15 बेस्ट बच्चों की मनोरंजक कहानियाँ | Story for kids in hindi

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Story for kids in hindi:

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दो सांपछोटे बच्चों की मनोरंजक कहानियाँ

दो सांप- छोटे बच्चों की मनोरंजक कहानियाँ

एक समय की बात है। राजा अपने इकलोौते बेटे से बहुत प्यार करताथा। राजकुमार को बहुत अच्छा भोजन दिया जाता। उसकी पूरी देखरेख कोजाती। फिर भी वह हमेशा बीमार ही रहता था क्योंकि उसके पेट में एकसांप था। वह दिन-प्रति-दिन कमजोर होता जा रहा था। किसी भी हकीम को उसकी बीमारी का पता नहीं चल रहा था। अंत में एक दिन दुखी हो कर राजकुमार महल छोड कर चला गया। वह दूसरे नगर में भीख मांग कर अपना पेट भरने लगा। राजा उसे लाख चाहने पर भी खोज नहीं सका।

उस राज्य के राजा की दो बेटियां थीं। उसकी बड़ी बेटी कहती थी कि उसके जीवन में सारी खुशी उसके पिता के कारण थी जबकि छोटी बेटी का कहना था कि प्रत्येक इंसान को उसके कर्मों के कारण ही सुख या दुख मिलता है। यह सुन कर राजा को बहुत क्रोध आया। उसे अपनी चापलूसी पसंद थी और बड़ी ऐसा करके अपने पिता को खुश रखती थी। उसने अपने मंत्रियों से कहा कि वे किसी अजनबी को खोजें और उसकी छोटी बेटी का विवाह उससे करवा दें।

मंत्रियों ने उस अजनबी भिखारी को मंदिरके बाहर भीख मांगते देखा, तो उससे ही राजा की बेटी की शादी करवा दी। राजकुमारी को क्या, किसी को यह नहीं पता था कि राजकुमारी की शादी एकराजकुमार से ही हो रही हे।वह उस भिखारी के साथ प्यार से रहने लगी। 

एक दिन उन्होंने तय किया कि वे किसी दूसरे शहर में रहने चले जाएंगे। जब राजकुमार चलते-चलते थक गया तो वह एक पेड़ के नीचेआराम करने लगा ओर राजकुमारी दोनों के लिए कहीं से भोजन का इंतजाम करने गई।

जब वह वापस आई तो उसने देखा कि उसका पति सो रहा था औरउसके खुले हुए मुंह से एक सांप बाहर निकल रहा था। तभी वहीं बने बिल से एक और सांप बाहर आ गया। वे थोडी ताजी हवा और धूप पाने के लिए अपने-अपने घरों से बाहर आए थे।

दोनों सांपों ने एक-दूसरे को देखा तो, लेकिन एक-दूसरे को पसंद नहीं किया। बिल वाले सांप ने कहा, “मैंने देखा कि तुम इस इंसान के मुंह से बाहर आ रहे थे। तुम इस तरह उसके पेट में रहते हुए उसे कष्ट क्‍यों दे रहे हो? अगर किसी ने उसे जीरे ओर सरसों के तेल से बनी दवा पिला दी तो तुम एक मिनट में मारे जाओगे।”

“अच्छा! अगर किसी ने बिल पर गर्म तेल या गर्म पानी डाल दिया तो तुम भी नहीं बचोगे। तब उन्हें सोने से भरे वे बर्तन मिल जाएंगे, जिनकी

रखवाली के लिए तुम इस पेड के नीचे बिल में रहते हो,” पेट में रहने वाले सांप ने पहले सांप की पोल खोलते हुए कहा।

राजकुमारी को सांपों की भाषा आती थी। वह जान गई कि कोन-सी दवा से उसके पति की बीमारी ठीक हो सकती है और किस तरह वे धनी बन सकते हें। उसने झट से अपने पति को वह दवा बना कर पिलाई, जिससे उसके पति का इलाज हो गया अर्थात्‌ उसके पेट में रहने वाला सांप मारागया। अब राजकुमार पूर्णरूप से स्वस्थ हो गया था।

राजकुमारी ने सोचा, ‘शरीर स्वस्थ हो, लेकिन गांठ में यदि कुछ न हो; तो भी लोग निरादर करते हैं, यहां तक कि अपने भी साथ छोड़ जाते हें।’

इसके बाद उसने बहुत सारा पानी गर्म किया और पेड़ के नीचे बने बिल पर डाल दिया। इससे बिल में रहने वाला सांप मारा गया और पेड़ की खोखल से सचमुच सोने से भरे दो बर्तन निकले।

वह अपने पति के साथ बहुत धनवान बन गई। इसके बाद राजकुमार ने उसे अपना असली परिचय दिया। वे अपने राज्य लौट आए और राजकुमार को नगर का राजा बना दिया गया। राजकुमारी ने अपने कथन को सिद्ध कर दिया था।

मूर्ख बंदर कहानी (story in hindi for kids)

मूर्ख बंदर कहानी  (story in hindi for kids)

एक घना जंगल था वहां बहुत से जंगली जानवर रहते थे उनमें से एक था अलसी सुस्त बंदर। वह इतना बड़ा कामचोर था ना तो वो अपने भोजन की तलाश में जाता ना हीं अपना काम खुद करता ।

एक दिन की बात है बंदर को लगती है भूख तो वह अपने लिए खाना ढूंढ लेना छोड़ इस उम्मीद में रहता है कि कोई उसे खाना लाकर दे दे। इतने ही देर में एक हाथी वहां से केला खाते हुए गुजरता रहता है। तो बंदर हाथी को केला खाते हुए देख लेता है तब उसके पास चला जाता है जाके उसका केला छीन कर खा लेते हैं। जिस पर हाथी को गुस्सा आ जाता है हाथी बंदर से कहता है।

हाथी : ओए बंदर तुझे शर्म नहीं आती मेरा भोजन छीन के खाते हो एक तो भोजन नहीं ढूंढते हो और ऊपर से मेरा भोजन छीन कर खा लेते हो वह भी मेरे ही सामने।

बंदर : अरे दोस्त क्यों गुस्सा हो रहे हो आगे से मैं तुम्हारा भोजन नहीं छीनूंगा।

यह कहकर बंदर वहां से चला जाता है। थोड़ी दूर जाने के बाद बंदर को एक खरगोश दिखता है जो गाजर खाते रहता है , वह उसके पास जाके गाजर छीन लेता है

खरगोश : तुम कितने बेशर्म जानवरों मैं इतनी मुश्किल से एक गाजर ढूंढ के लाया था और वह भी तुम मुझसे छीन ली खुद तो अपना भोजन लाते नहीं हो और दूसरों का मांग मांग कर यह छीन के खाते हो।

यह बात सुनकर बंदर वहां से चला गया । अगले दिन शेर जो कि कुछ फलों को छुपा कर रख रहा था यह सब बंदर देख लेता है वाह शेर के पास जाता है और उसके फल चुरा लेता है यह देख कर शेर को बहुत गुस्सा आता है।

शेर : तुम्हारी इतनी हिम्मत तुमने जंगल के राजा यानी मेरे फल चुराए और उसे खा लिया तुम इसी जंगल के जानवर हो इसलिए तुम्हें छोड़ रहा हूं वरना तुम कल का सूरज नहीं देख पाते। चले जा यहां से और मुझे दोबारा दिखाई मत देना।

शेर की आवाज सुनकर बंदर दुखी हो गया और वहां से चला जाता है जाते-जाते दोपहर हो जाती है फिर उसको एक आम का पेड़ दिखता है जिसमें पक्के पक्के रसीले नारंगी रंग के आम फले हुए रहते हैं।

बंदर : अरे वाह कितना बड़ा पेड़ है रसीले आम वह भी इतने सारे हैं अगर मैं इन सब को तोड़ दूं तो मुझे काफी दिन तक भोजन की तलाश करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी। और मैं किसी का भोजन में नहीं चुरा लूंगा तो मुझे किसी की डांट भी नहीं खानी पड़ेगी। इतने में बंदर एक कुल्हाड़ी लेकर पेड़ की एक्टरनी के ऊपर बैठकर उस टहनी को काटने लगता है जिधर वहां खुद बैठा रहता है इतने में वहां खरगोश आता है।

खरगोश  : अरे दोस्त यह क्या कर रहे हो जिस डाल में बैठे हो उसे ही काट रहे हो तुम तो गिर जाओगे तुम्हें चोट लग जाएगी।

बंदर : चला जा यहां से तू इतना छुटकू सा है और मेरे को चला सिखाने चल भाग यहां से।

तभी वहां हाथी भी आ जाता है।

हाथी : अरे दोस्त यह क्या कर रहे हो ऐसे में तो तुम गिर जाओगे।बंदर : यह सारे आम मेरे भोजन है मैं अपना भोजन खुद ढूंढ रहा हूं तुम्हें इससे क्या।

थोड़ी देर में शेर भी वहां आ जाता है और बंदर को समझाने की कोशिश करता है लेकिन बंदर शेर की भी बात नहीं मानता है और उसे भी जाने को कहता है लेकिन इतने में ही वह डाल कट के नीचे गिर जाती है बंदर को चोट लगती है तब शेर कहता है।

शेर : देखा बेवकूफ हम तुम्हें इतनी देर से यही तो समझाने की कोशिश कर रहे थे तुम गिर जाओगे और तुम्हें चोट लगेगी भोजन मेहनत से मिलता है बेवकूफी से नहीं मूर्ख बंदर।

उस दिन से बंदर को खुद की बेवकूफी का एहसास हुआ और वह खुद अपने लिए भोजन ढूंढ शुरू किया

कहानी से सीख : दोस्तों आज की नानी की कहानी पढ़ने के बाद हमें यह कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि किसी मूर्ख को समझाना खुद का सर पत्थर में मारने समान है। मुझे उम्मीद है की आपको मूर्ख बंदर की कहानी पसंद आई होगी ।

चलिए अब हम अपनी तीसरी कहानी इन हिंदी , बच्चो के लिए कहानियां पढ़ते है ।

चुहिया की शादीपंचतंत्र की कहानियाँ with Moral

चुहिया की शादी - पंचतंत्र की कहानियाँ with Moral

गंगा नदी के किनारे एक बहुत ही सुंदर आश्रम था। साधु आश्रम में पूजा-पाठ व ध्यान आदि के बीच अपना समय बिताते। वे वहां जंगली फलों तथा कंद-मूल से अपना पेट भरते और बहुत ही सादगी के साथ वहां रहते। 

आश्रम के कुलपति हर रोज नहाने व पूजा करने के लिए नदी किनारे जाते थे। एक दिन जब वे पूजा कर रहे थे तो एक चुहिया आकाश में उड़ रहे बाज के पंजों से छूट कर उनकी गोद में आ गिरी। कुलपति ने नन्ही चुहिया को एक पत्ते में लपेट लिया और आश्रम में ले आए। 

उनके परिवार में कोई संतान नहीं थी। उन्होंने चुहिया को कन्या के रूप में बदल दिया। उस दिन से वह उनकी बेटी बन कर उनके साथ रहने लगी। वे उसे अपनी इकलौती संतान की तरह लाड-प्यार देते थे। 

इसी तरह कई वर्ष बीत गए। नन्ही-सी बच्ची अब बड़ी हो गई थी। अब साधु और उनकी पत्नी को अपनी बेटी की शादी की चिंता सताने लगी। वे उसके लिए योग्य वर की तलाश करने लगे। वे चाहते थे कि उनकी बेटी को योग्य वर मिले। 

उन्हें लगा कि सूर्य उनकी बेटी के लिए सबसे अच्छा वर रहेगा। सूर्यदेव को बुलाया गया और साधु ने उन्हें बताया कि वे क्या चाहते हैं। कुलपति की बात सुन कर सूर्यदेव ने तो हामी भर दी परंतु उनकी बेटी नहीं मानी। उसने कहा कि सूरज में बहुत तेज है। वह सूरज के पास जाएगी तो जल जाएगी। 

सूर्यदेव ने यह सलाह दी कि बादल उनसे भी ताकतवर हैं। उनके आते ही सूर्य को भी छिपना पड़ता है इसलिए साधु की बेटी के लिए बादल ही उपयुक्त वर होगा। साधु ने मेघ को बुला कर अपनी बेटी से शादी करने को कहा। 

मेघ ने हामी भर दी परंतु साधु की बिटिया नहीं मानी और बोली, “पिताजी! यह बहुत ही ठंडा, गीला और काले रंग का है। मैं इससे शादी नहीं कर सकती। मुझे इससे बेहतर दूल्हा चाहिए।” 

बादल ने वायु का नाम लिया। उसने कहा कि वायु अधिक ताकतवर है क्योंकि उसके आते ही बादल किसी भी दिशा में चलने को मजबूर हो जाते हैं। 

वायु भी साधु की बिटिया से विवाह करने के लिए मान गया, पर एक बार फिर से साधु की बिटिया ने आपत्ति जतायी और बोली, “नहीं पिता जी। यह तो हमेशा बहती रहती है। मुझे तो थोड़ा स्थिर रहने वाला पति चाहिए।” 

वायु ने कहा, “पर्वत मुझसे ताकतवर है। वह मेरा भी रास्ता रोक देता है। वही आपकी बेटी के लिए उपयुक्त वर होगा। इसका विवाह उससे ही कर दें।” 

यह सुन कर साधु ने पर्वत को बुलाना चाहा। पर्वत के कुछ कहने से पहले ही जिद्दी लड़की बोली, “अरे यह तो बहुत कठोर है। यह बिल्कुल नहीं हिलता।” बेचारे साधु ने पर्वत से कहा कि वही कोई उपयुक्त वर बताए। 

पर्वत को जब राजकुमारी के उन तर्कों की जानकारी मिली, जिनके कारण उसने तेजस्वी सूर्य को अपना पति नहीं स्वीकार किया था, तो वह समझ गया कि राजकुमारी क्योंकि असल में चुहिया है, इसलिए उसके लिए चूहा ही पति के रूप में सही रहेगा। 

पर्वत ने साधु को सलाह दी, “चूहा ठीक रहेगा। वह तो मुझमें भी छेद कर देता है। वह मुझसे भी ताकतवर है।” कुलपति के बुलाने से चूहों का राजा वहां आया। वह भी उनकी बेटी से विवाह के लिए मान गया। जब साधु ने अपनी बेटी से इस बारे में पूछा तो वह बहुत प्रसन्न हुई। उसे लग रहा था कि एक चूहा ही उसके लिए उपयुक्त वर हो सकता है। 

इस तरह साधु ने अपनी बेटी को फिर से चुहिया बना दिया और उसका विवाह चूहों के राजा से करवा दिया। मनुष्य बनने के बाद भी वह बच्ची अपने दिल से एक चुहिया ही थी इसलिए उसे चूहा ही पसंद आया। साधु और उसकी पत्नी ने चैन की सांस ली। आखिरकार उनकी बेटी को अपने लिए उचित वर मिल ही गया था।

अलमारी में छुपा है कुछ खुफिया! शॉर्ट मनोरंजक कहानियाँ

अलमारी में छुपा है कुछ खुफिया! शॉर्ट मनोरंजक कहानियाँ

Story for kids in hindi

यह कहानी है एक गांव की, जिसमें एक खुशहाल परिवार रहता था । परिवार में एक बूढ़े दादा जी और उनकी पत्नी, और उनके दो बेटे पुष्पम और नीलेश रहते थे ।

बड़े बेटे पुष्पम की शादी हो चुकी थी और उसके दो बच्चे भी थे । छोटे बेटे नीलेश की शादी अभी नहीं हुई थी । वह अभी नौकरी कर रहा था ।

यह परिवार काफी खुशहाल था । जो हमेशा हंसता खेलता रहता था । हर त्यौहार खुशी से मनाते थे, एक दूसरे की मदद किया करते थे और हमेशा एक दूसरे के साथ रहते थे ।

दादी जी की तबीयत हमेशा खराब रहती थी । जिसके कारण उनका ध्यान रखना पड़ता था । जो हमेशा दादाजी ही करते थे । दादा जी दादी जी से बहुत प्यार करते थे ।

दादाजी हमेशा दादी जी के पास ही रहते थे । उनसे हमेशा प्यार से बातें किया करते थे । दादा जी कहते थे कि – हम दोनों ने अपनी जिंदगी काफी अच्छी ही जी है ।

इतने अच्छे से हमने अपनी जिंदगी जी है जिसकी कोई तुलना नहीं की जा सकती । इतना अच्छा परिवार मिला है, जिसमें इतनी सारी खुशियां है । यह सब देख कर मुझे बहुत अच्छा लगता है ।

दादी जी भी हमेशा दादाजी की हर बात पर हां कहती थी । दोनों यह भी कहते थे कि अब अगर जान चली भी जाए तो कोई गम नहीं होगा । लेकिन मैं भगवान से यही दुआ करता हूं कि, हम दोनों की जान एक साथ ही जाए ।

दोनों अपनी दुनिया में खुश रहते थे । लेकिन एक दिन दादी जी की तबीयत बहुत ज्यादा खराब हो जाती है । डॉक्टर साहब को घर में बुलाया जाता है । डॉक्टर साहब दादी जी को बड़े हॉस्पिटल लेकर जाने की सलाह देते हैं ।

पूरे घर वाले ऐसा ही करते हैं मैं दादी जी को लेकर हॉस्पिटल लेकर जाते हैं । परंतु हॉस्पिटल में दादी जी को आधा दिन ही हुआ था, की बुरी खबर आती है की अब दादी जी इस दुनिया में नहीं रही!

यह सुनकर पूरे परिवार को जैसे बहुत बड़ा झटका लगता है । लेकिन सबसे ज्यादा दुख दादाजी को था । और यह उनके चेहरे पर साफ दिखाई दे रहा था ।

कई दिन बीत जाते हैं दादा जी अब भी दादी जी के जाने के गम से नहीं उबरे थे । उन्होंने खाना पीना जैसे त्याग ही दिया था । उनको भूख कम लगती थी । खाना भी ठीक से नहीं खाते थे ।

हंसना भी जैसे उन्होंने छोड़ ही दिया था! किसी से बातचीत भी नहीं करते थे । बस अकेले बैठकर आसमान की तरफ देखते हुए कुछ सोचते रहते थे ।

और हर रोज अपने कमरे में रखी अलमारी को खोलकर देखते थे और मुस्कुराते रहते थे । वे अपनी उस अलमारी को किसी को भी नहीं छूने देते थे ।

उस अलमारी में क्या था किसी को भी नहीं पता था । लेकिन सबको दादाजी की यह आदत काफी परेशान करती थी । की वह परिवार के साथ तो हंसते नहीं थे , ना ही बातचीत करते थे लेकिन अलमारी में ऐसा क्या था जो उन्हें काफी कुछ करता था ।

उनके परिवार के लोग देखना तो चाहते थे कि उस अलमारी में आखिर है क्या ? लेकिन उस अलमारी की चाबी दादा जी हमेशा अपने साथ ही रखते थे । इसलिए देखना मुश्किल था ।

इस बात को कई हफ्ते बीत जाते हैं । लेकिन दादा जी आप भी वैसे ही थे, उनके स्वभाव में कोई भी परिवर्तन नहीं आ रहा था । बस अलमारी को देख कर खुश होते रहते थे ।

अब घरवालों का शक और ज्यादा बढ़ता जा रहा था । अब घर में यह बात होने लगी थी कि दादा जी के पास कोई ऐसी कीमती चीज है जिसे वे हमें नहीं दिखाना चाहते ! और अकेले ही उसे अपने पास रखना चाहते हैं ।

या फिर हो सकता है कि दादी जी ने दादा जी को कोई ऐसी कीमती चीज दी हो, जिसे वह हम लोगों को नहीं दिखाना चाहते हैं! ऐसी बातें पूरे घर में चल रही थी ।

उन्होंने कई बार दादा जी से पूछा भी था कि आखिर उस अलमारी में है क्या? तब दादा जी इस बात का उत्तर नहीं देते थे और वहां से चले जाते थे! जिससे घर वालों का शक उन पर और बढ़ जाता था ।

1 दिन पुष्पम के बहुत बार पूछने पर भी दादाजी ने नहीं बताया कि वह सालमारी में आखिर है क्या? तब जब दादा जी घर के बरामदे में बैठे थे । पुष्पम ने दादा जी के कमरे में जाकर उस अलमारी के ताले को हथौड़े से पीट-पीटकर तोड़ डाला !

अलमारी खोलने पर उन्होंने पूरी अलमारी को छान डाला लेकिन उनको कोई भी कीमती चीज नहीं मिली ।

तभी अचानक वहां दादाजी आ जाते हैं! उनकी अलमारी को टूटा हुआ देख कर उनको बहुत दुख होता है और वे घरवालों पर गुस्सा करने लगते हैं ।

घरवाले उनसे पूछते हैं कि आखिर इस अलमारी में ऐसा क्या है जिसे आप देखकर रोज खुश होते रहते हो? तब दादाजी ने बताया कि इस अलमारी में ऐसी कीमती चीज है जो सोने चांदी से भी बहुत ज्यादा कीमती है मेरे लिए!

इस अलमारी में तुम्हारी दादी जी की तस्वीर है । और वे सभी किससे हैं जो उसने अपनी डायरी मैं लिख रहा था । जिसे पढ़ पढ़ कर ही मैं कुछ होता रहता हूं ।

इसमें वे सभी पुरानी यादें हैं जिसे पढ़कर मेरा मन खुश हो जाता है । हमारे पूरे जीवन की तस्वीर है, जिसमें तुम्हारी दादी जी काफी खुश थी ।

यही सब देखकर मैं खुश हो जाता हूं । क्योंकि इसके अलावा मेरे पास और कोई सहारा नहीं है जीने का । तुम्हारी दादी के बिना मैं बहुत अकेला हो गया हूं । मुझे अपना जीवन व्यर्थ लगता है ।

इसलिए यही सब देखकर मैं खुश हो जाता हूं । और अपनी मृत्यु का इंतजार कर रहा हूं, ताकि तुम्हारी दादी जी से मेरी मुलाकात फिर से हो सके ।

यह सारी बातें घरवालों की आंखों में आंसू ला देती है । पुष्पम अपने पिता को गले से लगा लेता है । और रोने लगता है ।

पौधों से लगाव (very short stories in Hindi)

अमित प्रतिदिन विद्यालय जाता । विद्यालय के बाहर बहुत से खाने – पीने वालों के ठेले खड़े होते।

अमित रोज कुछ न कुछ खरीद एक दिन जब वह स्कूल से बाहर आया , उसने एक नया ठेला खड़ा देखा । ठेले पर भिन्न – भिन्न प्रकार के फूलों के पौधे थे।

ठेले वाला पौधों के बारे में बता रहा था । अमित को फूलों के पौधे बहुत पसंद थे उसने लाल फूल का पौधा लेने का मन बनाया।

पौधे में कुछ कलियाँ लगी थीं । अमित चाहता था कि फूल उसके घर जाकर खिलें ।उसने पौधे वाले से दाम पूछा ।

ठेले वाले ने पौधा तीस रुपये का बताया । अमित के पास तीस रुपये नहीं थे। उसने छह – सात दिन खाने – पीने की चीजें नहीं खरीदीं।

प्रतिदिन पैसे बचाकर उसने तीस रुपये जोड़ लिए । उसने तीस रुपये देकर पौधा खरीदा और घर ले आया ।

अमित ने पौधे की अच्छी तरह देखभाल की । पाँच दिन बाद पौधे में दो फूल खिले ।

अमित की खुशी का ठिकाना नहीं रहा । अमित के परिवार के लोग भी बहुत प्रसन्न हुए ।

एकता में बल है Short Moral Stories in Hindi

एकता में बल है Short Moral Stories in Hindi

एक गाँव में राम नाम के एक मुखिया थे। आसपास के गाँव में भी उनकी बड़ा प्रतिष्ठा थी। बड़े ही मौज के साथ उनका समय बीत रहा था। मगर एक बात से वह हमेशा परेशान रहते थे। वह यह कि उनके पाँच बेटे थे और सभी आपस में लड़ते झगड़ते रहते थे। राम सोचते थे कि यदि इनकी यही आदत रही तो मेरी कमाई हुई प्रतिष्ठा को खो देंगे। साथ ही कोई भी बेइज्जत करता रहेगा।

आखिर सोचते-सोचते राम को एक तरकीब सूझी। एक दिन उसने पाँचों लड़कों को अपने पास बुलाया। जब सब आ गए तो पतली-पतली लकड़ियों का बना हुआ एक गट्ठर उन्होंने उनके सामने रखकर कहा- ’’तुममें से जो लकड़ियों के इस गट्ठर को एक साथ तोड़ देगा, उसे मैं सबसे अधिक संपत्ति दूँगा।’’

पाँचो लड़के एक साथ तैयार हो गए। सभी यह कह रहे थे पहले मै तोडूँगा क्योंकि सबको लग रहा था कि कहीं मेरी बारी आ पाऐगी की नहीं। राम ने आदेश दिया कि सबसे छोटा भाई पहले तोड़ेगा फिर अससे बड़ा फिर उससे बड़ा।

सबने खूब मेहनत कि पर पाँचों भाई में कोई भी नही तोड़ पाया, फिर राम ने पाँचों लड़को को एक-एक लकड़ी दी और कहा- ’’अब अपनी-अपनी लकड़ी तोड़ दो।’’

सबने आसानी से अपनी लकड़ी तोड़ दी। तब राम ने पाँचों बेटों से कहा देखा तुम लोगों ने ?

जब तक ये इकट्ठी बंधी थीं, तुममें से कोई इसे नहीं तोड़ पाया। अब अलग-अलग हो गई तो तुम सब ने इन्हें बड़ी आसानी से तोड़ दिया। यह कहकर राम ने पाँचों बेटों की ओर देखा और कहा- ’’मै ठीक कह रहा हूँ न ?’’

अब तुम्हारी समझ में आ जाना चाहिए कि यदि तुम आपस में मिल कर रहोंगे तो कोई भी तुम से लड़ने के लिए नही सोचेगा और यदि तुम से कोई लड़ता भी है तो वो जीत नहीं सकता जब तक तुम पाँचों मिल कर रहोगें।

यह बात पाँचों पुत्र के समझ में आ गई की एकता में हि बल है। इस शिक्षा के लिए सबने अपने पिता का शुक्रिया अदा किया।

लालच बुरी बला है (Hindi Story for Kids)

किसी गाँव में एक बहुत ही गरीब मजदूर “दीनू” रहता था। वह दिन में मजदूरी करता और सुबह शाम भगवान का नाम लेता। उसकी एक अच्छी आदत थी कि यदि उसके पास खाने के लिए रोटी होती और उस से कोई मांग लेता तो वह बिना संकोच अपनी रोटी उसे दे देता था। भले ही बाद में उसके पास खाने के लिए कुछ न बचता हो। बस कभी-कभी उसके मन में यह विचार आ जाता था कि भगवान उस पर दया क्यों नहीं करते? जिससे उसकी गरीबी अमीरी में बदल जाए।

हर दिन की तरह एक दिन वह मजदूरी के लिए गाँव से बाहर जा रहा था। रस्ते में उसे एक बाबा मिले।

“बेटा, बहुत दिनों से भूखा हूँ। कुछ खाने के लिए हो तो दे दो।“

बाबा के इतना कहने की देर थी कि बस दीनू ने झट से अपनी पोटली में बंधी रोटी उन बाबा को दे दी और बिना कुछ कहे सुने आगे बढ़ गया। अगले दिन जब फिर दीनू उसी रास्ते से जा रहा था तब वही बाबा उसे फिर दिखाई दिए।

“बाबा आज कुछ खाने को मिला या नहीं?”

दीनू ने बाबा के पास रुकते हुए कहा।

“अभी तक तो कुछ नहीं मिला बेटा। जब ऊपर वाले की मर्जी होगी वो तभी देगा।”

यह सुन दीनू ने फिर से अपनी रोटी दी और बोला,

“लो बाबा, ऊपर वाला मेरी तो सुनता नहीं लेकिन तुम्हारी सुन ली उपरवाले ने। ये लो रोटी।“

बाबा ने पोटली हाथ में लेते हुए दीनू से कहा,

“बेटा आज के समय में तेरे जैसा इन्सान बहुत मुश्किल से मिलता है। मै तुझसे बहुत खुश हूँ। आज तेरी भी ऊपर वाला सुनेगा। तू कोई भी तीन चीज मांग ले मुझसे। तेरी सारी मनोकामना पूरी होगी।”

दीनू ने मन ही मन सोचा कि शायद बाबा मजाक कर रहे हैं। तो उसने भी उसी तरह जवाब देते हुए कहा,

“बाबा गरीब मजदूर हूँ, टूटा-फूटा घर है। गरीबी इतनी है कि कई बार तो भूखे ही सोना पड़ता है। करना है तो कुछ ऐसा करिए कि मेरा एक सुन्दर सा घर बन जाए और खाने-पीने की कोई कमी न रहे।”

“बेटा तू घर जा, तेरा आज का खाने का इंतजाम हो चुका है और 2 चीज क्या चाहिए बोल।”

अब तो दीनू को पूरा विश्वास हो चुका था कि वह बाबा मजाक ही कर रहें हैं। इसलिए आगे बिना कुछ कहे दीनू आगे बढ़ गया।

शाम को दीनू जब काम से थकहार कर घर लौटा तो उसकी आँखें खुली की खुली रह गयी। उसके घर की जगह एक बहुत ही सुन्दर ईमारत बन चुकी थी। उसने अपनी पत्नी से इसके बारे में पुछा तो उसने बताया,

“सुबह कुछ देर के लिए मुझे चक्कर आया और मैं बेहोश हो गई। जब होश आया तो देखा कि यहाँ पर हमारे घर की जगह ये नया घर था।”

“बाबा सच बोल रहे थे।”

दीनू माथे पर हाथ रख नीचे बैठते हुए बोला।

“कौन बाबा? क्या बोल रहे थे? क्या बड़बड़ा रहे हो तुम? कुछ बताओगे मुझे भी?”

दीनू ने अपनी पत्नी को सब कुछ बताया। सब सुनते ही दीनू को पत्नी को भी विश्वास न हुआ। उसने भी बाबा की परीक्षा लेने के लिए दीनू को भेजा। उसकी पत्नी ने उसे इस बार उसके लिए गहने मांगने के लिए कहा।

अगले दिन दीनू की पत्नी ने रोटियां बना कर दीं। इस बार यह रोटी सद्भावना के लिए नहीं बल्कि लालचवश बनाई गयी थीं। दीनू बाबा के पास गया और जैसा उसकी पत्नी ने कहा था उसने वैसा ही किया।

“बेटा मैंने तुम्हें 3 चीजें मांगने के लिए कहा था। एक तुम मांग चुके हो। दूसरा तुम अब मांगने आये हो। तीसरी चीज सोच समझ कर मांगना। लालचवश कुछ भी मत मांगना। वही मांगना जिसकी तुम्हें जरूरत हो। बिना दाम के मिला हुआ सामान समस्या को आमंत्रण दे सकता है।”

बाबा दीनू को समझाते हुए बोले। दीनू तो बाबा के चमत्कार के आगे न कुछ सुन पा रहा था न ही कुछ समझ पा रहा था। उसके मन पर लालच का पर्दा पड़ चुका था।

“यहाँ से कुछ दूर एक बरगद का पेड है। उसके नीचे ही एक छोटा पौधा उग रहा है। तुम उस पौधे के नीचे खोदोगे तो तुम्हें सोने के गहने मिल जाएँगे।”

बाबा के यह बताने पर दीनू रोटियां देकर वहां चला गया। वहां से गहने लेकर वह घर चला गया।

2 ही दिन में दीनू का रहन-सहन बदल गया था। फटे-पुराने कपड़ों की जगह अब वह महंगे कपड़े पहने हुए था। अब न ही वो मजदूरी कर रहा था और न ही भगवान को याद कर रहा था। अहंकार उसके सिर चढ़ चुका था। इसकी खबर आस-पास के गाँव में जंगल में आग की तरह फ़ैल गयी थी। लोग दूर-दूर से उसे देखने आने लगे कि कैसे एक मजदूर ने रातों-रात घर बनाया और इतना अमीर हो गया। कुछ लोगों को तो लगा कि शायद उसे कोई गड़ा हुआ खज़ाना मिला होगा। लेकिन मुख्य सवाल यह था कि रातों-रात उसका घर कैसे बन गया।

खबर पहुँचती-पहुँचती उस राज्य के राजा के पास पहुंची। राजा ने उस मजदूर को अपने दरबार में बुलाया। जब उन्होंने दीनू से पूछा कि उसे ये पैसा कैसे मिला और उसने घर कैसे बना लिया। तब दीनू ने अपनी सारी आप-बीती बताई। राजा को उसकी बात पर विश्वास न हुआ।

राजा के दरबार में दीनू पर चोरी का इल्जाम लगा। उस पर ये आरोप भी लगा कि उसके पास कोई जादुई शक्ति है जिसका वह गलत इस्तेमाल कर रहा है। यह शक्ति राज्य के लिए खतरनाक वही हो सकती है। इस लिए दीनू को जल्दी ही मौत की सजा दे देनी चाहिए।

दीनू उस वक़्त रोने और गिड़गिड़ाने लगा।

“महाराज मैं सच बोल रहा हूँ। मैंने कुछ नहीं किया। ये सब उन बाबा का चमत्कार है। कृपया मुझे अपने आप को बेगुनाह साबित करने का एक मौका दीजिये।“

दीनू के बार-बार मिन्नतें करने पर राजा ने उसे अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए एक दिन की मोहलत दी और उसके साथ अपने 2 सैनिक भेजे।

दीनू सैनिकों के साथ उस बाबा के पास गया और जाते ही उनके पैरों में गिर पड़ा।

“बाबा, मुझे बचा लीजिये बाबा। राजा ने मुझे मौत की सजा दे दी है। मेरी जान बचा लीजिये।“

“उठो दीनू, कुछ नहीं हुआ है तुम ऊपर उठो।“

दीनू ने जैसे ही अपना सिर उठाया। वह पहले की साधारण कपड़ों में था। सामने उसे बस एक रौशनी ही दिखाई दे रही थी। फिर उस रौशनी से अवाज आने लगी।

“दीनू, यह सब तुम्हारे लालच का फल था। यदि तुमने लालच न किया होता तो आज तुम्हारी यह हालत नहीं होती। इसी लालच की वजह से तुमने मुझे भी याद करना छोड़ दिया।”

दीनू समझ चुका था कि वह बाबा और कोई नहीं स्वयं भगवान् थे। आवाज फिर से बोलने लगी।

“जीवन में एक बाद याद रखना दीनू, संतोष ही सबसे बड़ा धन है। यदि तुम्हारे पास जो कुछ है तुम उस से संतुष्ट हो तो तुम्हें किसी भी प्रकार की समस्या नहीं होगी। किसी भी प्रकार का लालच समस्याओं को जन्म देता है। तुम्हारे साथ जो कुछ भी हुआ वह तुम्हारे लिए एक शिक्षा है।”

“वो सब तो ठीक है प्रभु, लेकिन अब मैं इस समस्या से बचूंगा कैसे?”

“कैसी समस्या दीनू? ये सब तो एक मायाजाल था। अपने आस-पास देखो कोई नहीं है। ये सब बस तुम्हें यह समझाने के लिए किया गया था कि लालच सच में बुरी बला है।”

इतना कहकर वह रौशनी गायब हो गयी। आस-पास सैनिकों को न देख कर दीनू की सांस में सांस आई। फिर वह दौड़ता हुआ सीधा अपने घर पहुंचा और देखा वहां सब कुछ पहले जैसा था। किसी को कुछ भी याद नहीं था।

तो दोस्तों इसी तरह इस दुनिया में कई ऐसे लोग हैं जो हर पल भगवान को कोसते रहते हैं कि भगवान हमारी सुनते नहीं। सच्चाई तो यह है कि वह सुनते सब हैं लेकिन करते वही हैं जो हमारे लिए सही है। हमें कोई वस्तु तभी प्राप्त होती है जब हम उसके लायक होते हैं। इसलिए भगवन भरोसे न बैठ कर अपने आप को लायक बनाइये और जीवन में सफलता प्राप्त करिए।

अनचाहे मेहमान (छोटे बच्चों की मजेदार कहानियां)

एक गांव में एक किसान अपनी पत्नी के साथ रहता था। वह बहुत सीधा सादा और भला आदमी था।

इसकी पत्नी भी उसी की तरह भोली और नेक औरत थी।

दोनों पति पत्नी घर आए मेहमानों की खूब खातिरादारी करते थे, पर उन्हें ऐसे मेहमान पंसद नहीं थे जो आने के बाद जाने का नाम ही न लें।

वे चाहते थे कि मेहमान आएं, मगर एक दो दिन रूककर वापस चले जाएं। मेहमान अगर ज्यादा दिन रूक जाते थे तो उन्हें ज्यादा खर्च और परेशानी उठानी पड़ती थी।

एक बार की बात है। किसान के यहां उसका साला अपनी पत्नी तथा बच्चों के साथ घूमने आया।

किसान और उसकी पत्नी बहुत खुश हुए। दोनों ने उन लोगों की अच्छी खातिरदारी की।

दो तीन दिनों के बाद उन लोगों को वापस लौट जाना था, लेकिन यहां की खातिरदारी देखकर उन लोगों ने कुछ दिन और रूकने का मन बना लिया।

अब तो किसान और उसकी पत्नी सोच में पेड़ गए, क्योंकि उनके रूकने से किसान को परेशानी होने लगी। बच्चों ने भी धमा चौकड़ी मचाकर नाक में दम कर दिया था।

किसान और उसकी पत्नी ने सोचा, पता नहीं, ये कब यहां से जाएंगे।

एक सप्ताह के बाद भी जब उन लोगों ने लौटने का नाम नहीं लिया तो किसान ने एक उपाय सोचा।

अगले दिन खेत जाते समय किसान ने अपने साले को एक कुदाल और टोकरी पकड़ाते हुए कहा, ”साले साहब, आज मजदूर नहीं आया है। मेरे खेत के पास एक गड्डा है। उसे मिटृी से भरना है। जरा आप मेरे साथ खेत पर चलिए। मैं मिटृी काट काटकर दूंगा और आप टोकरी में डालकर गड्डे में भरते जाइएगा।“

यह सुनकर किसान का साला थोड़ा सकपकाया। चाहकर भी वह इनकार नहीं कर पाया। उसे किसान के साथ जाना पड़ा।

किसान के खेत के पास एक गड्डा था, हालांकि किसान को उस गड्डे से कोई लेना देना न था। परंतु साले को सबक सिखाने के लिए उसने मिटृी काटकर भरना शुरू कर दिया।

मिटृी ढो ढोकर कुछ ही देर में साले साहब का अंग अंग दुखने लगा। मारे भूख के पेट में चूहे कूदने लगे। रो धोकर उसे शाम तक मिटृी उठानी पड़ी।

लौटते ही उसने फैसला कर लिया कि अब वह यहां एक पल भी नहीं रूकेगा। उसने अपनी पत्नी को वापस चलने की तैयारी करने को कहा तो वह बोली, ”अभी क्या जल्दी है। अभी और चार पांच दिन रूको न, कितनी खातिरदारी हो रही है, हमारी यहां।“

उसने मुंह बिगाड़कर कहा, ”खातिरदारी हो रही है। मुझे नहीं रूकना यहां, तुम्हें रूकना है तो महीने भर रूको। मैं तो कल सुबह ही यहां से चला जाऊंगा।“

सुबह हुई तो साला बिना कुछ खाए पिए ही वहां से चल दिया। साले की पत्नी बच्चों के साथ अभी भी जमी हुई थी। उससे भी पिंड छुड़ाना जरूरी था।

अगले दिन किसान की पत्नी झूठ मूठ कराहती हुई बोली, ”भाभी! मुझे आज बुखार चढ़ आया है। मैं आज कोई काम न कर सकूंगी, खाना भी नहीं बना सकूंगी।“

साले की पत्नी बोली, ”कोई बात नहीं। तुम आरा करो। मैं खाना बना लेती हूं।“ यह कहकर वह उठी और रसोई में जाने लगी।

”रूको भाभी,“ किसान की पत्नी ने उसे रोकते हुए कहा, ”खाना बाद में बनाना पहले घर द्वार की झाड़ू से सफाई कर लो, कुछ गंदे कपड़े पड़े हैं, उन्हें भी धो डालना। चालीस किलो गेहूं भी चक्की में पीसना है।“

साले की पत्नी काम में जुट गई। काम निपटाते निपटाते शाम हो गई। इस बीच वह भूखी प्यासी ही रही। भूख के मारे उसका बुरा हाल हो रहा था। किसी तरह रोते झींकते उसने सारा काम पूरा किया। उसे किसान की पत्नी का यह व्यवहार बेहद अखरा। उसने समझ लिया कि अब यहां से जाने में ही भलाई है।

अगली सुबह वह बच्चों के साथ जाने लगी तो किसान की पत्नी बोली, ”भाभी! मेरी तबीयत खराब है अभी दो चार दिन और रूक जाती तो अच्छा रहता।“

”नहीं, अब मैं यहां नहीं रूकूंगी। मेरा घर जाना बहुत जरूरी है।“ यह कहकर वह बच्चों के साथ चल दी।

किसान और उसकी पत्नी ने चैन की सांस ली।

बोलती चुटकी (Story for kids in hindi)

एक थी चुटकी । वह बहुत बोलती थी । हर किसी से बात करती थी । दीवारों से , कुत्तों से , बिल्लियों से ,

गिलहरियों से , बर्तनों से , किताबों से , पेंसिलों से । हमेशा कुछ – न – कुछ पूछती रहती थी । घर में लोग उससे परेशान हो जाते थे ।

वह कभी चुप नहीं रहती । चुटकी की बातें कभी खत्म नहीं होती , कभी – कभी पूरे समय ही बातें करती ।

कई बार उसे डाँट भी लगती थी , पर उस पर कोई फर्क नहीं पड़ता । बस दादाजी उसे कभी नहीं डाँटते थे ।

एक बार दादाजी टीवी देख रहे थे , वहीं पर चुटकी टीवी से बातें करने लगी । अब चुटकी की लगातार बातें चलने लगीं तो दादाजी ने डाँट दिया ।

चुटकी नाराज हो गई और जोर से बोली- ” मेरी आवाज कोई और ले लो , अब मैं कुछ नहीं बोलूंगी ।

” अगले ही पल से चुटकी की आवाज गायब हो गई । जैसे ही चुटकी कुछ बोलने लगी , तो पाया कि वह बोल ही नहीं पा रही है ।

उसने बहुत कोशिश की , मगर उसके मुँह से कोई आवाज नहीं निकली । घर के लोग डर गए कि चुटकी की आवाज को क्या हुआ ?

सबने उससे बहुत बुलवाने की कोशिश की , मगर उसकी आवाज नहीं आई । उसको डाक्टर के पास लेकर गए ।

डाक्टर ने उसे कुछ दवाइयाँ दीं । फिर भी वह ठीक नहीं हुई । वह सारा दिन चुप रहती । तीन दिन बाद ,

घर के आँगन में एक चिड़िया आई और जोर – जोर से चहचहाने लगी । चुटकी उसकी आवाज सुन रही थी ।

उसे लगा , जैसे चिड़िया उसी से बात कर रही है । अचानक उसके मुँह से निकल गया ” मेरी आवाज गायब है ।

” उसकी आवाज सुनकर घर के सभी लोग दौड़े । चिड़िया ने कहा- ” उस दिन मैं तेरी आवाज लेकर चली गई थी । कैसी लगी ?

” यह सुनकर सभी हँसने लगे।चुटकी अब चिड़िया से बात करने में लग गई । सब समझ चुके थे कि अब चुटकी रुकने वाली कहाँ है !

श्रम और रोटी (बच्चों की रात की कहानियां) 

गुरू नानक जी श्रम और ईमानदारी पर बहुत अधिक बाते लोगों को बताया तथा समझाया करते थे। वे प्रायः लोगों को यही समझाते थे कि मेहनम करो और काम-काज और व्यवहार में ईमानदरी बरतो।

एक बार गुरू नानक जी उपदेश देने के लिए एक गाँव में गए। जब उनका उपदेश समाप्त हो गया तो उन्हें दो व्यक्तियों ने अपने घर भोजन करने के लिए कहा। उनमें एक जमींदार था और दूसरा लोहार। भला एक साथ नानक जी दोनों घरों में कैसे जा सकते थे ?

अतः थोड़ी देर कुछ सोचने के बाद गुरू नानक जी ने दोनों व्यक्ति को भोजन वही ले आने को कहा जहाँ वे ठहरे हुए थे। जमींदार के धर से अच्छे-अच्छे पकवान आए। पर लोहार के घर से मक्के की रोटी और नमक आया।

नानक जी ने दोनों के भोजन को देखा और मक्के की रोटी को नमक से खाने लगे। यह बात जमींदार को अच्छी नही लगी। उसने नानक जी से कहा आपने अच्छे-अच्छे भोजन छोर कर लोहार की लाई मक्के की रोटी क्यों खाई ?

नानक जी ने इस बात का कोई उत्तर नही दिया। उन्होंने एक हाथ में पूरी और दूसरे हाथ में मक्के की रोटी का एक टूकड़ा लिया। उन्होंने पूड़ी को मुट्ठी में रखकर दबाया तो रक्त की बूँदे टपक पड़ीं। लेकिन जब इसी प्रकार रोटी को दबाया तो उसके भीतर से दूध की बूँदे गिरीं। यह देखकर लोगों को बहुत ही आश्चर्य हुआ।

जमींदार और लोहार के भी आश्चर्य की सीमा न रही।

नानक जी ने फिर सबको समझाया- ’’जमींदार की पूड़ी से खून की बूँदे इसलिए टपकीं क्यों कि वह दूसरों के श्रम को चूसकर बनाई गई है। लोहार की रोटी से दूध की बूंदें  इसलिए गिरीं क्यों कि वह मेहनत और ईमानदारी से पैदा किए गए अन्न से बनाई गई है।’’

मेहनत और ईमानदारी के फल को साक्षात देखकर सब लोग हैरान रह गए और गुरू नानक जी के चरणों में गिर पड़े। गुरू नानक जी ने सबकों यह संदेश दिया कि वे श्रम करें और काम-काज में ईमानदारी में काम लें।

जल्दबाजी और घबराहट में काम बिगड़ जाता है – छोटे बच्चों की छोटी कहानी

एक किसान था, जो भुलकक्ड़ था। उसके पास छः गधे थे। वह उन गधों पर अपने खेत की फसल लादकर ले जाता और मंडी में बेचा करता।

एक बार उसने गधों पर चावल के बोरे लादे और बाजार की ओर चल दिया। उसने मंडी में चावल बेचा और शाम को घर के लिए वापस लौटा। वह खुद तो एक गधे पर बैठा था तथा अन्य पांच गधों को हांक-हांककर आगे बढ़ा रहा था।

रास्ते में उसने सोचा कि गधों का गिन लिया जाए कि कहीं कोई पीछे तो नहीं छूट गया। वैसे ही मेरी पत्नी मुझे भुलक्कड़ कहती रहती है, यह सोचकर उसने गधों को गिनना शुरू किया- ‘एक… दो…. तीन… चार… पांच! अरे पांच ही गधे।’ उसने दोबारा गिना, फिर तीसरी बार भी गिना – ‘अरे…. वही पांच गधे। छठा कहां गया?’

वह गिनता रहा और परेशान होता रहा। एक बार भी उसने उस गधे को नहीं गिना, जिस पर वह स्वयं बैठा हुआ था।

वह बुरी तरह परेशान हो गया। सोच-सोचकर कि आखिर छठा गधा गया कहां? उसे याद था सुबह जब वह धर से चला था तो छः गधे थे। आखिर छठा कहां हो सकता है? बाजार काफी पीछे छूट गया था। फिर भी वह मुड़कर बाजार की ओर चल पड़ा। रास्ते में उसने कई राहगीरों से भी पूछा कि क्या आस-पास कोई गधा देखा था, मगर हर व्यक्ति ने यही कहा कि उन्हें कहीं कोई गधा दिखाई नहीं दिया।

बेचारा उदास होकर तथा गधा मिलने की सभी आशाएं छोड़कर दोबारा घर की ओर चल पड़ा।

देर रात होने पर घर पहुंचा। उसकी पत्नी घर के बाहर खड़ी थी। वह अपने पति को देखते ही समझ गई कि वह कुछ परेशान है, हो न हो आज भी कुछ भूल आया है। यही सोचकर उसने पूछा- ”क्या बात है? कुछ परेशान दिखाई दे रहे हो।“

”आज बड़ा नुकसान हो गया।“ किसान बोला- ”मेरे छः गधों में एक गधा कहीं खो गया। जब मैं घर से चला था तो पूरे छः गधे थे। मगर जब बाजार से वापस लौट रहा था तो रास्ते में मैंने गधों की गिनती की तो एक गधा कम था। सैंकड़ों बार गिना, मगर पांच ही गधे थे।“ यह कहकर वह उस गधे से नीचे उतरा आया, जिस पर वह बहुत देर से बैठा हुआ था।

यह सुनकर उसकी पत्नी को बड़ा गुस्सा आया। उसके सामने छहों गधे खड़े थे। वह समझ गई कि क्या हुआ होगा। अतः क्रोधित होकर वह चिल्लाई-

”तुम तो निरे मूर्ख हो। तुमने उस गधे को तो गिना हीं नहीं, जिस पर तुम स्वयं बैठे हुए थे। वे रहे हमारे छः गधे।“

अब किसान की समझ में आया कि छठा गधा न मिलने का क्या कारण था।

वह मुंह बाए अपनी पत्नी को देखता रहा। अपनी झेंप मिटाने के लिए उसने अपनी पत्नी से कहा- ”देखो, बात यह है कि दिन भर दौड़ धूप से मैं इतना थक जाता हूं कि बस कुछ याद ही नहीं रहता।“

उसकी पत्नी मुस्कुराने लगी।

शिक्षा –  जल्दबाजी और घबराहट में काम बिगड़ जाता है।

कामचोर गधा – शिक्षाप्रद कहानी (बच्चों की मनोरंजक कहानियाँ)

एक व्यापारी के पास एक गधा था। वह रोज सुबह अपने गधे पर नमक की बोरियां व अन्य सामान लादकर आसपास के कस्बों में बेचने जाया करता था।

वहां तक जाने के लिए उसे कई छोटी-छोटी नदियां और नाले पार करने पड़ते थे।

एक दिन नदी पार करते समय गधा अचानक पुल से फिसलकर पानी में गिर पड़ा। इससे गधे की पीठ पर लदा हुआ ढेर सारा नमक पानी में घुल गया। व्यापारी ने जैसे-तैसे उसे बाहर निकाला। फिर देखा कि कहीं गधे को चोट तो नहीं लगी। मगर गधा सही सलामत था।

अब गधे का बोझ काफी हलका हो गया।

बोझ हलका होते ही गधा बहुत खुश हुआ।

नमक का व्यापारी गधे को लेकर घर वापस लौट आया। अब वह जाकर भी क्या करता, माल तो पानी में बह गया था।

फलस्वरूप उस दिन गधे को अच्छा आराम मिल गया।

अब तो गधे ने सोचा कि रोज ऐसे ही किया करूंगा।

दूसरे दिन वह व्यापारी फिर गधे पर नमक की बोरियां लादकर बेचने निकला।

उस दिन फिर नदी पार करते समय गधा जानबूझकर पानी में गिर पड़ा। उसकी पीठ का बोझ इस बार भी हलका हो गया। व्यापारी उस दिन भी गधे को लेकर घर वापस लौट आया।

पर आज व्यापारी ने साफ-साफ देखा था कि गधा जान-बूझकर पानी में गिरा था। उसे गधे पर बहुत गुस्सा आया। मगर गधा अपनी कामयाबी पर बहुत इतराया।

अगले दिन व्यापारी ने गधे की पीठ पर रूई केगट्ठा लाद दिए। गधा बहुत खुश हुआ। उसने सोचा कि आज तो पहले ही कम बोझ है। जब मैं पानी में गिरने का नाटक करूंगा तो कुछ बोझ और हल्का हो जाएगा। यही सोचकर वह खुशी-खुशी चल दिया।

नदी आते ही वह पानी में गिर गया। पर इस बार उल्टा ही हुआ। व्यापारी ने उसे जल्दी से बाहर नहीं निकाला।

फलस्वरूप रूई के गट्टों ने खूब पानी सोखा और बोझ पहले से कई गुना बढ़ गया। पानी से बाहर आने में गधे को बहुत परिश्रम करना पड़ा। अब उससे चला भी न जा रहा था। मालिक तो पहले ही जला बैठा था क्योंकि उसने उसका काफी नमक पानी में बहा दिया था। जब गधे से न चला गया तो उसने डंडे से उसकी खूब पिटाई की।

उस दिन के बाद से गधे ने पानी में गिरने की आदत छोड़ दी।

गाजर और गाय (short best stories for kids in Hindi)

जाड़े का समय था । चारों ओर कोहरा छाया हुआ था । कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था । मैं बाबा के साथ अपने गाजर के खेत में गाजर निकालने जा रहा था ।

मैं और बाबा खेत पहुंचे और हम जल्दी – जल्दी गाजर निकालने लगे । बाबा को शहर जाकर उन्हें बेचना था ।

हम गाजर निकालते और ढेर बनाते जाते । तभी आशीष की गाय घूमते घूमते वहाँ आ पहुँची । आशीष हमारा पड़ोसी है ।

आशीष की गाय मजे से गाजर खाने लगी । गाय पर तब तक किसी की नजर नहीं पड़ी थी । अचानक बाबा पीछे मुड़े और गाय को देखते ही उसे भगाने लगे ।

गाय नहीं रुकी और गाजर मजे से खाती रही । तब बाबा उसे भगाने के लिए उठकर भागे । जैसे ही बाबा उठे , खेत की मेढ़ से टकरा कर गाजर के ढेर पर जा गिरे ।

इतने में गाय भाग गई । बाबा के पैर में चोट लग गई । काम खत्म करके बाबा लंगड़ाते हुए चलने लगे ।

रास्ते में रुककर बाबा आशीष के घर गए और चिल्लाकर आशीष से बोले- ” अपनी गाय को सँभालकर , खूटे से बाँधकर रखा करो ।

” आशीष बोला- ” मेरी गाय को आपके खेत की गाजर बहुत पसंद है । इसलिए वह रोज आपके खेत चली जाती है ।

” यह सुनकर पहले बाबा मुस्कुराए और फिर बोले- ” अगर ऐसी बात है तो मैं उसे खुद दो गाजर रोज दे दिया करूँगा ।

मगर गाय को खुला मत छोड़ा करो । ” यह कहते हुए बाबा और मैं घर की ओर चल दिए ।

आधी रही न पूरी – और शेर भूखा रह गया |Kahani in hindi for child

सुन्दर वन नाम जंगल में एक शेर रहता था. एक दिन जब उसको बहुत जोरों की भूख लगी तो वह इधर उधर किसी जानवर की तलाश करने लगा. इसी क्रम में कुछ ही दूर पर शेर को एक पेड़ के नीचे एक खरगोश का शावक दिखाई दिया.

वह पेड़ के छाव में बड़े ही मजे से खेल रहा था. भूख का मारा शेर उस शावक को पकड़ने को दौड़ा. मगर खरगोश शावक ने शेर को अपनी ओर आता हुआ देखा तो अपनी जान बचाने के लिए कुलांचे भरने लगा।

मगर शेर की लम्बी  छलांग का भला वह कैसे मुकाबला कर सकता था. शेर ने मात्र दो छलांग में ही उसे दबोच लिया. फिर जैसे ही उसने उसको गर्दन चबानी चाही, उसको नजर एक हिरन पर पड़ी।

शेर ने सोचा की इस नन्हे खरगोश से मेरा पेट भरने से रहा, क्यों न उस हिरण का शिकार किया जाए. यह सोचकर शेर ने खरगोश के शावक को छोड़ दिया ओर हिरण के पीछे लपका. खरगोश का बच्चा उसके पंजे से छूटते ही नौ दो ग्यारह हो गया. हिरण ने शेर को देखा, तो लम्बी-लम्बी छलांग लगता हुआ भाग खड़ा हुआ. शेर हिरण को नहीं पकड़ पाया।

हाय री – किस्मत. खरगोश भी हाथ से गया और हिरण भी नहीं मिला. शेर खरगोश के बच्चे को छोड़ने के लिए पछताने लगा. वह सोचने लगा की किसी ने सच ही कहा है जो आधी छोड़कर पूरी की तरफ भागते हैं, उन्हें आधी भी नहीं मिलती।

बुद्धिमान मंत्री (बच्चों की बाल कहानियां)

Story for kids in hindi

बहुत समय पहले की बात है, किसी घने जंगल में एक राक्षस रहता था। एक बार दो आदमी जंगल में रास्ता भटक गए। वे उस क्षेत्र में चले गए, जहां राक्षस का निवास था। राक्षस ने आदमियों को पहली बार देखा, अभी तक उसने चार टांगों वाले जानवर ही देखे थे। राक्षस ने उनमें से एक आदमी को पकड़कर हवा में उछाला, तो वह आदमी दर्द से चीख उठा, एक अजीब सी आवाज सुनकर राक्षस बहुत खुश हुआ तथा उस आदमी को मारकर खा गया।

अगले दिन दूसरी आदमी को भी उसी प्रकार मारकर खा गया। जैसे उसने पहले वाले आदमी को खाया था। आदमी के मांस और खून में उसे अजीब सा स्वाद महसूस हुआ।

वैसे भी वह जानवरों का खून पी पीकर ऊब गया, सो आदमी के खून का स्वाद उसे जानवरों के खून से अच्छा लगा। तब उसने सोचा कि आदमी का ही शिकार किया जाए। अब वह आदमी की तलाश में निकल पड़ा। तीन दिन तक जंगल में भटकते रहने के बाद राक्षस को एक बस्ती दिखाई दी। ऊंचे ऊंचे मकान राक्षस ने पहली बार देखे, किंतु मकानों के दरवाजे देखकर राक्षस असमंजस में पड़ गया। उसमें घुसने की कोशिश करता, किंतु घुस नही पाता। क्योंकि दरवाजों की ऊंचाई कम थी तथा राक्षस को दरवाजों से घरों में आदमी दिखाई भी दे रहे थे, किंतु वह उन्हें पकड़ नहीं पा रहा था।

अंत में उसे बस्ती में एक आदमी आता हुआ दिखाई दिया। राक्षस को भूख बड़ी जोर की लगी थी, सो उसने आदमी को पकड़ा, हवा में उछाला और देखते ही देखते उसे चबा गया। बस्ती के कुछ लोग यह दृष्य देख रहे थे, वे घबरा गए। बस्ती में राक्षस के रूप में उन्हें अपनी आंखों के सामने मौत तैरती नजर आ रही थी।

बस्ती के लोग मौका पाकर राक्षस की शिकायत राजा से करने पहुंचे, तो राजा ने अपनी सेना के द्वारा राक्षस को उस समय बंदी बनवा लिया, जब वह सो रहा था। लोहे की मजबूत बेड़ियों में जकड़कर उसे कई दिनों तक भूखा रखा गया। थक हारकर राक्षस ने राजा की अधीनता स्वीकार कर ली तथा राजा के सामने यह शर्त रखी, कि जब तक राजा उसे काम बताता रहेगा, तब तक वह किसी को नहीं मारेगा और जब राजा उसे कोई कार्य नहीं बताएगा तो वह राजा को ही मारकर खा जाएगा।

राजा खुश था। जो काम कई मजदूर मिलकर भी कई दिनों में निपटा पाते थे, वह कार्य राक्षस एक ही दिन में कर देता था। काम पूरा करते ही वह दूसरा काम पूछता। शुरू में राजा राक्षस को काम बताकर खुश होता, लेकिन जैसे जैसे राजा के सारे काम निपटते चले गए, राजा के चेहरे पर भय और चिंता की लकीरें उभरने लगीं। वह विचारने लगा कि जिस दिन भी राक्षस को कार्य नहीं बताया, उसी दिन जिंदगी का आखिरी समय आ जाएगा।

राजा को परेशान देखकर मंत्री ने राजा की परेशानी जानने का प्रयास किया। राजा ने मंत्री को अपनी समस्या बता दी कि अब उसके काम पूरे होते जा रहे हैं, शीघ्र ही राक्षस उसे खा जाएगा। मंत्री बहुत चतुर और बुद्धिमान था। काफी सोच विचार के बाद मंत्री को एक युक्ति सूझी, उसने राजा से कहा, ”अब जब भी राक्षस कोई काम पूछे, तो उससे कहना कि इस कुत्ते की टेढ़ी पूंछ को सीधा कर दे।“

राक्षस के काम पूछने पर राजा ने वैसा ही किया, जी मंत्री ने सुझाया था। राजा ने कहा, ”मेरे पालतू कुत्ते की पूंछ को सीधा कर दो।“

राक्षस राजा की आज्ञा के अनुसार कुत्ते की पूंछ को सीधा करने की कोशिश करता रहा, किंतु जितनी बार भी वह पूंछ सीधी करता, थोड़ी देर में पूंछ फिर से टेढ़ी हो जाती। अंततः राक्षस ने हार मान ली और जंगल में लौट गया। (1)

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