बच्चों के लिए बेस्ट 11 शेर की कहानियां | Lion Stories In Hindi

शेर की कहानियां- lion-stories-in-hindi-छोटे बच्चों की मजेदार कहानियां

शेर की कहानियां: शेर को जानवरों में सबसे  शक्तिशाली माना जाता है इसलिए शेर जंगल का राजा कहलाता है।  बच्चे से लेकर हम दादी नानी से शेर के बहुत सारे किस्से कहानी को सुनते आए हैं तो चलिए अपनी बचपन की इन्हीं  कहानियां के गुच्छे से जंगल के राजा शेर की कहानी या आपके साथ साझा कर रहा हूं। साथ ही साथ आपको इस Sher Ki Kahani Hindi Mein कुछ बेहतरीन सीख भी मिलेगी।

Sher Ki Kahani | बच्चों के लिए शेर की 11 रोचक कहानियां

तो चलिए पढ़ते हैं शेर की मनोरंजक और ज्ञानवर्धन कहानियाँ (Lion Stories In Hindi) : 

चूहा और शेर की कहानियां (Sher aur Chuha ki kahani in hindi)

चूहा और शेर की कहानियां (Sher aur Chuha Ki Kahani)

एक बार की बात है, किसी जंगल में एक चूहा रहता था। एक दिन जब वो अपनी बिल की तरफ लौट रहा था, तो उसने एक गुफा में एक शेर को आराम करते देखा। शेर को मजे में सोते हुए देख चूहे के मन में शरारत सूझी। चूहा शेर की गुफा में जा घुसा और शेर के ऊपर चढ़ गया। वह शेर के ऊपर खूब उछल-कूद करने लगा और उसके बाल खींचने लगा।

चूहे की शरारतों से शेर की नींद खुल गई और उसने चूहे को अपने नुकीले पंजों में दबोच लिया। चूहे ने जब शेर के पंजे में खुद को पाया, तो वो समझ चुका था कि शेर के गुस्से से अब उसे कोई नहीं बचा सकता और आज उसकी मौत तय है।

चूहा बुरी तरह डर गया और रो-रोकर शेर से विनती करने लगा कि शेर जी, मुझे मत मारो, मुझसे भूल हो गई, मुझे जाने दो। अगर आज आप मुझे जाने देंगे, तो मैं आपके इस उपकार के बदले भविष्य में जब भी आपको किसी मदद की जरूरत होगी, मैं आपकी मदद करूंगा।

चूहे की बातें सुनकर शेर की हंसी निकल गई। शेर ने कहा कि तुम तो खुद इतने छोटे हो, मेरी मदद क्या करोगे। चूहे की विनती सुनकर शेर को उस पर दया आ गई और उसने चूहे को छोड़ दिया। चूहे ने शेर को धन्यवाद बोला और वहां से चला गया।

कुछ दिनों बाद जब शेर खाने की तलाश में इधर-उधर घूम रहा था, तभी अचानक किसी शिकारी के फैलाए जाल में फंस गया। शेर ने खुद को जाल से निकालने की भरपूर कोशिश की, लेकिन निकल नहीं पाया। काफी देर कोशिश करने के बाद शेर ने मदद के लिए दहाड़ लगानी शुरू की।

उसी वक्त वो चूहा उधर से गुजर रहा था कि उसने शेर की दहाड़ने की आवाज सुनी। वो भागकर शेर के पास गया और शेर को जाल में फंसा देख चौंक गया। उसने बिना देर करते हुए अपने नुकीले दांतों से जाल को काटना शुरू किया और कुछ ही देर में उसने पूरे जाल को काटकर शेर को आजाद कर दिया। चूहे की इस मदद से शेर की आंखें भर आईं और नम आंखों से शेर ने चूहे को धन्यवाद किया और दोनों वहां से चले गए। फिर शेर और चूहा अच्छे दोस्त बन गए।

कहानी से सीख:-

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें सिर्फ शरीर के आधार पर किसी इंसान को छोटा या बड़ा नहीं समझना चाहिए। साथ ही हमें दूसरों की मदद करनी चाहिए, क्योंकि जब हम दूसरों की मदद करेंगे, तभी कोई हमारी मदद के लिए आगे आएगा।

शेर और ख़रगोश (Rabbit and lion story in Hindi)

शेर और ख़रगोश (Rabbit and lion story in Hindi)

एक जंगल में भारसुक नामक बलशाली शेर (Lion) रहा करता था. वह रोज़ शिकार पर निकलता और जंगल के जानवरों का शिकार कर अपनी भूख शांत करता था. एक साथ वह कई-कई जानवरों को मार देता. ऐसे में जंगल में जानवरों की संख्या दिन पर दिन कम होने लगी.

डरे हुए जानवरों ने इस समस्या से निपटने के लिए सभा बुलाई. वहाँ निर्णय लिया गया कि शेर से मिलकर इस विषय पर बात की जानी चाहिए. इसके लिए जानवरों का एक दल बनाया गया. अगले दिन वह दल शेर से मिलने पहुँचा. शेर ने जब इतने सारे जानवरों को अपनी गुफ़ा की ओर आते देखा, तो आश्चर्य में पड़ गया.

वह गुफ़ा से बाहर आया और गरजकर जानवरों के दल से वहाँ आने का कारण पूछा. दल का मुखिया डरते-डरते बोला, “वनराज! आप तो वन के राजा हैं. हम सभी आपकी प्रजा है. आज आपकी प्रजा आपसे एक विनती करने आई है.”

“कैसी विनती?” शेर ने पूछा.

“वनराज! आप रोज़ शिकार पर निकलते हैं और कई जानवरों को मार देते हैं. आप उन सभी मरे हुए जानवरों का भक्षण भी नहीं कर पाते. हम सबका विचार था कि आपकी भूख मिटाने यदि रोज़ एक जानवर आपके पास भेज दिया जाये, तो आपको भी आराम रहेगा और हम भी भयमुक्त रहेंगे.”

शेर को बिना मेहनत शिकार प्राप्त हो रहा था, इसलिए उसने यह निवेदन स्वीकार कर लिया. किंतु साथ ही चेतावनी भी दी कि जिस दिन उसके पास जानवर नहीं पहुँचेगा, उस दिन वह सबको मार डालेगा.”

उस दिन के बाद से प्रतिदिन एक जानवर का चुनाव कर उसे शेर के पास भेजा जाने लगा. अब शेर दिन भर गुफ़ा में पड़ा आराम करता रहता. परिणामस्वरुप अन्य जानवर जंगल में सुकून से जीवन जीने लगे.

एक दिन शेर का भोजन बनने की एक ख़रगोश (Hare) की बारी आई. ख़रगोश शेर की गुफ़ा की ओर चल तो पड़ा, किंतु मृत्यु निकट होने के कारण वह अत्यंत भयभीत था. वह धीरे-धीरे कदम बढ़ाता हुआ चला जा रहा था. साथ ही किसी तरह अपने प्राण बचाने का उपाय भी सोचता जा रहा था. 

चलते-चलते रास्ते में एक कुआं पड़ा. कुएं के पास जाकर जब ख़रगोश ने उसमें झांका, तो उसे अपनी परछाई दिखाई पड़ी. उसी क्षण ख़रगोश को अपनी जान बचाने का एक उपाय सूझ गया.  

उपाय सूझते ही ख़रगोश में एक नए जोश का संचार हो गया. उसे शेर के पास जाने की कोई जल्दी नहीं थी. कुछ देर कुएं के पास आराम करने के बाद वह शेर के पास पहुँचा.

इधर भूखा शेर अपने भोजन के आने में हो रही देरी से क्रोध में लाल-पीला हुआ जा रहा था. जैसे ही उसने एक पिद्दी से ख़रगोश को देखा, उसका क्रोध और बढ़ गया. वह गरजकर खरगोश से बोला, “पिद्दी खरगोश, मैं कबसे प्रतीक्षा कर रहा हूँ और तू अब आया है. अब मेरी भूख बढ़ चुकी है. तुझ अकेले से मेरा क्या होगा? तुझ पिद्दी को किस बेवकूफ ने मेरे पास भेजा है तुझे? तेरे बाद अब मैं उसे भी मारकर खा जाऊंगा.”

खरगोश हाथ जोड़कर गिपड़ड़ाया, “वनराज! देरी के लिए मुझे क्षमा करें. विश्वास करिए इसमें न मेरा दोष है, न ही मुझे भेजने वाले का. हम तो पाँच ख़रगोश आपका भोजन बनने निकले थे. किंतु रास्ते में एक दूसरे शेर ने हमें रोक लिया. जब हमने उसे बताया कि हम अपने राजा का भोजन बनने जा रहे है, तो वह चार खरगोशों को मारकर खा गया और मुझे आपके पास यह संदेश देने भेजा कि अब से वह जंगल का राजा है.”

“ऐसा कहा उसने?” शेर गुस्से में दहाड़ा.

“जी वनराज! उसने आपको लड़ाई के लिए ललकारा है. उसने कहा है कि वह आपको मारकर इस जंगल में एकक्षत्र राज करेगा.”

ये सुनना था कि शेर गरजता हुआ बोला, “मुझे अभी इसी समय उसके पास ले चल. मैं उसे बताता हूँ कि इस जंगल का राजा कौन है? आज तो उसकी खैर नहीं.”

ख़रगोश तुरंत तैयार हो गया और शेर को लेकर कुँए के पास आ गया. कुएं को दिखाते हुए वह बोला, “वनराज, ये उस शेर का दुर्ग है. वह इसी दुर्ग में रहता है. आप दुर्ग के द्वार से उसे ललकारिये.”

शेर ने कुएं में झांककर देखा, तो उसे अपनी परछाई नज़र आई. परछाई देखकर उसने सोचा कि अवश्य ही वह दूसरा शेर है और जोर से दहाड़ते हुए उसे ललकारने लगा. कुएं की दीवारों से टकराकर आती हुई अपनी ही दहाड़ की प्रतिध्वनि सुनकर  और अपनी परछाई देखकर उसे लगा कि दूसरा शेर भी दहाड़ते हुए उसे ललकार रहा है. उस ललकार का उत्तर देते हुए उसने कुएं में छलांग लगा दी. कुएं की दीवारों से टकराता हुआ वह पानी में गिरा और डूबकर मर गया.

शेर के मरने के बाद ख़रगोश ख़ुशी-ख़ुशी वापस लौटा और जंगल के अन्य जानवरों को खुशखबरी सुनाई. सुनकर सभी बहुत खुश हुए और सबने ख़रगोश की ख़ूब प्रशंसा की.

कहानी से सीख (Moral Of Story)

बुद्धि बल सबसे बड़ा बल होता है। इसलिए मुश्किल घड़ी में सदा बुद्धिमानी से काम लेना चाहिए. बुद्धि का इस्तेमाल कर हर समस्या का समाधान किया जा सकता है।

शेर और घमंडी सियार की कहानी (Lion Jackal Moral Stories In Hindi)

शेर और घमंडी सियार की कहानी (Lion Jackal Moral Stories In Hindi)

वर्षों पहले घने जंगलों में एक बलिष्ठ शेर रहा करता था. वो रोज़ शिकार करके अपना पेट भरता था. एक दिन वह एक भैंसे का शिकार और भक्षण कर अपनी गुफा को लौट रहा था कि तभी रास्ते में उसे एक मरियल-सा सियार मिला. सियार ने उसे लेटकर दण्डवत् प्रणाम किया।

शेर बड़ा हैरान हुआ. जब शेर ने उससे ऐसा करने का कारण पूछा तो उसने कहा, “आप राजा हैं और बहुत ही बलशाली हैं. मैं आपका सेवक बनना चाहता हूं, कुपया मुझे आप अपनी शरण में ले लें। मैं आपकी सेवा करूंगा और आपके द्वारा छोड़े गये शिकार से अपना गुजर-बसर कर लूंगा।

एक दिन उसने सिंह से कहा, ‘दोस्त मैं भी अब तुम्हारी तरह शक्तिशाली हो गया हूं और आज मैं एक हाथी का शिकार करुंगा और उसका भक्षण करुंगा और उसके बचे-खुचे मांस को तुम्हारे लिए छोड़ दूंगा।’

शेर उस सियार को अपना दोस्त समझता था, इसलिए उसने उसकी बातों का बुरा नहीं माना, लेकिन सियार को समझाया ज़रूर कि वो ऐसी गलती न करे. उसे हाथी के शिकार से रोका। पर वो सियार बहुत ही घमंडी बन चुका था. वो अपने ही भ्रम में जी रहा था।

शेर की कहानी Lion Stories In Hindi

वह घमंडी सियार सिंह के परामर्श को अस्वीकार करता हुआ पहाड़ की चोटी पर जा खड़ा हुआ.  वहां से उसने नज़रें दौड़ाई तो पहाड़ के नीचे हाथियों के एक समूह को देखा।

उनको देखते ही वो तीन बार आवाजें लगा कर एक बड़े हाथी के ऊपर कूद पड़ा, किन्तु हाथी के सिर के ऊपर न गिर वह उसके पैरों पर जा गिरा और हाथी अपनी मस्तानी चाल से अपना अगला पैर उसके सिर के ऊपर रख आगे बढ़ गया। क्षण भर में सियार का सिर चकनाचूर हो गया. सियार उसी वक़्त मर गया।

पहाड़ के ऊपर से शेर सब कुछ देख रहा था. सियार की सारी हरकतें देखकर उसने मन ही मन सोचा कि यदि सियार अपनी वास्तविक स्थिति को नही भूलता तो आज उसकी ऐसे दुर्गति नही होती।

कहानी से शिक्षा :- इस कहानी से यही शिक्षा मिलती है की हमे अपना वास्तविक स्वरूप कभी नही भूलना चाहिए और कभी भी घमंड में आकर कोई ऐसा कदम भी नही उठाना चाहिए, जिससे की हमारी दुर्गति हो जाए।

पढ़ें : Top 51 Moral Stories In Hindi In Short

शेर और गीदड़ के बच्चे की पंचतन्त्र कहानी | Sher Aur Gidad ke bachche ki kahani

शेर और गीदड़ के बच्चे की पंचतन्त्र कहानी | Sher Aur Gidad ke bachche ki kahani

बहुत पुरानी बात है किसी जंगल में शेर-शेरनी और उनके दो बच्चे रहते थे | शेर शिकार कर लाता था और उससे पूरा परिवार अपना पेट भरता था। एक दिन की बात है जंगल में बहुत भटकने के बात के बाद भी कोई शिकार नहीं मिला | शेर उदास होकर अपने घर जा रहा था तभी उसे गीदड़ का एक बच्चा मिला |

गीदड़ के बच्चे की मासूमियत देखकर शेर को उस पर दया आ गई | शेर ने गीदड़ के बच्चे को नहीं मारा और उसे अपने सांथ ले आया | घर आकर शेर शेरनी से बोला – “ आज मुझे जंगल में कोई शिकार नहीं मिला | रस्ते में मुझे यह गीदड़ का बच्चा मिल गया और मुझे इसे मारने का मन नहीं किया इसीलिए इसे अपने सांथ ले आया | अगर तुम्हें भूख लग रही हो तो इसे मारकर खा सकती हो। ”

शेरनी को भी गीदड़ के बच्चे पर दया आ गई और शेरनी बोली – “ जिसे आपने जीवन दान  दिया हो उसे हम कैसे खा सकते हैं , इस गीदड़ के बच्चे को हम अपने बच्चों के समान रखेंगें।”

अब शेर और शेरनी गीदड़ के बच्चे को अपने बच्चे की तरह पालने लगे  | गीदड़ का बच्चा शेर के बच्चों  के सांथ खेलता और  शेरनी का दूध पीकर बड़ा होने लगा | एक दिन शेर और गीदड़ के बच्चे खेल रहे थे तभी वहां एक बड़ा सा हाथी वहां  आ गया | उसे देख कर शेर के दोनों बच्चे हाथी की तरफ लपके और उसे गुर्राने लगे | शेर के बच्चों  को ऐसा करते देख गीदड़ का बच्चा डर गया और शेर के बच्चों से बोला- “ यह हाथी बहुत बड़ा है उससे दूर रहने में भलाई है , तुम्हें भी इससे दूर रहना चाहिए नहीं तो यह हमें मार देगा।”

इतना कहकर गीदड़ का बच्चा वहां से भाग गया , गीदड़ के बच्चे को घगता देख शेर के बच्चों का मनोवल टूट गया और वो भी वापस आ गए | घर आकर शेर के बचों ने गीदड़ के बच्चे की कायरता पर बहुत बुरा-भला कहा और उसका मजाक उड़ाया | शेर के बच्चों की बात सुनकर गीदड़ के बच्चे को गुस्सा आ गया और वह भी उन्हें भला बुरा कहने लगा | शेरनी बच्चों की इस लड़ाई को सुन रही थी | शेरनी उनके पास आकार बोली- “ तुम लोगों का इस तरह आपस में लड़ना ठीक नहीं है और तुम्हें आपस में मिलकर रहना चाहिए।”

शेरनी के समझाने पर गीदड़ का बच्चा और भड़क गया और बोला- “ पराक्रम और बल में मैं  इनके अधिक हूँ और ये मेरा ही मजाक उड़ा रहें है | मुझे और अधिक गुस्सा दिलाया तो मैं इन्हें मार दूंगा।”

गीदड़ के बच्चे की इस प्रकार की बातें सुनकर शेरनी को हंसी आ गई और वह गीदड़ के बच्चे  को एकांत में ले गई और बोली- “ तुमको मैंने अपना  दूध पिलाकर बड़ा किया है परन्तु तुम  एक गीदड़ के बच्चे  हो , तुम कितने ही शक्तिशाली क्यों न हो परन्तु जिस कुल में तुम जन्मे हो उसमें हाथी नहीं मारे जाते |

“शेरनी की बातें सुनकर गीदड़ का बच्चा बहुत डर गया और अब वह अपने गीदड़ों के परिवार और अपने कुनवे के सांथ रहना चाहता था | उसने यह बात शेर और शेरनी को यह बात बतलाई | शेर और शेरनी ने उसके परिवार और माता पिता का पता लगाया और वो उसे उसके माता पिता के पास छोड़ने गए | शेर और शेरनी दूर टीले पर खड़े रहे और गीदड़ का बच्चा अपने माँ-बाप और अपने कुनबे से जाकर मिल गया | गीदड़ का बच्चा भी उसे जन्म देने वाले माँ बाप से मिलकर बहुत खुश था और उसके माता-पिता और रिश्तेदार भी उससे मिलकर बहुत खुश हुए।

औरत और शेर की प्रेम कहानी | A Lady and Lion Story In Hindi

बहुत समय पहले की बात है एक बुढा आदमी हिमालय के पर्वत के पास रहता था , वह बहुत ही बड़ा ज्ञानी पुरुष था | सब लोग अपनी समस्या लेकर उसके पास आते थे | एक दिन एक औरत आयी और बोली बाबा मैरे पति मुझसे अब प्यार नहीं करते , आप के पास कोई जड़ी-बूटी हो तो दे दो।

बाबा ने कहा वह जड़ी-बूटी मे जबतक शेर की मूँछ का एक बाल न मिला दूं तब तक यह काम नहीं करता है | आप को मुझको शेर का एक बाल लाकर देना होगा | वह औरत बोली बाबा मैं कुछ भी करके आप को शेर का बाल जरुर लाकर दूंगी।

वह पास के ही एक जंगल मे चली गयी और शेर को ढूंढ़ना शुरू कर दिया | काफी समय के बाद उसको शेर दिखा , जब शेर ने उसको देखा तो वह उसको खाने के लिए दौर पड़ा | शेर को अपनी तरफ आता देख कर वह भाग गयी | लेकिन अगले दिन फिर वह शेर को खोजते हुए पहुंच गयी और फिर शेर उसको देख कर गरजने लगा।

यह सिलसिला महीनों तक चलता रहा और अंत मे अब शेर को आदत सी पड़ गयी और वह उस औरत को देख कर गरजना बंद कर दिया | अब वह औरत शेर के लिए मांस भी लाने लगी , एक दिन वह जब शेर को मांस खिला रही थी तभी उसने उसके मूंछ से एक बाल नोच लिया | वह बाल लेकर उस ज्ञानी बाबा के पास पहुँच गयी और बोली बाबा अब तो जड़ी-बूटी दे दो मे शेर का बाल लेकर आयी हूँ।

बाबा ने बोला – बेटा जब तुम एक जंगल के जानवर को प्रेम से जीत कर उसके बाल ला सकती हो तो अपने पति को क्यों नहीं मना पा रही हो। प्यार से सबको जीता जा सकता है , अब वह औरत यह बात एकदम समझ गयी थी | वह बिना कुछ बोले बाबा के पास से चली आयी।

कहानी से सीख: दोस्तों इस कहानी से हम लोगो को यही सीख मिलता है की प्रेम से सबको जीता जा सकता है।

मूर्ख शेर की कहानी | story of the foolish lion

मूर्ख शेर की कहानी | story of the foolish lion

सुंदरवन जंगल में एक शेर रहा करता था। वह जंगल का राजा था। एक दिन वह शिकार पर निकला । रास्ते में उसने देखा की एक राजा हाथी के ऊपर सवार होकर जा रहा है। हाथी के ऊपर एक बड़ा सा सिंहासन बना था, जिस पर वह राजा आराम से बैठा हुआ था।

अब शेर ने सोचा “मैं भी तो जंगल का राजा हूं, तो मैं भी अब पैदल नहीं चलूंगा! मैं भी हाथी की सवारी करूंगा।”

यही सोचकर वह वापस जंगल में आया और सारे जानवरों को बुलाकर उनसे अपनी बात कही। सभी जानवर मान गए और एक हाथी को बुलाकर उसके पीठ पर सिंहासन को तैयार कर दिए। अब सिंहासन तैयार हो चुका था सिर्फ शेर के बैठने की देरी थी। सभी जानवरों ने शेर को बुलाकर लाया और उसे सिंहासन पर बैठने के लिए कहा।

शेर छलांग लगाकर हाथी के ऊपर बने सिंहासन पर बैठ गया। हाथी खड़ा होकर चलने ही वाली थी कि अचानक सिंहासन जोर से हिलने लगा और शेर का संतुलन बिगड़ गया। संतुलन बिगड़ते ही शेर, हाथी के पीठ पर बने सिंहासन से सीधे जमीन पर गिरा। शेर के कई दांत टूट गए और मुंह से खून निकलने लगा। यह देख कर सारे जानवर हंसने लगे।

शेर को अब समझ में आ गया था कि सिंहासन पर बैठना उसके बस की बात नहीं है। उसने सभी जानवरों से कहा– “इससे अच्छा तो मैं पैदल ही चल लेता हूं!” इस प्रकार से शेर ने हाथी के ऊपर चलने की जगह पैदल चलना उचित समझा।

मोरल कहानी:

दोस्तों इसीलिए कहा जाता है “जिसका काम उसी को साजे” अर्थात हमें नकल नहीं करना चाहिए! जो हमारे बस की हो वही करना चाहिए। नकल का परिणाम बहुत ही कष्टदायक होता है।

Sher ki Kahani hindi mein | जंगल का राजा शेर खान की कहानी

एक जंगल में दो शेर रहता था। बड़े भाई का नाम बगीरा और छोटे भाई का नाम शेर खान था। शेर खान बहुत ही फुरतीला और तेज था। बगीरा उम्र में बड़ा जरूर था मगर वो बहुत ही आलसी था। आलसी भी इतना की वह शिकार भी नहीं करता था। शेर खान जो शिकार करता उसके खाने के बाद जो बचता उसे बगीरा खा लेता।

जंगल के सारे जानवर इस वजह से बगीरा से काफी नाराज रहते थे। सब यहीं सोचते खुद तो शिकार नहीं करता शेर खान के किए शिकार को वह दूसरे जानवरों को खाने नहीं देता।

बगीरा के इसी व्यवहार के कारण जंगल के जानवरों को भूखा भी कभी-कभी रहना पड़ जाता था। एक दिन जंगल के सभी जानवरों ने आपस में तय किया कि अब बहुत हुआ। हमें इस समस्या का अब समाधान करना होगा।

जंगल के राजा का चुनाव करने की सोची। ताकि राजा के खाने के बाद जो भी बचेगा उसमें बगीरा के साथ-साथ और भी जानवरों का भी हिस्सा हो।
सब ने सोचा इस बारे में हमें अब शेर खान से बात करनी होगी। जंगल काफी बड़ा और धना भी था। जंगल के बीचों-बीचों बीच एक नदी बहती थी। उसी नदी के पास पास एक पहाड़ भी था। पहाड़ के पास हि शेर खान का गुफां था।

सभी जानवर एक साथ शेर के गुफां के पास पहुंचे। शेर खान अपनी शेरनी के साथ गुंफा के बाहर हि बैठा था और शेर खान का बेटा उनके पास ही खेल रहा था।

एक साथ सभी जानवर को देख शेर खान चैक गया। आलसी बगीरा भी कहीं से घुमकर तभी वहां पहुंच गया। सब को एक साथ देखकर बगीरा ने पूछा तुम लोग यूं एक साथ यहां क्यों आए हो। सब ठीक तो हैं।

सभी जानवरों को समझ में नहीं आ रहा था। अब बोले भी तो क्या बोले और बगीरा के सामने ही उसकी शिकायत कौन करें?  बगीरा को कहीं ये बात पसंद ना आई तो अपनी जान कौन गवाए। सभी जानवर एक दुसरे को देख रहे थे। कोई कुछ नही बोल पा रहा था। तभी उनके बीच में से एक भंड़िया ने बोला हमें राजा का चूनाव करना है।

ये सुनते ही बगीरा गुस्से में दहाड़ने लगा। सभी जानवर बगीरा के इस व्यवहार से घबरा गए। तो बगीरा को शेर खान ने चुप रहने को बोला सभी जानवर क्या चाहते ये सुनना चाहता था शेर खान।

शेर ने कहां चुनाव आप करना चाहते है, तो आप सब ने कुछ सोच समझ कर ही ये फैसला किया होगा। आप ही बता दो फिर की राजा आप ने किसे चुना है। डरते-डरते एक लोमड़ी ने शेर खान का नाम लिया, और बोला हम आप को ही इस जंगल को राजा बनना चाहते है।

हमें मालूम है कि यह बगीरा को जंगल से ज्यादा अपनी निंद की फिक्र होती हैं। ऐसे में हमलोग उन्हें राजा की जिम्मेदारी नहीं दे सकते उन्हें भी यह पसंद नहीं होगा। की पुरे जंगल की रखवाली या देखरेख वो करें। वो अपनी आलस की जिंदगी से काफी खुश हैं और हमलोग उन्हें परेशान नही कर सकते।

बगीरा यह सुन कर चुप-चाप वहां से चला गया। और वह इस बात को मानेन को तैयार नहीं कि मेरा छोटा भाई को सबने राजा बनाया तो क्यों बनाया?

वह सोच रहा कि यह सब जरूर शेर खान की चाल हैं। पूरे जंगल को हरपने की कोशिश, होना हो शेर खान ने ही सब को डराया होगा इस फैसले के लिए।

दूसरे दिन बगीरा चुन-चाप गुफां के पास आता है तो देखता है शेर खान के बच्चा वहीं गुफां के बाहर खेल रहा हैं। तो बगीरा उसे मुंह में दबाकर भाग जाता है।

जंगल के एक जानवर ने बगीरा को शेर खान के बच्चे के साथ देख लेता है। तो तुरंत शेर खान के पास जा कर बताता है। शेर खान जंगल में बगीरा को ढुंढ लेता है। और देखता है उसका बच्चा ठिक है।

बगीरा कहता में इसे नहीं तुम्हें मारना चाहता हूं क्यों कि तुमने मुझे धोखा दिया सभी जानवरों के साथ मिलकर राजा तुम बन गए। मैं बड़ा हूं तुमसे तो राजा बनने का हक सिर्फ और सिर्फ मेरा है।

यह बोलते ही बगीरा ने शेर खान पर हमला कर दिया, फिर दोनों की जमकर लड़ाई होती है। बगीरा इस लड़ाई में जब पूरी तरह जख्मी हो जाता हैं। शेर खान ने बगीरा से कहां तुमहारे आलसी पन्ने के कारण सभी जानवरों ने मुझे राजा बनाया हैं।

मैं तुम्हें हमेशा अपना बड़ा भाई समझा। मैंने तुम्हें कोई धोखा नहीं दिया। बगीरा अपनी आखिरी सांस में पछताने के अलावा कुछ नहीं कर सकता था। बगीरा ने अपनी हरकतों के लिए शेर खान और उसके बच्चे से मांफी मागता हैं। और वही मर जाता।

इस कहानी से शिक्षा

अगर आपके मन को किसी की कोई बात अच्छी ना लगें। तो उस बात के बारे में पुरी तरह जानने या समझने की कोशिश करनी चाहिए ना कि अपने परिवार के लोगों के विरूद्ध आप कुछ गलत करने को अपने मन में कोई पलान बना लो। दूसरे की गलती या कमिंया देखने से पहले अपने अंदर की कमियां ढूँढी जाए। और उसे दूर करने की कोशिश करनी चाहिए।

पंचतंत्र की मजेदार कहानी : शिकार का ऐलान

पंचतंत्र की मजेदार कहानी : शिकार का ऐलान

एक घने जंगल में एक शेर और उसके चार सेवक (लोमड़ी, चीता, चील और भेड़िया) रहते थे। लोमड़ी शेर की सेक्रेटरी थी। चीता राजा का अंगरक्षक था। सदा उसके पीछे चलता। चील दूर-दूर तक उड़कर समाचार लाती। भेड़िया गॄहमंत्री था। उनका असली काम तो शेर की चापलूसी करना था।

इस काम में चारों माहिर थे इसलिए जंगल के दूसरे जानवर उन्हें ‘चापलूस मंडली’ कहकर पुकारते थे।  शेर शिकार करता। जितना खा सकता, वह खाकर बाकी अपने सेवकों के लिए छोड़ जाया करता था। मजे में चारों का पेट भर जाता।  

एक दिन चील ने आकर चापलूस मंडली को सूचना दी, ‘दोस्तों, सड़क के किनारे एक ऊंट बैठा है।’ भेड़िया चौंका, ‘ऊंट! किसी काफिले से बिछड़ गया होगा।’ चीते ने जीभ चटकाई, ‘हम शेर को उसका शिकार करने को राजी कर लें तो कई दिन दावत उड़ा सकते हैं।’ 

लोमड़ी ने घोषणा की, ‘यह मेरा काम रहा।’ लोमड़ी शेर के पास गई और अपनी जुबान में मिठास घोलकर बोली, ‘महाराज, दूत ने खबर दी हैं कि एक ऊंट सड़क किनारे बैठा है। मैंने सुना है कि मनुष्य के पाले जानवर का मांस का स्वाद ही कुछ और होता है। बिलकुल राजा-महाराजाओं के काबिल। आप आज्ञा दें तो आपके शिकार का ऐलान कर दूं?’ शेर लोमड़ी की मीठी बातों में आ गया और चापलूस मंडली के साथ चील द्वारा बताई जगह जा पहुंचा।

वहां एक कमजोर-सा ऊंट सड़क किनारे निढाल बैठा था। उसकी आंखें पीली पड़ चुकी थीं। उसकी हालत देखकर शेर ने पूछा, ‘क्यों भाई तुम्हारी यह हालत कैसे हुई?’ ऊंट कराहता हुआ बोला, ‘जंगल के राजा! आपको नहीं पता कि इंसान कितना निर्दयी होता है। मैं एक ऊंटों के काफिले में एक व्यापार माल ढो रहा था। रास्ते में मैं बीमार पड़ गया। माल ढोने लायक नहीं रहा। उसने मुझे यहां मरने के लिए छोड़ दिया। आप ही मेरा शिकार कर मुझे मुक्ति दीजिए।’ 

ऊंट की कहानी सुनकर शेर को दुख हुआ। उसके दिल में राजाओं जैसी उदारता दिखाने की बात आई।  शेर ने कहा, ‘ऊंट, तुम्हें कोई जंगली जानवर नहीं मारेगा, मैं तुम्हें अभय देता हूं, तुम हमारे साथ चलोगे और उसके बाद हमारे साथ ही रहोगे।’ चापलूस मंडली के चेहरे लटक गए। भेड़िया फुसफुसाया, ‘ठीक है। हम बाद में इसे मरवाने की कोई तरकीब निकाल लेंगे, फिलहाल शेर का आदेश मानने में ही भलाई है।’ 

इस प्रकार ऊंट उनके साथ जंगल में आया। कुछ ही दिनों में हरी घास खाने व आराम करने से वह स्वस्थ हो गया। शेर के प्रति वह ऊंट बहुत कृतज्ञ हुआ। शेर को भी ऊंट का नि:स्वार्थ प्रेम और भोलापन भाने लगा। ऊंट के तगड़ा होने पर शेर की शाही सवारी ऊंट के ही आग्रह पर उसकी पीठ पर निकलने लगी और वह चारों को पीठ पर बिठाकर चलता। 

एक दिन चापलूस मंडली के आग्रह पर शेर ने हाथी पर हमला कर दिया। दुर्भाग्य से हाथी पागल निकला। शेर को उसने सूंड से उठाकर पटक दिया। शेर उठकर बच निकलने में सफल तो हो गया, पर उसे चोंटें बहुत लगीं। शेर लाचार होकर बैठ गया। शिकार कौन करता?

कई दिन न शेर ने कुछ खाया और न सेवकों ने। कितने दिन भूखे रहा जा सकता हैं?  लोमड़ी बोली, ‘हद हो गई। हमारे पास एक मोटा ताजा ऊंट है और हम भूखे मर रहे हैं।’ 

चीते ने ठंडी सांस भरी, ‘क्या करें? शेर ने उसे अभयदान जो दे रखा है। देखो तो ऊंट की पीठ का कूबड़ कितना बड़ा हो गया है। चर्बी ही चर्बी भरी है इसमें।’ 

भेड़िए के मुंह से लार टपकने लगी, ‘ऊंट को मरवाने का यही मौका है। दिमाग लड़ाकर कोई तरकीब सोचो।’ 

लोमड़ी ने धूर्त स्वर में सूचना दी, ‘तरकीब तो मैंने सोच रखी है। हमें एक नाटक करना पड़ेगा।’ सब लोमड़ी की तरकीब सुनने लगे। योजना के अनुसार चापलूस मंडली शेर के पास गई।

सबसे पहले चील बोली, ‘महाराज, आपको भूखे पेट रहकर मरना मुझसे नहीं देखा जाता। आप मुझे खाकर भूख मिटाइए।’ लोमड़ी ने उसे धक्का दिया, ‘चल हट! तेरा मांस तो महाराज के दांतों में फंसकर रह जाएगा। महाराज, आप मुझे खाइए।’ भेड़िया बीच में कूदा, ‘तेरे शरीर में बालों के सिवा है ही क्या? महाराज मुझे अपना भोजन बनाएंगे।’ अब चीता बोला, ‘नहीं! भेड़िए का मांस खाने लायक नहीं होता। मालिक, आप मुझे खाकर अपनी भूख शांत कीजिए।’ 

चापलूस मंडली का नाटक अच्छा था। अब ऊंट को तो कहना ही पड़ा, ‘नहीं महाराज, आप मुझे मारकर खा जाइए। मेरा तो जीवन ही आपका दान दिया हुआ है। मेरे रहते आप भूखो मरें, यह नहीं होगा।’ चापलूस मंडली तो यही चाहती थी। सभी एक स्वर में बोले, ‘यही ठीक रहेगा, महाराज! अब तो ऊंट खुद ही कह रहा है।’ चीता बोला, ‘महाराज! आपको संकोच न हो तो हम इसे मार दें?’ चीता व भेड़िया एकसाथ ऊंट पर टूट पड़े और ऊंट मारा गया। 

कहानी से शिक्षा : चापलूसों की दोस्ती हमेशा खतरनाक होती है, इनसे सदा बचकर रहना चाहिए। 

पिंजरे में बंद शेर (शेर की कहानियां)

पिंजरे में बंद शेर (शेर की कहानियां)

एक गाँव के निकट एक घना जंगल था. उस जंगल में रहने वाले एक शेर ने पूरे गाँव में आतंक मचा रखा था. वह रोज़ गाँव में घुस आता और मुर्गियों, बकरियों और अन्य पालतू पशुओं को मार कर खा जाता. शाम को जंगल से गुजरने वाले राहगीर भी उसका शिकार बन जाते. उसके डर से अंधेरा होने के बाद से गाँव वालों ने अपने घरों से बाहर निकलना छोड़ दिया था.

एक दिन गाँव के साहसी युवकों ने शेर (Tiger) के आने वाले रास्ते में पिंज़रा (Cage) रखकर उसे पकड़ लिया. रात हो चली थी, इसलिए वे पिंजरे को वहीं छोड़कर अपने घर वापस आ गए.

इधर पिंजरे में बंद शेर ने पिंजरे से बाहर निकलने का बहुत प्रयास किया, लेकिन सफ़ल न हो सका. उसने मदद के लिए काफ़ी शोर मचाया, किंतु वहाँ कोई सुनने वाला नहीं था. वह थक-हार कर पिंजरे में बैठ गया.

कुछ देर बाद उस रास्ते से एक ब्राह्मण गुजरा. वह दूसरे गाँव में पूजा करके वापस लौट रहा था. शेर ने जब उसे देखा, तो आवाज़ लगाकर उसे अपने पास बुलाया और गिड़गिड़ाते हुए बोला, “ब्राह्मणदेव, मुझे इस पिंजरे से बाहर निकालिए. मैं आपका जीवन भर आभारी रहूंगा.”

ब्राहमण डरते-डरते बोला, “मैंने तुम्हें पिंजरे से बाहर निकाला, तो तुम मुझे मारकर खा जाओगे.”

“मैं वचन देता हूँ ब्राहमणदेव कि मैं आपको नहीं मारूंगा और चुपचाप जंगल चला जाऊंगा. मुझ पर विश्वास करें.” शेर ने विनती की.

ब्राह्मण एक दयालु व्यक्ति था. उसे शेर पर दया आ गई और उसने पिंजरे का दरवाज़ा खोल दिया. दरवाज़ा खुलते ही शेर पिंजरे से बाहर आ गया और ब्राह्मण पर झपटने लगा.

यह देख ब्राह्मण डर के मारे पीछे हटते हुए बोला, “तुमने मुझे वचन दिया था कि तुम मुझे नहीं मारोगे. तुम अपना वचन कैसे तोड़ सकते हो? मुझे यहाँ से जाने दो.”

“मैं कई दिनों से भूखा हूँ और मेरा शिकार मेरे सामने है. मैं तुम्हें जाने क्यों दूं? तुम्हें खाकर मैं अपनी भूख मिटाऊँगा.” शेर दहाड़ते हुए बोला.

पेड़ पर बैठा एक बंदर (Monkey) ये सारा नज़ारा देख रहा था. वह शेर की धूर्तता से वाकिफ़ था. ब्राह्मण के बचाव के लिए वह पेड़ से नीचे उतरा और बोला, “क्या बात है? आप लोगों के बीच क्या बहस चल रही है?”

पुजारी ने उसे पूरी बात बता दी, जिसे सुनकर बंदर हंस पड़ा, “क्या मज़ाक कर रहे हो, ब्राह्मणदेव? जंगल का राजा इतना बड़ा शेर इस छोटे से पिंजरे में कहा समा सकता है? मैं तो ये मान ही नहीं सकता.”

इस पर शेर बोला, “ये बिल्कुल सच है.”

“अपनी आँखों से देखे बिना मैं आपकी बात भी नहीं मान सकता वनराज.” बंदर शेर से बोला.

“मैं अभी तुम्हें इस पिंजरे में जाकर दिखाता हूँ.” कहकर शेर पिंजरे के अंदर चला गया.

“लेकिन ये पिंजरा तो खुला हुआ है. आप तो इससे खुद ही बाहर आ सकते थे.” बंदर बोला..

बंदर की इस बात पर शेर चिढ़ गया और बोला, “इसका दरवाज़ा बाहर से बंद था.”

बंदर ब्राह्मण से बोला, “ज़रा दिखाओ तो ये दरवाज़ा कैसे बंद था?”

ब्राह्मण ने आगे बढ़कर पिंजरे का दरवाज़ा बंद कर दिया. शेर फिर से पिंजरे में बंद हो चुका था.

बंदर ब्राह्मण से बोला, “इस धूर्त शेर को यहीं बंद रहने दो. अपना वचन तोड़ने का फल इसे मिलना चाहिए.”

इसके बाद बंदर और ब्राह्मण वहाँ से चलते बने. अगले दिन गाँव वालों ने आकर शेर का काम-तमाम कर दिया.

कहानी से सीख  – धूर्तता का परिणाम बुरा होता है। (1)

शेर और चार बैल पंचतंत्र की कहानी | sher aur char bel Panchtantra ki kahani in Hindi | lion and four bulls

एक समय की बात है। एक शेर ने चार बैलों को घास खाते हुए देखा। शेर ने एक बैल पर हमला कर दिया। सभी बैल एकजुट हो गए और उन्होंने शेर को खदेड़ दिया। उनमें से एक बैल ने कहा, “अगर हम एक साथ रहे तो शेर को भी हरा सकते हैं।”

सभी बैल खुशी से घास चरने लगे। अगले दिन शेर ने फिर एक बैल पर हमला किया। परंतु फिर इस बार भी बैलो ने मिलकर उसे हरा दिया। शेर समझ गया कि जब तक बैलो में एकता है, वह उन्हें नहीं हरा सकता। उसने उन्हें हराने की एक योजना बनाई। वह एक बैल के पास गया और उसने बैलो की शक्ति की प्रशंसा करते हुए कहां, “बैल तुम कितने बहादुर और ताकतवर हो परंतु तुम्हारे दोस्त तुम्हें कमजोर समझते हैं।”

बैल को अपने दोस्तों पर बहुत गुस्सा आया और उसने उनसे दोस्ती तोड़ने का फैसला किया।

शेर ने दूसरे बैलों के पास जाकर वही बात कही। अगले दिन शेर दूर से छुपकर उन बैलो को देखने लगा। उसने देखा कि वह सभी आपस में लड़ रहे हैं। झगड़े के बाद चारों बैल अलग-अलग दिशा में चले गए।

अपनी योजना को सफल होता देख शेर खुश हो गया। वह सोचने लगा, “आज तो मुझे बढ़िया खाना खाने का मौका मिला है।”

उसने पहले बैल पर हमला कर दिया। कोई और बैल उसकी मदद के लिए नहीं आया। और शेर उसे मारकर खा गया। शेर इसी तरह एक-एक करके बालों पर हमला करता रहा।

किसी भी बैल में इतनी शक्ति नहीं थी कि वह अकेला शेर का सामना कर सके। शेर ने चारों बैलो को मार दिया।

नैतिक शिक्षा :– एकता में बल होता है।

Lion Ki Kahani : बूढ़ा शेर और राहगीर 

एक जंगल में एक बूढ़ा शेर (Tiger) रहता था. बुढ़ापे के कारण उसका शरीर जवाब देने लगा था. उसके दांत और पंजे कमज़ोर हो गए थे. उसके शरीर में पहले जैसी शक्ति और फुर्ती नहीं बची थी. ऐसी हालत में उसके लिए शिकार करना दुष्कर हो गया था. वह दिन भर भटकता, तब कहीं कोई छोटा जीव शिकार कर पाता. उसके दिन ऐसे ही बीत रहे थे.

एक दिन वह शिकार की तलाश में भटक रहा था. पूरा दिन निकल जाने के बाद भी उसके हाथ कोई शिकार न लगा. चलते-चलते वह एक नदी के पास पहुँचा और पानी पीकर सुस्ताने के लिए वहीं बैठ गया. 

वह वहाँ बैठा ही था कि उसकी दृष्टि एक चमकती चीज़ पर पड़ी. पास जाकर उसने देखा, तो पाया कि वह एक सोने का कंगन था. सोने का कंगन देखते ही उसके दिमाग में शिकार को अपने जाल में फंसाने का एक उपाय सूझ गया.

वह सोने का कंगन हर आने-जाने वाले राहगीर को दिखाता और उसे यह कहकर अपने पास बुलाता, “मुझे ये सोने का कंगन मिला है. मैं इसका क्या करूंगा? मेरे जीवन के कुछ ही दिन शेष है. सोचता हूँ इसका दान कर कुछ पुण्य कमाँ लूं. ताकि कम से कम मरने के बाद मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो. मेरे पास आओ और ये कंगन ले लो.”

शेर जिसे ख़तरनाक जानवर का भला कौन विश्वास करता? कोई उसके पास नहीं आया और दूर से ही भाग खड़ा हुआ. बहुत देर हो गई और कोई सोने के कंगन के लालच में उसके पास नहीं आया. शेर को लगने लगा कि उसका उपाय काम नहीं करने वाला है. तभी नदी के दूसरी किनारे पर उसे एक राहगीर दिखाई पड़ा.

शेर सोने का कंगन हिलाते हुए जोर से चिल्लाया, “महानुभाव! मैं ये सोने का कंगन दान कर रहा हूँ. क्या आप इसे लेकर पुण्य प्राप्ति में मेरी सहायता करेंगे?”

शेर की बात सुनकर राहगीर (Traveller) ठिठक गया. सोने के कंगन की चमक से उसका मन लालच से भर उठा. किंतु उसे शेर का भी डर था. वह बोला, “तुम एक ख़तरनाक जीव हो. मैं तुम्हारा विश्वास कैसे करूं? तुम मुझे मारकर खा गए तो?”

इस पर शेर बोला, “अपने युवा काल में मैंने बहुत शिकार किया है. लेकिन अब मैं वृद्ध हो चला हूँ. मैंने शिकार करना छोड़ दिया है. मैं पूरी तरह शाकाहारी हो गया हूँ. बस अब मैं पुण्य कमाना चाहता हूँ. आओ मेरे पास आकर ये कंगन ले लो.”

राहगीर सोच में पड़ गया. लेकिन लालच उसकी बुद्धि भ्रष्ट कर चुका था. शेर तक पहुँचने के लिए उसने नदी में छलांग लगा दी. वह तैरते-तैरते दूसरे किनारे पहुँचने ही वाला था कि उसने अपना पैर कीचड़ में धंसा पाया. वहाँ एक दलदल था.

दलदल से बाहर निकलने वह जितना हाथ-पैर मारता, उतना ही उसमें धंसता चला जाता. ख़ुद को बचाने के लिए उसने शेर को आवाज़ लगाई. शेर तो इसी मौके की तलाश में था. उसने अपने पंजे में दबोचकर राहगीर को दलदल से बाहर खींच लिया और उसके सोचने-समझने के पहले ही उसका सीना चीर दिया. इस तरह सोने के कंगन के लालच में राहगीर अपनी जान गंवा बैठा।

सीख – लालच बुरी बाला है।

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शुक्रिया

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2 Responses

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