर्वे था।

वे अपनी माँ के साथ एक पेड़ की जड़ के नीचे रहते थे। ” सुन मेरे बच्चों, तुम खेलने के लिए निचे  खेत में जा सकते हो पर ध्यान रखना की तुम रतनलाल के खेत में नहीं जाओगे ” उन खरगोश के माँ ने उन्हें सतर्क कर दिया।

“आपके पिता की वहाँ एक दुर्घटना हुई थी। रतनलाल बहुत ही खतरनाक आदमी है, उनसे दूर रहने में ही हमारी समझदारी है” माँ ने उन्हें हर बार की तरह चेतावनी दी।

“अब चलो और शरारत में न पड़ें। मैं बाहर जा रही हूँ ” ये सब बोल के खरगोश की माँ अपना बैग और छाता लेकर घर से बाहर निकली।

मिंटू जो एक होशियार और समझदार खरगोश था उसने बाजुवाले खेत में जाने का फैसला किया। चिंटू ने मिंटू के साथ जाने से इंकार कर दिया, और वह दौड़के रतनलाल के बगीचे में चला गया। रतनलाल का बगीचा बहुत ही बड़ा, सूंदर और फल सब्जी से भरा हुआ था।

रतनलाल के बगीचे में आसानी से खाने को मिलता था।

चिंटू खरगोश ने बहुत ही सब्जी और फल खाया। बहुत ही खाने के बाद चिंटू के पेट में दर्द होने लगा। फिर भी वह  उसकी परवा न करता लालच के कारन खाता ही चला गया।

चिंटू गाजर खाते वक्त आगे चला गया। तभी उसे रतनलाल पौधों को पानी देता दिख गया।

वह सावधानी से पीछे जाने लगा। तभी रतनलाल की नज़र चिंटू खरगोश पर पड़ी। रतनलाल पानी का पाइप वही छोड़के चिंटू के पीछे गुस्से से भागने लगा।

पंचतंत्र की कहानियां

खरगोश अब बहुत ही डरा हुआ था। अब वह पूरे बगीचे में भाग रहा था। डर के कारन वह गेट के पीछे का रास्ता भी भूल गया था और डर के मारे भागते वक्त उसने अपने दोनों जुते भी खो दिए थे।

बिना जुते से वह और जोर से भागने लगा। चिंटू भगते हुए के रतनलाल की गेराज में जाके छूप गया।

खरगोश बहुत देर से दिखाई न देने के कारन  रतनलाल गुस्से से अंदर जाके छड़ी लेकर आया। रतनलाल बहुत ही निश्चित था कि वह खरगोश अपने ही बगीचे में छुपा हुआ है। वह बगीचे में ध्यान से देखने लगा। तभी चिंटू गलती से छींका, आवाज़ आने से रतनलाल मूड़ गया और आवाज़ की तरफ भागने लगा।

रतनलाल को आते देखकर चिंटू ने जल्दी से गेराज की खिड़की से कूद गया, जो की बहुत ही छोटा था, जिससे रतनलाल नहीं जा सका। अब रतनलाल बहुत ही थक गया था। उसकी उम्र के कारण रतनलाल को सांस लेने में तकलीफ हो रही थी, और उसका शरीर थोड़ा बहुत कांप भी रहा था।

रतनलाल गेट पे पहरा दे कर वही पे बैठ गया। चिंटू को दूसरे गेट से बहार निकल के लिए रास्ता खुला था, पर उसे जाने के लिए रतनलाल के पास से जाना पड़ता था। पर अब उसके पास एक ही मौका था रतनलाल के पास से  गुजर जाना और चिंटू ने वह मौका नहीं छोड़ा। रतनलाल को बड़ी मुश्किल से चकमा देकर चिंटू रोते हुए बगीचे से बहार निकल गया।

आज चिंटू खरगोश ने अपनी जान बचा ली थी और सबसे महत्वपूर्ण सबक सीख लिया था।

धूर्त बिल्ली का न्याय की कहानी | Children Story In Hindi

धूर्त बिल्ली का न्याय की कहानी | Children Story In Hindi

बहुत पुरानी बात है, एक जंगल में एक बहुत बड़े पेड़ के तने में एक खोल था। उस खोल में कपिंजल नाम का एक तीतर रहा करता था। हर रोज वह खाना ढूंढने खेतों में जाया करता था और शाम तक लौट आता था।

एक दिन खाना ढूंढते-ढूंढते कपिंजल अपने दोस्तों के साथ दूर किसी खेत में निकल गया और शाम को नहीं लौटा। जब कई दिनों तक तीतर वापस नहीं आया, तो उसके खोल को एक खरगोश ने अपना घर बना लिया और वहीं रहने लगा।

लगभग दो से तीन हफ्तों बाद तीतर वापस आया। खा-खाकर वह बहुत मोटा हो गया था और लंबे सफर के कारण बहुत थक भी गया था। लौट कर उसने देखा कि उसके घर में खरगोश रह रहा है। यह देख कर उसे बहुत गुस्सा आ गया और उसने झल्लाकर खरगोश से कहा, “ये मेरा घर है। निकलो यहां से।”

तीतर को इस तरह चिल्लाते हुए देख खरगोश को भी गुस्सा आ गया और उसने कहा, “कैसा घर? कौन सा घर? जंगल का नियम है कि जो जहां रह रहा है, वही उसका घर है। तुम यहां रहते थे, लेकिन अब यहां मैं रहता हूं और इसलिए यह मेरा घर है।”

इस तरह दोनों के बीच बहस शुरू हो गई। तीतर बार-बार खरगोश को घर से निकलने के लिए कह रहा था और खरगोश अपनी जगह से टस से मस नहीं हो रहा था। तब तीतर ने कहा कि इस बात का फैसला हम किसी तीसरे को करने देते हैं।

उन दोनों की इस लड़ाई को दूर से एक बिल्ली देख रही थी। उसने सोचा कि अगर फैसले के लिए ये दोनों मेरे पास आ जाएं, तो मुझे इन्हें खाने का एक अच्छा अवसर मिल जाएगा।

यह सोच कर वह पेड़ के नीचे ध्यान मुद्रा में बैठ गई और जोर-जोर से ज्ञान की बातें करने लगी। उसकी बातों को सुनकर तीतर और खरगोश ने बोला कि यह कोई ज्ञानी लगती है और हमें फैसले के लिए इसके ही पास जाना चाहिए।

उन दोनों ने दूर से बिल्ली से कहा, “बिल्ली मौसी, तुम समझदार लगती हो। हमारी मदद करो और जो भी दोषी होगा, उसे तुम खा लेना।”

उनकी बात सुनकर बिल्ली ने कहा, “अब मैंने हिंसा का रास्ता छोड़ दिया है, लेकिन मैं तुम्हारी मदद जरूर करूंगी। समस्या यह है कि मैं अब बूढ़ी हो गई हूं और इतने दूर से मुझे कुछ सुनाई नहीं दे रहा है। क्या तुम दोनों मेरे पास आ सकते हो?”

उन दोनों ने बिल्ली की बात पर भरोसा कर लिया और उसके पास चले गए। जैसे ही वो उसके पास गए, बिल्ली ने तुरंत पंजा मारा और एक ही झपट्टे में दोनों को मार डाला।

कहानी से सीख: इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें झगड़ा नहीं करना चाहिए और अगर झगड़ा हो भी जाए, तो किसी तीसरे को बीच में आने नहीं देना चाहिए।

कौवे की चालाकी- Kids stories in hindi

कौवे की चालाकी- Kids stories in hindi

कौवों का राजा मेघवर्ण एक बहुत बड़े बरगद के पेड़ पर सैंकड़ों कौवों के साथ रहता था। उलूकराज अपने पूरे वंश दल के साथ पास की पहाड़ी की गुफा में रहते थे। पुराने वैर के कारण अपने मार्ग में आने वाले प्रत्येक कौवे को वे मार दिया करते थे।

स्थिरजीवी मेघवर्ण का सबसे पुराना मंत्री था। उल्लुओं को अपने मार्ग से हटाने के लिए उसने एक युक्ति बनाई। उसने मेघवर्ण से कहा, “तुम मुझसे लड़कर, मुझे लहूलुहान करने के बाद इसी वृक्ष के नीचे फेंककर स्वयं सपरिवार पर्वत पर चले जाओ। मैं उल्लुओं का विश्वासपात्र बनकर अवसर पाकर सबका नाश कर दूंगा।”

मेघवर्ण ने ऐसा ही किया। स्थिरजीवी को अपनी चोंचों के प्रहार से घायल कर वहीं फेंक दिया और स्वयं सभी कौवों के साथ पर्वत पर चला गया। यह समाचार तुरंत उलूकराज के सामने लाया गया।

वह रोते तथा कांपते हुए बोला, “राजन्! मैं मेघवर्ण का मुख्यमंत्री स्थिरजीवी हूं। मैंने आपकी थोड़ी तारीफ क्या कर दी मुझे पीटकर राज्य से निष्कासित कर दिया। अब मैं आपको मेघपूर्ण के सारे राज बताऊंगा जिससे आप सारे कौवों का नाश कर पाएं।” उल्लूकराज का मंत्री रक्ताक्ष बीच में बात काटकर तुरंत बोला, “स्वामी! इसपर विश्वास मत कीजिए। यह हमारा शत्रु है इसे मारने में ही भलाई है।” शेष मंत्री इस बात से सहमत न हुए। एक बुजुर्ग उल्लू ने सलाह दी, “मुझे लगता है यह कौआ बड़े काम का साबित होगा।”

इन तर्कों से सहमत होकर उलूकराज ने स्थिरजीवी को नहीं मारा।

थोड़ा ठीक होने पर स्थिरजीवी ने उलूकराज से कहा, “महाराज, मैं आत्मदाह करके उल्लू का जन्म लेना चाहता हूं जिससे मेघवर्ण से बदला ले सकूं। आप मुझे लकड़ियां इक्ट्ठी करने की अनुमति दीजिए।”

रक्ताक्ष स्थिरजीवी की सच्चाई जानता था। उसने विरोध किया पर किसी ने उसकी बात न सुनी। वह अपने कुछ उल्लू साथियों के साथ वहां से दूसरी जगह चला गया।

गुफा के मुंह पर स्थिरजीवी ने ढेर सारी लकड़ियां इक्ट्ठी करीं और फिर मेघवर्ण के पास जाकर बोला, “मशाल लेकर दिन में आना। गुफा के द्वार पर इकट्ठी लकड़ियों पर डाल देना।”

स्थिरजीवी ने जैसा कहा था कौवों ने वैसा ही किया। गुफा के दरवाजे पर लकड़ियां जल उठीं और सभी उल्लू भीतर ही फंस कर भस्म हो गए। मेघवर्ण अपने अनुयायियों के साथ वापस बरगद के पेड़ पर आ गया और सूखपूर्वक रहने लगा।

शिक्षा (Panchatantra Story’s Moral): शत्रु की शक्ति को समझकर ही युद्ध करना चाहिए।

एक और एक ग्यारह- Moral stories in hindi

एक और एक ग्यारह- Moral stories in hindi

एक जंगल में एक वृक्ष की शाखा पर चिड़ा-चिड़ी का जोड़ा रहता था। चिड़ी ने शाखा पर बने घोंसले में अंडे दिए थे। एक दिन एक मतवाला हाथी उसी वृक्ष की छाया में विश्राम करने लगा। जाने से पहले पत्तियां खाने के लिए उसने अपनी सूंड से वह शाखा तोड़ दी जिस पर घोंसला था। अंडे जमीन पर गिरकर टूट गए। चिड़िया टूटे अंडे देखकर बहुत दुःखी हुई।

उनका विलाप देखकर उनका मित्र कठफोड़वा वहां आकर उन्हें समझाने लगा। चिड़िया ने कहा, “यदि तू हमारा सच्चा मित्र है तो हाथी को सबक सिखाने में हमारी सहायता कर।”

कठफोड़वे ने कहा, “यह इतना आसान नहीं है। एक चालाक मक्खी मेरी मित्र है। चलो उसके पास चलें।”

उन्होंने मक्खी के पास जाकर अपनी पूरी कहानी सुनाई और उससे मदद मांगी। मक्खी ने उन्हें मदद का आश्वासन दिया और अपने मित्र मेढक के पास ले गई। उसे भी पूरी कहानी सुनाई गई।

सारी बात सुनकर मेढक ने युक्ति बताई। उसने कहा – जैसा बताता हूं वैसा करो। पहले मक्खी हाथी के कान में वीणा सदृश मीठे स्वर में आलाप करे। हाथी मस्त होकर अपनी आंख बंद कर लेगा। उसी समय कठफोड़वा चोंच मारकर आंखें फोड़ देगा। अंध हाथी पानी की खोज में भागेगा। मैं दलदल में बैठकर आवाज करूंगा। मेरी आवाज सुनकर हाथी पानी-पीने आएगा और दलदल में फस जाएगा। यह उसकी हार होगी।

सभी इस युक्ति पर सहमत हो गए। मक्खी ने आलाप किया, कठफोड़वे ने आंख फोड़ी, मेढ़क ने पानी की ओर बुलाया और हाथी दलदल में फसकर और फंसता चला गया। चिड़िया का बदला पूरा हो गया था। उन्होंने अपने मित्रों को धन्यवाद दिया किया और नया घोंसला बनाने में जुट गई।

शिक्षा (Panchatantra Story’s Moral): साथ में बहुत शक्ति होती है। बड़े से बड़ा काम भी आसान हो जाता है। (1)

Panchatantra Stories in Hindi PDF

Panchtantra ki kahaniyan Hindi Book

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