47+ अकबर बीरबल की कहानी | Akbar Birbal Ki Kahani

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Akbar Birbal Ki Kahani: हमारे आसपास जहां पर भी अक्लमंदी, हाजिर जवाबी  और चतुराई की बात आती है तो फिर बीरबल का नाम वहां जरूर लिया जाता है। अकबर बीरबल  के दिलचस्प किस्से हर जगह फैले हुए हैं बादशाह अकबर के नवरत्नों में बीरबल को सबसे अनमोल रत्न के रूप में जाना जाता है। 

अकबर और बीरबल की कहानियां (Akbar Birbal Stories in Hindi)   दुनियाभर में प्रचलित है जो हर किसी को हंसाने मुस्कुराने के साथ ही एक बढ़िया सीख भी दे जाती है।  अकबर बीरबल की कहानियां  सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत है। 

 जहांपना अकबर के दरबार में कई बार ऐसी मुश्किल घड़ियां और पल आए जिसे बीरबल ने अपनी चतुराई और अक्लमंदी की वजह से  खूब आसानी से  सुलझा दिया।  और साथ ही साथ बीरबल ने अकबर के द्वारा दी गई सभी चुनौतियों को  सम्मानपूर्वक स्वीकार करके उन परेशानियों को हल भी आसानी से निकाला। 

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अजीब इनाम (Akbar birbal stories in hindi)

अजीब इनाम (Akbar birbal stories in hindi)

एक दिन कुछ गरीब लोगों ने बीरबल से शिकायत की कि शाही रक्षक भ्रष्ट थे। वे एक शिकायत के साथ सम्राट के दरबार में गए, लेकिन उन रिश्वत लेने वालों ने उन्हें अंदर नहीं जाने दिया। गरीबों की शिकायतों को सुनकर बीरबल चिंतित हुए और उन्होंने खुद इसकी जांच करने का फैसला किया। अगले दिन वह एक फारसी कवि की वेशभूषा में दरबार की ओर चल दिया। दरबार के मुख्य द्वार पर पहुँचने पर उन्होंने पहरेदारों से कहा, ‘मुझे सम्राट के दरबार में ले चलो। मैं उनसे मिलना चाहता हूं। ‘

“इस समय हम आपको अंदर नहीं जाने दे सकते।” चौकीदार ने कहा।

“क्यों नहीं ?” कवि बने बीरबल ने आश्चर्य से पूछा।

“राजा सलामत अभी भी काम में व्यस्त हैं।” एक गार्ड ने कहा।

“मैं सम्राट सलामत से मिलने के लिए केवल फारस से भारत आया हूं। मैं उन्हें कुछ शेर बताना चाहता हूं, जो मैंने उनके लिए विशेष रूप से लिखे हैं। “बीरबल ने कहा,”

गार्ड में से एक ने कहा अच्छा, हम आपको जाने देंगे, लेकिन एक शर्त है। शेर के कहने पर आपको जो भी इनाम मिलेगा, उसका आधा हिस्सा आप हमें देंगे|  बीरबल ने तुरंत उनकी शर्त मान ली। वह उन्हें बेनकाब करने के लिए ही वहाँ आया था।

“लेकिन एक बात ध्यान में रखना। सम्राट सलामत के दरबार में इस बारे में कुछ मत कहना। तुम पहली बार यहां आए हो, इसलिए यहां के रीति-रिवाजों को नहीं जानते। यहां कानून यह है कि इनाम का आधा हिस्सा दिया जाता है। गार्ड। राजा स्वयं सभी को इस बारे में जानता है। “गार्ड ने हॉकी की तरफ इशारा किया। बीरबल ने “पहरेदारों की स्थिति” पहले ही कबूल कर ली थी। इसलिए वे उसे राजा के दरबार में ले गए । वहाँ बीरबल ने राजा को कई अद्भुत शेर सुनाए। यहाँ तक कि दरबारी भी उन शेरों को सुने बिना नहीं रह सकते थे। सम्राट ने उनके शेरों की प्रशंसा करते हुए कहा, ‘भई वाह! हमारे पास आपकी कविता को प्रशंसा देने के लिए आपको पर्याप्त शब्द नहीं मिल रहे हैं। हम आपको आपकी कड़ी मेहनत के लिए पुरस्कृत करना चाहते हैं। “

‘हुजूर, क्या मुझे मेरा वांछित इनाम मांगा जा सकता है?’ बीरबल एक कवि के रूप में बोले।

“तुम क्या चाहते हो?” अकबर ने अपनी तेज आवाज में पूछा।

“मुझे सौ कोड़े मारना।” बीरबल ने कहा।

बीरबल की बात सुनकर पूरे दरबार में सन्नाटा छा गया। सभी दरबारी आश्चर्य से एक-दूसरे को देखने लगे। बादशाह ने भी विस्मय में पूछा, ‘तुम अपने लिए ऐसा इनाम क्यों मांग रहे हो?’

‘जहाँपनाह, यह सब इनाम मेरे लिए नहीं है। इसमें मेरे भी हिस्सेदार हैं। “बीरबल ने कहा, जो एक कवि बन गया।

‘तुम्हारा साथी कौन है?’ राजा को आश्चर्य नहीं हुआ, ‘कौन आपका इनाम साझा करना चाहता है?’

चौकीदार, हजूर! “बीरबल ने कहा,” बीरबल ने साडी बाटे बता दी की इस शर्त पर, उन्होंने मुझे अंदर जाने दिया।

“दरोगा-ए-महल, गार्डों को तुरंत इनाम का चाबुक मिलना चाहिए।” सम्राट ने आदेश दिया। फिर उन्होंने बीरबल की ओर मुखातिब होते हुए कहा, “हम चाहते हैं कि आप हमारे दरबार में रहे और ऐसेही सबका मनोरंजन करते रहे |

बकरी का खा पीकर भी मोटा ना होना (Akbar Birbal Ki Kahani)

बकरी का खा पीकर भी मोटा ना होना (Akbar Birbal Ki Kahani)

एक बार बादशाह अकबर ने बीरबल और अन्य खास दरबारियों के साथ बैठे खाना खा रहे थे। तभी उनकी नजर अपने दरबारियों की बढ़ती हुई तोंद की ओर गयी और उनको मजाक करने की सूझी। उन्होंने कहा , “अगर किसी को तर माल खाने को मिले तो वह अवश्य ही मोटा हो जाएगा। ” यह सुनते ही दरबारी भांप गए , की बादशाह अकबर का इशारा उनकी तोंद की तरफ है।

उधर बीरबल की भी तोंद कुछ समय से थोड़ी निकल आयी थी , तो उनको भी बादशाह का यह मजाक कुछ अटपटा सा लगा। बीरबल की नजरें दरबारियों से मिली तो उनकी शक्ल बता रही थी की वो बीरबल से कहना चाहते थे कि कृपया आप हमारी और अपनी बेइज्जती का बदला बादशाह से किसी प्रकार लीजिये। 

बीरबल ने उन्हें आँखों में ही समझा दिया की वो निश्चित रहें। तब बीरबल बादशाह से बोले , “नहीं महाराज , ऐसा बिलकुल नहीं है , कोई तर माल खाकर मोटा हो जायेगा , ऐसा निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। ”

बादशाह , अपनी बात बीरबल द्वारा काटे जाने से खिन्न हो गए और बोले , “बीरबल , क्या तुम यह साबित कर सकते हो ?” बीरबल बोले , “जी महाराज मैं यह बिलकुल साबित कर सकता हूँ। ” बादशाह ने बगीचे में बंधी हुई बकरी की और देखते हुए कहा , “तो ठीक है बीरबल, तुम इस बकरी को ले जाओ , इसके खाने पीने के लिए तर माल का इंतजाम हम करेंगे , हमारे सैनिकों की निगरानी में तुम खुद इसे तर माल खिलाओगे , छह महीने के बाद इसका वजन करेंगे , यदि आज के वजन से ज्यादा निकला तो तुम्हारी खैर नहीं , वर्ना हम तुम्हारी बात मान जायेंगे। “

बकरी बीरबल के घर भिजवा दी गयी। अकबर के विशेष चार सैनिक तर माल , यानि की हरे चारे के साथ साथ , काजू , बादाम , देसी घी इत्यादि लेकर बकरी के लिए लेकर पहुँच जाते। उन सैनिकों की उपस्थिति में बीरबल को वह सब बकरी को खिलाना होता। जब बकरी पेट  खा चुकी होती होती तभी वो सैनिक वहाँ से लौटते। इस प्रकार छह महीने भी बीत गए और वह दिन भी आ पहुंचा जब बीरबल को उस बकरी को लेकर दरबार में उपस्थित होना था। बीरबल उस बकरी को दरबार में लेकर आ गए।  बकरी का वजन किया गया , पर ये क्या बकरी का वजन तो पहले से काफी घट गया था।  सभी दरबारियों ने चैन की साँस ली। अकबर यह देखकर हैरान थे और बोले , “भई बीरबल , तुम्हें मानना पड़ेगा। आखिर हम हारे तुम जीते , पर यह तो बताओ कि तुमने यह किया कैसे।

बीरबल बोले , “बहुत सरल था महाराज , जहाँ आपका मानना था की तर माल खाने से किसी की तोंद निकल आती है , वहीं मेरा मानना था , सेहत में सुधर केवल बेफिक्री के खाने से ही आता है। आपके सैनिकों के सामने तर माल खिलने के बाद , मैं इस बकरी को चिड़ियाघर में शेर के पिंजरे से बाँध आता था। जहाँ शेर पिंजरे में होने की वजह से इसे खा तो नहीं पाता था पर इस पर बार बार झपटता रहता था। शेर के बार बार इस पर झपटने से यह सारी रात बिना सोये , बहुत डरी सहमी रहती थी, जिसके कारण ये मोटी होने के बजाय दुबली होती गयी।” अकबर समझ गए कि एक बार फिर बीरबल ने उनको अपनी बुद्धि मता का परिचय दे दिया है। अकबर यह सोच ही रहे थे तभी बीरबल ने कहा , “गुस्ताखी माफ़ जहाँपनाह , पर तोंद तो आपकी भी निकल आयी है। “

बीरबल की बात सुनकर सभी दरबारी मन ही मन , मुस्कुराने लगेऔर बादशाह अकबर कहकहा लगाकर हंसने लगे।

बुद्धि से भरा बर्तन (akbar birbal kahaniyan)

बुद्धि से भरा बर्तन (akbar birbal kahaniyan)

अकबर ने एक बार बीरबल को किसी वजह से बदनाम किया और उसे अपने राज्य से भगा दिया । बीरबल ने एक दूर के गाँव जाकर अपनी एक नई पहचान बनाई और एक किसान के रूप में काम करना शुरू कर दिया। कुछ हफ्ते के बाद, अकबर ने बीरबल को याद करना शुरू कर दिया और इसलिए अपने सैनिकों से कहा कि वह कहाँ है और उसे वापस राज्य में लाएँ। सैनिकों ने राज्य के एक छोर से दूसरे छोर तक खोज की लेकिन बीरबल को नहीं खोज सके।

फिर अकबर ने बीरबल को खोजने का विचार बनाया। उसने पूरे राज्य में यह संदेश भेजा कि प्रत्येक गाँव के मुखिया को उसे बुद्धि से भरा हुआ एक बर्तन भेजना होगा। जो कोई भी बुद्धि से भरा बर्तन नहीं भेज सकता, वह सोने और हीरे से बर्तन उन्हें भेज सकता है।

गाँव वाले खड़े हो गए और आश्चर्यचकित हो गए कि अकबर को बुद्धि का बर्तन कैसे भेजा जाए।

अकबर को लगा कि बीरबल को शहर में वापस लाने का एकमात्र तरीका एक चुनौती ही है।

बीरबल के गाँव के लोग घोषणा को बेतुका समझ रहे थे और सोच रहे थे कि बर्तन को कैसे भरा जाए। बीरबल ने मदद करने के लिए कदम बढ़ाया और राजा को जो वह चाहते थे उसे देने का एक तरीका सोचा। उसने बेल से अलग किए बिना एक छोटा तरबूज बर्तन में डाल दिया। उसने इसे हर दिन पानी दिया और इसे इतना बड़ा किया कि बर्तन में सारा तरबूज से भर गया।

फिर बीरबल ने तरबूज को बेल से अलग किया और बर्तन के साथ राजा के पास भेजा। उस पर एक निर्देश था, यदि आप सावधानी से बिना कटे तरबूज को बाहर निकालते हैं तो आपको बर्तन में बुद्धि मिल सकती हैं। अकबर ने महसूस किया कि केवल बीरबल ही बर्तन भेज सकता था। उन्होंने स्वयं गाँव की यात्रा की और बीरबल को वापस राजधानी ले आए।

नैतिक: यहां तक कि सबसे कठिन सवालों का जवाब बड़ी चतुराई से दिया जा सकता है अगर आप अलग सोचते हैं तो।

लालची नाई – अकबर बीरबल के किस्से (Akbar Birbal Hindi Kahaniya)

लालची नाई - अकबर बीरबल के किस्से (Akbar Birbal Hindi Kahaniya)

बादशाह अकबर का बर्बर बीरबल से बहुत ईर्ष्या करता था। वह बीरबल को नुकसान पहुंचाने के लिए कुछ भी करने को तैयार था। एक दिन उसने बीरबल को रास्ते से हटाने के लिए एक योजना बनाई।

एक दिन जब वह सम्राट को शेविंग कर रहा था, तो उसने उससे कहा, “हजारे आला, क्या आप इस धरती के बाद के जीवन पर भरोसा करते हैं?”
“हां मैं करता हूं।” राजा ने जवाब दिया।

‘क्या आपको कभी यह जानने की इच्छा नहीं हुई कि आपके पूर्वज स्वर्ग में कैसे रह रहे हैं?’ नाई ने पूछा।

‘कई बार मेरे मन में आया, पर कैसे पता लगाया जाए? मुझे इसका कोई तरीका नहीं पता। “राजा ने बता दिया।

‘हुजूर, मुझे मालूम है कि मुझे स्वर्ग में कैसे जाना है। कुछ आने वाले महात्माओं ने मुझे यह विधि बताई थी। आप सिर्फ वही चुनें, जिसे आप पूर्वजों की खोज के लिए भेजना चाहते हैं। वह व्यक्ति निश्चित रूप से बहुत बुद्धिमान होना चाहिए। ”नाई ने कहा।

‘बीरबल, और कौन? मैं उसे स्वर्ग भेजूंगा, “राजा ने चिरपरिचित ढंग से कहा,” लेकिन एक बात बताओ। यह सब कैसे होगा? ‘

‘बहुत आसान है, हुजूर। एक चिता जलाई जाएगी। बीरबल को लाठी से ढंका जाएगा और उन्हें लाठी से ढंका जाएगा। जब चिता धू-धू कर जलने लगेगी तो बीरबल महाराज अपने धुएं के साथ जन्नत में पहुंचेंगे। ”नाई ने अपने होंठ चबाते हुए कहा।

बादशाह समझ गया कि नाई बीरबल को नुकसान पहुंचाने के लिए यह सब बकवास कर रहा था, लेकिन उसे बीरबल की क्षमता पर पूरा भरोसा था। इसलिए उन्हें किसी बात की चिंता नहीं थी। उसी शाम, उन्होंने बीरबल को अपने महल में बुलाया और उन्हें पूरी बात बताई। बीरबल ने हल्की मुस्कान के साथ पूरी बात सुनी। समय देखिए, इस बार मैं नाई महाराज का सामना कर रहा हूं। सम्राट हंस पड़ा। बीरबल ने अपने होंठ चबाते हुए कहा, ” इसे पछतावा होगा, नाई इसे पछताएगा। ” अच्छा, मैं कुछ दिनों के बाद चिता पर चढ़ जाऊंगा। मुझे कुछ समय दे। ‘

बादशाह ने बीरबल को पूछने के लिए समय दिया। बीरबल अपने गुप्तचरों से पता लगाता है कि चिता का स्थान कहाँ था, जहाँ नाई ने उन्हें जलाने की योजना बनाई थी। उसने चुपके से उस चिता के नीचे से अपने घर तक एक सुरंग खोदी। जब उनकी तैयारी पूरी हो गई, तो उन्होंने घोषणा की कि वे चिता पर चढ़ने के लिए तैयार हैं। नाई खुद बीरबल को अपनी देखरेख में साइट पर ले गया। बीरबल उस अंतिम संस्कार की चिता में बैठ गए। फिर चिता को आग लगा दी गई। बीरबल सुरंग के रास्ते चुपचाप घर लौट आया। बार्बर जो की खुशी की कोई सीमा नहीं थी। उसे एहसास हो रहा था कि उसने बीरबल के ठिकाने को उसकी चतुराई,। है। बीरबल के प्रतिद्वंद्वी दरबारी भी बहुत खुश थे। उन्होंने अदालत में बीरबल के पद को लेने की योजना भी शुरू की।

अपने घर में कुछ हफ़्ते बिताने के बाद, बीरबल, एक दिन, अचानक, दरबार में पहुँचे। घर में रहने के दौरान, उन्होंने न तो अपने बाल काटे थे और न ही मुंडन कराया था। उन्हें देखते ही राजा खुशी से झूम उठे और उनका स्वागत करते हुए बोले, “आओ, बीरबल, आओ, जन्नत में हमारे रिश्तेदारों की क्या हालत है?”

‘जहाँपनाह, स्वर्ग में सब कुछ ठीक है। आपके रिश्तेदार भी मस्ती में हैं। वहाँ तुम्हारे पिता और दादा तुम्हारे लिए प्रार्थना करते हैं। वैसे, स्वर्ग में सुख सुविधाओं की कमी नहीं है। फिर भी एक समस्या है। वहां कोई नाई नहीं है। आप देख रहे होंगे कि मैं भी न तो अपने बाल ठीक करवा पाया और न ही दाढ़ी। आपके पूर्वजों के बाल और दाढ़ी भी काफी बढ़ गए हैं। उन्होंने आपको एक अच्छा नाई उन्हें भेजने के लिए कहा है। ‘

बीरबल की बात सुनकर राजा हँसा। वे बीरबल की योजना को अच्छी तरह समझते थे। उसने तुरंत कहा, “हाँ, क्यों नहीं?” मैं केवल उनके लिए अपने शाही नाई भेजूंगा। “यह कहते हुए, सम्राट ने नाई को स्वर्ग जाने के लिए तैयार करने का आदेश दिया। नाई ने स्वर्ग भेजे जाने का कड़ा विरोध किया, लेकिन राजा ने उसकी बात नहीं मानी। नाई उस दिन को कोस रहा था, जब उसने बीरबल को जलाने की योजना बनाई थी। दिन, वह चिता पर जिंदा जल गया। इस तरह बीरबल ने अपने प्रतिद्वंद्वी नाई से छुटकारा पा लिया।

एक कुआँ खरीदने वाला किसान (Stories Of Akbar Birbal In Hindi)

एक कुआँ खरीदने वाला किसान (Stories Of Akbar Birbal In Hindi)

एक गरीब किसान ने एक बार एक अमीर आदमी से एक कुआं खरीदा ताकि वह कुएं से पानी का उपयोग करके अपनी जमीन की सिंचाई कर सके। किसान ने अमीर आदमी द्वारा उद्धृत मूल्य का भुगतान किया। अगले दिन, जब किसान कुएं से पानी निकालने गया, तो अमीर आदमी ने उसे रोक दिया और उसे पानी निकालने से मना कर दिया। उसने कहा कि किसान ने केवल कुआँ खरीदा था न कि उससे पानी। इसलिए, वह कुएं से पानी नहीं निकाल सकता।

दुखी किसान को समझ नहीं आ रहा था की उसे अब क्या करना चाहिए, जिसके बाद वह किसान राजा के दरबार में गया और राजा अकबर को अपनी दशा के बारे में बताया। अकबर ने मामला बीरबल को सौंप दिया।

अकबर ने बीरबल से गरीब किसान की समस्या को हल करने में मदद करने के लिए कहा।

बीरबल ने उस अमीर आदमी से मुलाकात की जो किसान को परेशान कर रहा था। अमीर आदमी ने किसान को जो कुछ बताया, उसे दोहराया, बीरबल ने कहा, “चूंकि आपने किसान को कुआँ बेचा है न कि पानी तो, इसलिए आपको सारा पानी कुंए मे रखने के लिए किसान को किराए का भुगतान करना होगा। 

अमीर आदमी को एहसास हुआ कि उसका काम नहीं चलने वाला है और किसान को कुएं के पानी का इस्तेमाल करने देना चाहिए। 

नैतिक: लोगों को धोखा देने की कोशिश न करें क्योंकि इसकी कीमत आपको भी चुकानी पड़ सकती है।

सबसे मुश्किल काम (Moral Akbar Birbal Ki Kahani)

सबसे मुश्किल काम (Moral Akbar Birbal Ki Kahani)

Akbar birbal stories in Hindi Language एक दिन बीरबल दरबार में देर से पहुँचे। अकबर ने पूछा क्या बात है ? बीरबल आज देर से क्यों आये? बीरबल ने कहा- जहांपनाह, आज मुझे बच्चों को संभालना पडा।

बादशाह को यह सुनकर बहुत आश्चर्य हुआ, बोले यह भी कोई काम हुआ? जहांपनाह बच्चों को संभालने का काम सबसे कठिन है। जब यह काम सिर पर आ पडता है तो कोई भी काम समय पर नहीं हो पाता।

बादशाह बाले- बीरबल बच्चों को बहलाना तो सबसे आसान काम है, उनके हाथ में कोई खाने की चीज दे दो, या कोई खिलोना थमा दो बस काम बन गया।  बीरबल ने कहा- बादशाह आपको इसका अनुभव नहीं है इसलिए आपको यह काम आसान लगता है। जब आप यह साफ-साफ़ अनुभव करेंगे तो आपको मेरी बात समझ में आ जायेगी। चलिए मैं छोटे बच्चे का अभिनय करता हूं और आप मुझे बहला कर देखिए।

अकबर तुरन्त राजी हो गये बीरबल छोटे बच्चे की तरह रोने लगे। अब्बा मुझे दुध चाहिए, बादशाह ने फोरन दुध मंगवा लिया । दुध पीने के बाद बीरबल ने कहा अब मुझे गन्ना चुसना है।

बादशाह ने गन्ना मंगवाया और उसके छोटे-छोटे टुकडे करवा लिये, मगर बीरबल ने उसे छुआ तक नहीं वह रोता ही रहा। रोते-रोते वह बोला अब्बा मुझे पूरा गन्न चाहिए। बीरबल का रोना जारी रहा। बादशाह ने हारकर दुसरा गन्ना मंगवाया। मगर बच्चा बने बीरबल रोते-रोते बोले यह गन्ना मुझे नहीं चाहिए, मुझे तो पहले वाला ही पूरा गन्ना चाहिए।

यह सुनकर बादशाह झल्ला उठे उन्होनें कहा बकवास मत कर चुपचाप चुस ले। कटा हुआ गन्ना अब पुरा कैसे हो सकता है ?  नहीं मैं तो पहले वाला गन्ना हीे लूंगा। बादशाह यह सुनकर क्रोधित हो उठे। अरे है कोई यहां ? इस बच्चे को यहां से ले जाओ। बीरबल हंस पडे। बादशाह को स्वीकार करना पडा कि बच्चों को संभालना वास्तव में बहुत मुश्किल काम है।

आदमी जो गधा है – नैतिक के साथ बीरबल कहानी

आदमी जो गधा है - नैतिक के साथ बीरबल कहानी


एक दिन बादशाह अकबर सारा काम पूरा करने के बाद मनोरंजन की मुद्रा में बैठे थे। लेकिन बीरबल ऐसे माहौल में भी शांत बैठे थे। उस दिन उन्हें हँसी में कोई दिलचस्पी नहीं थी। बीरबल के बिना, राजा की बैठक कैसे पूरी होती? इसलिए, उन्हें उकसाने के लिए, राजा ने उन्हें छेड़ा, “बीरबल, यह बताओ कि तुम्हारे और गधे के बीच कितना अंतर है?”

ईर्ष्यालु दरबारियों ने सम्राट का प्रश्न सुना और हंसने लगे। बीरबल कहाँ चुप रहने वाले थे? उसने चुपचाप अपना सर नीचे झुका लिया जैसे कि जमीन को देखते हुए कुछ गणना कर रहा हो। उनकी मुद्रा बहुत गंभीर थी और वह अपने हाथों पर कुछ गिनती कर रहे थे।

“क्या गिन रहे हो, बीरबल?” अकबर ने थोड़ी हँसी के साथ पूछा।

‘मैं अपने और गधे के बीच की दूरी का पता लगाने की कोशिश कर रहा था। मैंने गिना है, “बीरबल ने अपनी आँखें अकबर की तरफ उठाईं और कहा,” यह सोलह फीट दिखता है। “

अकबर इस जवाब पर बेहद लज्जित हुए और थोड़ी देर के लिए अपनी आँखें नहीं झुका सके। दरअसल, बीरबल अकबर के सिंहासन के सामने खड़ा था और उसने अपने और अपने बीच की दूरी बताई। इस तरह, बीरबल ने सम्राट द्वारा किए गए मजाक को उलट दिया।

कोई अमीर कोई गरीब क्यों – बीरबल की शिक्षाप्रद कहानी

अकबर बीरबल से तरह-तरह के अजीबो-गरीब प्रश्न पूछा करते थे। कुछ प्रश्न ऐसे भी होते थे जो वह बीरबल की बुद्धि की परीक्षा लेने के लिए पुछते थे। एक बार अकबर बीरबल से बोले – बीरबल इस दुनिया में कोई अमीर है कोई गरीब हैं ऐसा क्यों होता है ?

सब लोग ईश्वर को परमपिता कहते हैं इस नाते सभी आदमी उनके पुत्र ही हुए। पिता अपने बच्चों को सदा खुशहाल देखना चाहता हैं फिर ईश्वर परमपिता होकर क्यों किसी को आराम का पुतला बनाता हैं और किसी को मुट्ठीभर अनाज के लिए दर-दर भटकाता है ?

आलमपनाह अगर ईश्वर ऐसा न करे तो उसकी चल ही नहीं सकती। वैसे तो दुनिया में पांच पिता कहे गये हैं इस नाते आप भी अपनी प्रजा के पिता हे फिर आप किसी को “हजार” किसी को “पांच-सौं” किसी को पचास तो किसी को सिर्फ “पांच-सांत रुपये” ही वेतन देते है।

जबकि एक महीने तक आप सभी से सख्ती से काम लेते हैं। ऐसा क्यो ? सभी को एक ही नजर से क्यो नहीं देखते ? बीरबल ने अकबर के प्रश्न का उत्तर देने के बजाय प्रश्न किया अकबर तुरन्त कोई भी जवाब नहीं दे सके उल्टे सोच में पड गये।

अकबर को इस तरह खयालों में खोया देखकर बीरबल बोले – “जो जैसा काम करता हें उसे वैसी ही मजदूरी मिलती है।” और इसी पर दुनिया का कारोबार चलता है। अगर ऐसा न हो तो यह दुनिया चल ही नहीं सकती। इसी तरह ईश्वर का न्याय होता है।

वह कभी नही चाहता कि दुनिया के लोग दुख उठाये, ईश्वर हमेशा उन्हें मुश्किलों से बचाता है लेकिन जो कोई उसकी बात नहीं मानता उसे सजा भूगतनी पडती हे। जो जैसा काम करता हैं उसे वैसा ही फल मिलता है। जो ज्यादा मेहनत करता है वह धनवान बनता है जो कम काम करता हैं वह गरीब होता है। इसमें ईश्वर का क्या दोष ?

बीरबल की नियति – अकबर बीरबल की हिंदी कहानियाँ

एक बार बादशाह अकबर ने एक गाँव में अपना दरबार स्थापित किया। उसी गाँव में एक युवा ब्राह्मण किसान महेश दास भी रहते थे। महेश ने बादशाह अकबर की घोषणा सुनी की सम्राट उस कलाकार को एक हजार स्वर्ण मुद्राएँ देगा जो उसकी जीवित तस्वीर बना देगा। हिंदी पीडीएफ डाउनलोड करने के लिए यहां क्लिक करें
एक निश्चित दिन, राजा के दरबार में कलाकारों की भीड़ थी। सभी के हाथों में बादशाह की तस्वीर थी। दरबार में हर कोई यह जानने के लिए उत्सुक था कि एक हज़ार सोने के टुकड़ों का इनाम किसे मिलता है।

अकबर एक ऊँचे आसन पर बैठा और एक के बाद एक कलाकारों के चित्रों को देखकर अपने विचारों से एक-एक करके सभी चित्रों को नकारता चला गया और कहा कि यह वैसा नहीं है जैसा मैं अभी हूँ।

जब महेश की बारी आई, जिसे बाद में बीरबल के नाम से जाना जाने लगा, तब तक अकबर परेशान हो गया और बोला, “क्या तुम भी मुझे बाकी सभी की तरह एक तस्वीर लाए हो?” लेकिन बिना किसी डर के महेश ने शांत स्वर में कहा, “मेरे राजा, इसमें खुद को देखिए और खुद को संतुष्ट कीजिए।”

हैरानी की बात यह है कि यह सम्राट की तस्वीर नहीं थी बल्कि महेश के कपड़ों से बना दर्पण था।

यह देखकर सभी ने एक स्वर में कहा, “यह राजा की सबसे अच्छी तस्वीर है।”
अकबर ने महेश दास को सम्मानित किया और उन्हें एक हजार सुनहरे टुकड़े भेंट किए। सम्राट ने महेश को एक राज्य का टिकट दिया और उसे अपनी राजधानी फतेहपुर सीकरी आने का निमंत्रण दिया। वही महेश दास बाद में अकबर के भरोसे बीरबल बन गए।

Moral of the Story – अपने ग्राहक को वह दें जो वह चाहता है और जो उसकी जरूरतों को पूरा करता है। अकबर किसी भी कलाकार द्वारा अपना चित्रण नहीं चाहता था लेकिन वास्तविकता चाहता था, जो केवल एक दर्पण दिखा सके।

बीरबल की खिचड़ी Birbal Ki Khichdi Story in Hindi

ठंड का समय था दिल्ली में बहुत ही ज्यादा ठंड पड़ी थी। उस समय बादशाह अकबर और बीरबल दोनों ही सुबह-सुबह बगीचे में घूम कर रहे थे। बादशाह अकबर ने बीरबल से कहा, “बीरबल देख रहे हो कितनी ज्यादा ठंड है। ऐसा लग रहा है कि अगर कोई बिना गर्म कपड़ों के बाहर आ जाए तो वह तुरंत ही बर्फ की तरह जम जाएगा।”

“जी हां जहांपना बिल्कुल सही कह रहे हैं आप।” बीरबल ने अकबर से कहा।

“अच्छा बीरबल यह बताओ इतनी ठंड में भी तुम यहां आ गए। लेकिन ऐसे बहुत से लोग होंगे जो इतनी सर्दी में घर से बाहर नहीं निकल रहे होंगे और अपने कामकाज को भी नहीं कर रहे होंगे।”

“जी हां, जहाँपनाह आपकी बात तो सही है। लेकिन ऐसे बहुत से लोग भी है जो मजबूरी के चलते इस सर्दी में भी निकला करते हैं। मजबूरी में ऐसे काम किया करते हैं जो इस सर्द में नहीं करनी चाहिए।” बीरबल ने कहा।

अकबर ने बीरबल से कहा, “अच्छा लेकिन मैं यह नहीं मानता। मैं नहीं मानता कि कोई इतनी सर्दी में अपने घर से निकलेगा और काम पर जाएगा। वह तो घर के अंदर रहकर गर्म बिस्तर पर लेटा रहेगा। लेकिन उठकर काम पर नहीं जाएगा।”

“नहीं नहीं जहाँपनाह बात ऐसी नहीं है। लोगों की मजबूरी है कि वह इस सर्द में भी निकल करकाम करें” बीरबल ने अकबर को बताया।

“अच्छा! ऐसी बात है तो मुझे साबित करके दिखाओ कि कोई इतनी सर्दी में भी चंद पैसों के लिए भी काम करने को कैसे निकल सकता है।” बादशाह अकबर ने बीरबल चुनौती देते हुए कहा। वही पास एक तालाब भी था जिसका पानी बहुत ही ज्यादा ठंडा था। बादशाह अकबर ने उस तालाब की ओर इशारा किया और बीरबल से कहा, “बीरबल उस तालाब को देखो उस तालाब को देखकर ही ऐसा प्रतीत हो रहा है कि उसका पानी कितना ठंडा होगा। तुम एक ऐसे व्यक्ति को लेकर आओ जो रातभर इस तालाब में रहकर गुजार दें। मैं उसे ढेरों इनाम दूंगा।”

बीरबल ने कहा, “आपका हुकुम सर आंखों पर। आप जैसा कह रहे हैं मैं वैसा तुरंत करता हूं और आज ही एक ऐसे व्यक्ति का इंतजाम करता हूं जो यह कार्य कर देगा।”

गंगाराम ने बादशाह अकबर के सवालों को जवाब दिया, “जहांपना, पास ही में एक जलता हुआ दीपक था जिसकी ओर ध्यान कर उसे देखकर मैं पूरी रात गुजार गया। मैंने अपना पूरा ध्यान उसपर रखा।”

“ओह! तो यह बात है। तुमने उस दीपक से गर्मी ली और उस गर्मी से पूरी रात भर तालाब में रह गए। तो तुमने तो हम सब के साथ धोखा किया है। वैसे मैं तुम्हें जाने देता हूं क्योंकि यह काम करना आसान नहीं था। लेकिन तुमने जिस तरीके का काम किया है उसके लिए मैं तुम्हें कोई भी इनाम नहीं दूंगा।” यह कहकर बादशाह ने गंगाराम को वापस भेज दिया।

वही पास में बीरबल खड़ा यह सब चीजें देख रहा था। तभी राजा ने बीरबल से कहा, “देखा बीरबल इस तरह का काम कोई भी नहीं कर सकता।”

बीरबल ने कहा, “जी हाँ जहांपनाह आप बिल्कुल सही कह रहे हैं।” यह कहकर बीरबल अपने घर लौट गया।

अगले दिन बीरबल ने बादशाह अकबर को खाने में आमंत्रित किया। बीरबल ने कहा, “बादशाह मैं बहुत ही अच्छी खिचड़ी बनाता हूं। मैं चाहता हूं कि कल आप मेरे घर आए और मेरी हाथ की बनी हुई खिचड़ी खाए।”

राजा ने बीरबल का निमंत्रण स्वीकार किया और अगले दिन बीरबल के घर जा पहुंचे। बीरबल के घर पहुंचते ही बादशाह ने बीरबल से कहा, “बीरबल, लेकर आओ तुम्हारी खिचड़ी जरा हम भी तो उसका स्वाद ले कर देखें कि आखिर तुम कैसी खिचड़ी बनाते हो?”

“जी हां जहांपना बस खिचड़ी तैयार होने वाली है।” बीरबल ने कहा।

“ठीक है।”राजा ने कहा।

समय बीतता जा रहा था ओर राजा का भूख बढ़ता ही जा रहा था। ऐसे में बादशाह ने बीरबल से फिर पूछा, “बीरबल तुम्हारी खिचड़ी बनने में और कितना समय लगेगा। मेरी भूख बढ़ती ही जा रही है।”

बीरबल ने जवाब दिया, “बस जहांपना कुछ देर और आप की खिचड़ी तुरंत तैयार हो जाएगी।”

“अच्छा ठीक है। जल्दी लेकर आओ।”

ऐसे करते करते और समय बीत गया और राजा का भूख बढ़ने लगा था उन्होंने गुस्से में आकर बीरबल से पूछा, “तुम क्या कर रहे हो? अभी तक तुम्हारा खिचड़ी तैयार नहीं हुआ। जल्दी लेकर आओ मुझे बहुत भूख लगी है”

“जी हां जहाँपनाह मैं अभी लेकर आता हूं बस यह तैयार होने वाला है।” यह कहकर बिरबल फिर अपनी रसोई की ओर चला गया। कुछ समय और बीतने के बाद राजा उठकर बीरबल की रसोई की ओर जा पहुंचे। बादशाह अकबर ने देखा कि बीरबल हांड़ी(पकाने का बरतन) को आग से बहुत ही ऊपर लगाकर रखा था। जिससे कि आग की ताप उस हांड़ी तक नहीं पहुंच सकती थी। ऐसे में राजा ने बीरबल ने कहा, “अरे बेवकूफ! तुम आखिर कर क्या रहे हो? ऐसे में तो तुम्हारी खिचड़ी कभी भी नहीं पकेगी।”

“पकेगी जहाँपनाह यह जरूर पकेगी।” बीरबल ने कहा।

“अरे आग का ताप तो हांड़ी में पहुंच ही नहीं रहा है तो फिर तुम्हारी खिचड़ी कैसे पक सकती है। इसके लिए आग का ताप खिचड़ी की हांड़ी तक पहुचाना चाहिए।” राजा ने समझाते हुए कहा।

बीरबल ने कहा, “जिस तरह से एक छोटा सा दीपक गंगाराम को ताप दे सकता है। तो इस तरह से हांड़ी को आग से ताप अवश्य ही मिल जाएगा।”

यह बात सुनकर बादशाह समझ चुके थे कि उन्होंने क्या गलती की थी। तुरंत ही राजा ने बीरबल को कहा, “बीरबल मैं समझ चुका हूं कि तुम आखिर कहना क्या चाहते हो। मैं तुरंत ही गंगाराम को बुलाकर उसका इनाम उसे दूंगा और मैं तुम्हारा शुक्रिया करता हूं कि तुमने मेरी गलती को मुझे बताया।”

तो यह थी बीरबल की खिचड़ी की कहानी अगर आपको यह अच्छी लगे तो इसे जरूर शेयर करें और कमेंट में हमें इसके बारे में जरूर बताएं।

बीरबल की स्वर्ग यात्रा (अकबर बीरबल की कहानी)

एक समय की बात है। जब बादशाह अकबर नाई से अपने बाल और दाढ़ी बनवा रहे थे तो नाई बादशाह अकबर की तारीफ पर तारीफ कर रहा था।

नाई ने पूछा “जहांपनाह! क्या आप स्वर्ग में रह रहे अपने रिस्तेदारो को याद करते हैं। क्या आपको उनका हालचाल पूछने का मन नहीं करता है।”

नाई के इतना कहते ही बादशाह अकबर आश्चर्य से पूछते हैं “यह कैसे संभव है। आख़िर बिना मरे किसी इंसान को स्वर्ग में कैसे भेज सकते है?”

बादशाह अकबर के कहने पर नाई ने कहा “महाराज मैं एक ऐसे बाबा को जानता हूँ, जो यह करते हैं। बस आप अपने किसी करीबी को स्वर्ग जाने के लिए मना लीजिए।”

यह सब जानकर बादशाह अकबर अगले दिन सभा में अपने सारे करीबी को बुलाया तो सबने एक मत में कहा “बीरबल से श्रेष्ठ व्यक्ति इस काम के लिए कोई नहीं हो सकता। क्योंकि बीरबल हम सब में सबसे ज़्यादा बुद्धिमान और चतुर है जो स्वर्ग जाकर पूर्वजों का हाल-चाल लेने एवं उनकी परेशानी भी हल कर सकेगा।”

“ऐसा सुनकर बादशाह अकबर ने बीरबल को स्वर्ग की यात्रा पर जाने के लिए संदेश भेजा।”

यह बात जानकर बीरबल बादशाह अकबर के द्वारा बाबा को बुलाकर स्वर्ग भेजने की विधि के बारे में पूछते हैं।

बीरबल के कहने पर महल में बाबा को बुलाया जाता है फिर स्वर्ग जाने की विधि के बारे में पूछा।

बाबा ने बोला “स्वर्ग जाने के लिए यही नदी किनारे वाले घास वाले घर में आग से जला कर भेजा जाएगा। इसके साथ तंत्र मंत्र की शक्ति से स्वर्ग भेजने का रास्ता बनेगा।”

इस विधि को अच्छे से जानने के बाद बीरबल ने बादशाह अकबर से 15 दिन का समय माँगा ताकी स्वर्ग जाने से पहले अपने परिवार से मिल सके। क्या पता स्वर्ग से आने में कितना समय लग जाये।

इसके बाद बीरबल वहाँ से अपने घर के लिये रवाना हुए। ठीक 15 दिन बाद बीरबल स्वर्ग जाने के लिए बादशाह अकबर के सामने हाज़िर होते हैं।

बाबा को बुलाया जाता है और बीरबल को स्वर्ग भेजने की तैयारी की जाती हैं।

बाबा बीरबल को नदी के समीप घास के घर बना कर बीरबल को स्वर्ग भेजने के लिए घास के बने घर के अंदर भिजवाते है। घास के घर के अंदर जाते ही बाबा घास के घर में आग लगा देते हैं और बीरबल को स्वर्ग भेजने की विधि पूरी होती है।

15 दिन बीत जाने के बाद बादशाह अकबर को बीरबल की चिंता होने लगती है। तभी अचानक बीरबल दरबार में आ जाते हैं।

“बादशाह बीरबल को देख बहुत खुश हो जाते हैं और बीरबल से अपने स्वर्ग में रह रहे रिस्तेदार के बारे में पूछते हैं।”

तो बीरबल पूरे विस्तार से बताते हैं। “आपके पूर्वज काफ़ी खुश हैं और सकुशल हैं। उन्हें बस एक ही तकलीफ है कि उनकी दाढी और बाल काफ़ी बढ़ गए हैं, जिन्हें काटने के लिए स्वर्ग में एक भी नाई नहीं है। इसलिए, स्वर्ग में उन्हें एक नाई की ज़रूरत है।”

यह बात सुनते ही बादशाह अकबर अपने पूर्वजों के लिए एक अच्छे नाई को स्वर्ग जाने का आदेश देते हैं।

बादशाह का आदेश सुनते ही नाई घबरा जाता है और बादशाह अकबर के पैरों में गिरकर माफी मांगने लगता है।

नाई बादशाह से बोला “यह सारी षड्यंत्र मैंने वज़ीर अब्दुल्लाह के आदेश पर किया था। यह षड्यंत्र वज़ीर अब्दुल्लाह ने रची थी।”

अब बादशाह अकबर के सामने सारी सच्चाई आ गयी। ये सब जानने के बाद बादशाह अकबर ने वज़ीर अब्दुल्लाह और नाई को दंड देने का आदेश दिया।

बादशाह ने पूछा “बीरबल तुम्हें यह सच्चाई का पता कब हुआ और बीरबल तुम घास वाले घर से और आग से कैसे बच निकले?”

तब बीरबल बताते हैं “आग के घर में जाने कि बात सुनकर मुझे इस साज़िश का अंदाजा हो गया था। इसी वज़ह से मैंने 15 दिन का समय मांगा ताकी उन 15 दिनों में मैंने उस घास के घर वाले स्थान के नीचे से अपने घर तक का एक सुरंग बनवा लिया था। उस सुरंग के कारण ही मैं वहाँ से बचकर निकला।”

बीरबल की सारी बात सुनकर बादशाह बहुत प्रसन्न हुए और बोले “वाह! बीरबल वाह! तुमने तो एक बार फिर मेरा दिल जीत लिया।”

बीरबल की योग्यता (Akbar & Birbal stories in hindi)

बादशाह अकबर के दरबार में बीरबल का बोलबाला था। बीरबल की चतुराई और सूझबूझ ने उन्हें बादशाह का खास बना दिया था। इस कारण दरबार में बहुत से लोग बीरबल से जलते थे। इन लोगों में बादशाह अकबर के साले साहब भी थे। साले साहब बीरबल को नीचा दिखाने के लिए कोई भी मौका नहीं छोड़ते थे, लेकिन हर बार उन्हें ही मुंह की खानी पड़ती थी। बेगम का भाई होने की वजह से बादशाह भी उसे कुछ नहीं कहते थे।

एक दिन बीरबल की गैरमौजूदगी में साले साहब ने बादशाह अकबर से दीवान पद की मांग कर डाली। बादशाह ने साले साहब की परीक्षा लेने की सोची। उन्होंने साले साहब से कहा, “आज मुझे सुबह-सुबह महल के पीछे बिल्ली के बच्चों की आवाज सुनाई दी है। लगता है कि किसी बिल्ली ने बच्चे दिए हैं, जाकर देखकर आओ कि यह बात सच है या नहीं।”

साले साहब झट से महल के पीछे गए और वापस आकर बोलते हैं, “आपकी बात सच है, महल के पीछे एक बिल्ली ने बच्चों को जन्म दिया है।”

बादशाह ने कहा, “अच्छा, जरा यह बताओ कि बिल्ली ने कितने बच्चों को जन्म दिया है?” साले साहब ने जवाब में कहा, “यह तो मुझे नहीं पता, मैं अभी पता करके आता हूं महाराज।”

इतना कहकर वो फिर से महल के पीछे गए और वापस आकर कहते हैं, “महाराज, बिल्ली पांच बच्चों की मां बनी है।”

बादशाह अकबर ने पूछा, “अच्छा, जरा यह बताओ कि उन पांच बच्चों में से कितनी मादा हैं और कितने नर हैं?” साले साहब ने जवाब में कहा, “मैंने यह तो देखा ही नहीं, मैं अभी देखकर आता हूं।” इतना कहकर वो फिर से महल के पीछे जाते हैं और थोड़ी देर बाद आकर कहते हैं, “महाराज, बिल्ली के पांच बच्चों में से तीन नर हैं और दो मादा हैं।”
बादशाह अकबर ने अपने साले साहब से फिर से एक सवाल पूछा, “बिल्ली के नर बच्चे किस रंग के हैं? सवाल के जवाब में साले साहब ने कहा, “मैं अभी देखकर आता हूं।” बादशाह अकबर ने कहा, “रहने दो, बैठ जाओ।”

इतने में बीरबल राज दरबार में पहुंच चुके थे। बादशाह ने बीरबल से कहा, “बीरबल, महल के पीछे बिल्ली ने बच्चों को जन्म दिया है, जरा देखकर आओ कि क्या यह बात सही है। बीरबल ने कहा, “मैं अभी देखकर आता हूं महाराज।” ऐसा कह कर वह महल के पीछे देखने के लिए चले गए।

वापस लौट कर बीरबल ने बादशाह अकबर को बताया, “महाराज, बिल्ली ने बच्चों को जन्म दिया है।”

बादशाह ने बीरबल से पूछा, “बिल्ली कितने बच्चों की मां बनी है?” बीरबल ने तुरंत जवाब दिया, “महाराज, पांच बच्चों की।”

बादशाह ने फिर से सवाल किया, “बिल्ली के बच्चों में से कितनी मादा हैं और कितने नर हैं?” बीरबल ने तुरंत जवाब दिया, “महाराज, तीन नर और दो मादा।”

बादशाह अकबर ने एक बार फिर से बीरबल से सवाल किया, “बिल्ली के नर बच्चे किस रंग के हैं?” बीरबल ने तुरंत जवाब दिया, “महाराज, दो नर बच्चों का रंग काला और एक का बादामी है।”

अब महाराज ने पास बैठे अपने साले साहब की तरफ देखा और पूछा, “तुम्हारा इस बारे में क्या कहना है?” साले साहब शर्मिंदगी से सिर झुकाए बैठे रहे और कुछ न कह सके।

कहानी से सीख :

इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि हमें किसी की सफलता से जलना नहीं चाहिए।

अकबर-बीरबल और जादुई गधे की कहानी (Akbar Birbal ki kahani hindi me

एक समय की बात है, बादशाह अकबर ने अपने बेगम के जन्मदिन के लिए बहुत ही खूबसूरत और बेशकीमती हार बनवाया था। जब जन्मदिन आया, तो बादशाह अकबर ने वह हार अपनी बेगम को तोहफे में दे दिया, जो उनकी बेगम को बहुत पसंद आया। अगली रात बेगम साहिबा ने वह हार गले से उतारकर एक संदूक में रख दिया। जब इस बात को कई दिन गुजर गए, तो एक दिन बेगम साहिबा ने हार पहने के लिए संदूक खोला, लेकिन हार कहीं नहीं मिला। इससे वह बहुत उदास हो गईं और इस बारे में बादशाह अकबर को बताया। इस बारे में पता चलते ही बादशाह अकबर ने अपने सैनिकों को हार ढूंढने का आदेश दिया, लेकिन हार कहीं नहीं मिला। इससे अकबर को यकीन हो गया कि बेगम का हार चोरी हो गया है।

फिर अकबर ने बीरबल को महल में आने के लिए बुलावा भेजा। जब बीरबल आया, तो अकबर ने सारी बात बताई और हार को खोज निकालने की जिम्मेदारी उसे सौंप दी। बीरबल ने समय व्यर्थ किए बिना ही राजमहल में काम करने वाले सभी लोगों को दरबार में आने के लिए संदेश भिजवाया। थोड़े ही देर में दरबार लग गया। दरबार में अकबर और बेगम सहित सभी काम करने वाले हाजिर थे, लेकिन बीरबल दरबार में नहीं था। सभी बीरबल का इंतजार कर ही रहे थे कि तभी बीरबल एक गधा लेकर राज दरबार में पहुंच जाता है। देर से दरबार में आने के लिए बीरबल बादशाह अकबर से माफी मांगता है। सभी सोचने लगते हैं कि बीरबल गधे को लेकर राज दरबार में क्यों आया है। फिर बीरबल बताता है कि यह गधा उसका दोस्त है और उसके पास जादुई शक्ति है। यह शाही हार चुराने वाले का नाम बता सकता है।

इसके बाद बीरबल जादुई गधे को सबसे नजदीक वाले कमरे में ले जाकर बांध देता है और कहता है कि सभी एक-एक करके कमरे में जाएं और गधे की पूंछ पकड़कर चिल्लाए “जहांपनाह मैंने चोरी नहीं की है।” साथ ही बीरबल कहता है कि आप सभी की आवाज दरबार तक आनी चाहिए। सभी के पूंछ पकड़कर चिल्लाने के बाद आखिर में गधा बताएगा कि चोरी किसने की है।

इसके बाद सभी कमरे के बाहर एक लाइन में खड़े हो गए और एक-एक करके सभी ने कमरे में जाना शुरू कर दिया। जो भी कमरे के अंदर जाता, तो पूंछ पकड़ कर चिल्लाना शुरू कर देता “जहांपनाह मैंने चोरी नहीं की है।” जब सभी का नंबर आ जाता है, तो अंत में बीरबल कमरे में जाता है और कुछ देर बाद कमरे से बाहर आ जाता है।

फिर बीरबल सभी काम करने वालों के पास जाकर उन्हें दोनों हाथ सामने करने को बोलता है और एक-एक करके सभी के हाथ सूंघने लगता है। बीरबल की इस हरकत को देखकर सभी हैरान हो जाते हैं। ऐसे ही सूंघते-सूंघते एक काम करने वाले का हाथ पकड़कर बीरबल जोर से बोलता है, “जहांपनाह इसने चोरी की है।” ये सुनकर अकबर बीरबल से कहते हैं, “तुम इतने यकीन के साथ कैसे कह सकते हो कि चोरी इस सेवक ने ही की है। क्या तुम्हें जादुई गधे ने इसका नाम बताया है।”

तब बीरबल बोलता है, “जहांपनाह यह गधा जादुई नहीं है। यह बाकी गधों की तरह साधारण ही है। बस मैंने इस गधे की पूंछ पर एक खास तरह का इत्र लगाया है। सभी सेवकों ने गधे की पूंछ को पकड़ा, बस इस चोर को छोड़कर। इसलिए, इसके हाथ से इत्र की खुशबू नहीं आ रही है।”

फिर चोर को पकड़ लिया गया और उससे चोरी के सभी सामान के साथ ही बेगम का हार भी बरामद कर लिया गया। बीरबल की इस अक्लमंदी की सभी ने सराहना की और बेगम ने खुश होकर बादशाह अकबर से उसे उपहार भी दिलवाया।

कहानी से सीख: इस कहानी से यह सीख मिलती है कि बुरे काम को कितना भी छुपाने की कोशिश करो, एक दिन सबको पता चल ही जाता है। इसलिए, बुरे काम नहीं करने चाहिए।

पेड़ का असली मालिक कौन?(अकबर और बीरबल की कहानी) – Akbar Birbal Story

एक दिन बादशाह अकबर का दरबार लगा हुआ था । तभी दरबार में राज और विराज नाम के दो व्यक्ति अपने घर के पास आम का जो पेड़ था उसका मामला लेकर आते है । उनमे से एक ने कहा की वो ही उस पेड़ का असली मालिक है ये दूसरा झूठा है और दूसरे ने कहा की में ही उस पेड़ का मालिक हु ये झूठ बोल रहा है । इस बात को सुनकर बादशाह अकबर को पता नहीं चल रहा था की इन दोनों में से कौन सच बोल रहा है ।

इस मामले की सच्चाई जानने के लिए बादशाह अकबर ने राज और विराज के आसपास रहने वाले लोगो से पूछा लेकिन ऐसा करने का भी कोई फायदा नहीं हुआ । आसपास के लोगो ने कहा की हमने इन दोनों को कई बार पेड़ की निगरानी करते हुए देखा है इसलिए हम ये नहीं बता सकते है की इन दोनों में से पेड़ का असली मालिक कौन है ।

अकबर ने पेड़ की निगरानी करने वाले चौकीदार से भी पूछा लेकिन चौकीदार ने बताया की मुझे राज और विराज दोनों ही पेड़ की रखवाली करने के पैसे देते है इस वजह से मुझे ये पता नहीं है की इस पेड़ का असली मालिक कौन है ।

बादशाह अकबर को ना तो आसपड़ोस के लोगो से कुछ पता चल पाया और ना ही चौकीदार से कुछ पता चल पाया । अब अकबर ने तैय किया की में ये मामला बीरबल को सौप देता हु । अकबर ये पूरा मामला बीरबल को बताते है ।

बीरबल आम के पेड़ का जो चौकीदार था उसे एक रात के लिए अपने घर पर रोक लेते है । उसके बाद बीरबल उसी रात को अपने दो आदमी को अलग – अलग राज और विराज के घर पर झूठे समाचार देने के लिए भेजता है । बीरबल उन दोनों को ये भी कहता है की तुम दोनों ये समाचार देने के बाद छूप कर घर में होनेवाली बातचीत सुनना और मुझे फिर बताना।

राज के घर पर एक व्यक्ति पहुँचता है और बताता है की आम के पेड़ के पास कुछ लोग आम चुराने के लिए घूमते है आप जाकर देखिये । जब वो ये समाचार देने गया था तब राज घर पर नहीं था । राज की पत्नी ने ये बात सुनी और जब राज घर पर आया तब उनसे कहा की आम के पेड़ के पास कुछ लोग आम चुराने के लिए घूमते है तुम जल्दी जाओ और उन्हें रोक लो ।

राज ने कहा की तुम ये सब बाते छोड़ो और मुझे जल्दी से खाना दो , मुझे बहुत भूख लगी है । वैसे भी कल दरबार में फैसला होने वाला है की हमें इस आम के पेड़ की मालिकी मिलती है की नहीं । अगर मिल गयी तो ठीक है वरना कोई बात नहीं । ये सब बाते बीरबल का आदमी सुन रहा था।

विराज के घर पर भी एक व्यक्ति पहुँचता है और बताता है की आम के पेड़ के पास कुछ लोग आम चुराने के फ़िराक में है आप जाकर देखिये । जब वो ये समाचार देने गया था तब विराज घर पर नहीं था । विराज की पत्नी ने ये बात सुनी और जब विराज घर पर आया तब उनसे कहा की आम के पेड़ के पास कुछ लोग आम चुराने के फ़िराक में है।

ये बात सुनकर विराज तुरंत लाठी उठाके पेड़ की और भागता है । विराज की पत्नी उसे आवाज देती है की तुम पहले खाना तो खा लो । विराज उनसे कहता है की खाना जरुरी नहीं है अगर मेरे आम चोरी हो गए तो वो वापिस नहीं आएंगे। ये सब बाते बीरबल का आदमी सुन रहा था।

बीरबल के दोनों आदमी ये सब बाते बीरबल को बताते है । दूसरे ही दिन बादशाह अकबर के दरबार में राज और विराज दोनों को बुलाया जाता है । बीरबल दरबार में रात को जो कुछ भी हुआ था वो सब बादशाह अकबर को बताता है और उसने जो दो व्यक्ति भेजे थे वो गवाही देते है।

ये सब सुनने के बाद बादशाह अकबर विराज को पेड़ का मालिक घोषित करते है और राज को विराज पर झूठा दावा करने के लिए सजा भी देते है । अकबर इस मामले को चतुराई से सुल्झाने के लिए बीरबल को इनाम भी देते है।

जो होता है, अच्छा होता है (short akbar birbal stories in hindi)

एक बार की बात है | राजा अकबर, बीरबल के साथ जंगल में शिकार करने जा रहे थे | वे लोग बहुत देर से जंगल में घूम रहे थे, पर कोई शिकार नहीं मिल रहा था |

बात करते – करते वे लोग बहुत समय बीता दिए | बड़ी देर के बाद एक हिरण दिखाई दिया तो अकबर बीरबल से बोले कि चलो शिकार तो मिल गया |

अकबर ने अपना धनुष निकाला और तीर को हिरण पर छोड़ दिया, मगर हिरण बच निकलता है | इसी दौरान उनकी उँगली कट जाती है |

इस पर बीरबल अकबर से कहते है कि जो हुआ अच्छा हीं हुआ | इतना सुनते हीं अकबर आग – बबूला हो जाते हैं,  क्योंकि एक तो हिरन भी हाथ नहीं आया और ऊँगली भी कट गई |

उन्होंने गुस्से में आकर सैनिकों को आदेश दिया कि बीरबल को गिरफ्तार कर लो और कल इनको फाँसी दे दी जाए | सैनिक बीरबल को गिरफ्तार कर महल लाकर जेल में डाल देते हैं |

अकबर वहाँ से और आगे बढ़ जाते हैं शिकार के लिए | शिकार की खोज में वह बहुत आगे बढ़ गए और वे रास्ते भटक गए और उनका साथ सैनिकों से छुट गया |

अब वे अकेले हो गए और धीरे – धीरे रात भी हो गई | वो कहीं विश्राम करने के लिए जगह की तलाश कर रहे थे तभी कुछ आदिवासियों ने उन्हें पकड़ लिया और अपने राजा के पास ले गए |

उस दिन आदिवासियों की कोई पूजा थी जिसमें किसी आदमी की बलि देनी थी तो उनके राजा ने आदेश दिया कि इसी आदमी की बलि दी जाए |

राजा अकबर को नीचे बिठाकर दोनों हाथ पीछे की ओर बांध दिया गया | जल्लाद ने तलवार उठाया और जैसे हीं वो अकबर के गर्दन को उतारने के लिए आगे बढ़ा |

तब तक उसी आदिवासियों में एक की नजर अकबर की ऊँगलियों पर पड़ी तो उसने देखा कि उनकी ऊँगली तो कटी हुई है  |

उसने जल्लाद को रोका और बोला कि इसकी ऊँगली कटी हुई है | राजा ने उन्हें छोड़ दिया क्योंकि उनका नियम था की किसी भी ऐसे आदमी की बलि नहीं देनी है जो विकलांग हो या कोई भी अंगकटा हो |

अंततः अकबर बच गये | सुबह हुआ सैनिक उन्हें खोजते – खोजते वहाँ पहुचे और अकबर अपने सैनिको के साथ महल पहुँचे | यहाँ बीरबल को फाँसी देने की तैयारी चल रही थी |

उन्होंने तुरंत फाँसी को रोकने का आदेश दिया और बीरबल को अपने पास बुलाया | उन्होंने बीरबल से कहा कि मुझें माफ़ कर दीजिए मैंने आप पर गुस्सा किया और ऐसी सजा सुनाई |

बीरबल बोले – श्रीमान जो हुआ, अच्छा हुआ | अकबर बोले कि कैसे अच्छा हुआ, हमने आपको सजा दी और आप कह रहे कि अच्छा हुआ तो बीरबल बोले कि महाराज अगर आप हमें सजा न देते तो हम भी आपके साथ होते और आपकी जगह हमारी बलि चढ़ा दी गई होती |

इसीलिए जो हुआ, वो अच्छा हुआ | अकबर ने एक बार फिर बीरबल की प्रशंसा की और बहुत प्रसन्न हुए और फिर से बीरबल को उनका कार्य – भार सौंप दिया गया |  

कहानी से सीख –  हमें इस कहानी से यहीं सीख मिलती है कि “जो होता है, अच्छा होता है |”

पढ़ा-लिखा गधा (अकबर बीरबल की कहानी)

इसमें शक की कोई बात न थी कि बीरबल दूर-दूर तक बड़े नामीगिरामी थे। एक दिन वह अकबर के साथ दरबार में बैठे थे। तभी टैक्स चोरों से जब्त की गई चीजों में एक बड़ा गधा भी दरबार में हाजिर किया गया।

बादशाह को खुश करने के इरादे से बीरबल गधे की तारीफ के पुल बांधते हुए बाले- ‘जहांपनाह! इसके चेहरे से ऐसी बुद्धिमानी  फूट रही है कि शायद सिखाने पर ये पढ़ना-लिखना भी सीख जाए।’

बादशाह ने उनकी बात पकड़ ली और सेवक को आदेश दिया  कि वह गधे की रस्सी को बीरबल के हाथ में थमा दे।

फिर बादशाह ने बीरबल से कहा – ‘यदि गधा इतना बुद्धिमान है तो इसे ले जाओ और महीने भर में पढ़ा-लिखाकर वापस ले आओ।’

बीरबल को समझते देर न लगी कि यदि वह इस काम में विफल हो गए तो नतीजा क्या होगा।

ठीक एक महीने बाद उसी गधे की रास थामे बीरबल दरबार में हाजिर हुए। बादशाह ने पूछा – ‘क्या गधा पढ़-लिख गया है?’

‘हां, जहांपनाह……!’ कहते हुए उन्होंने एक मोटी-सी पोथी गधे के सामने रख दी।

गधा जुबान से पोथी के पन्ने पलटता चला गया और तीसवें पन्ने पर पहुंचकर जोर-जोर से रेंकने लगा।

बादशाह और सभी दरबारी चकित रह गए।

‘तुमने यह चमत्कार कैसे किया?’ बादशाह ने पूछा।

बीरबल ने बड़ी शान के साथ समझाया – ‘जहांपनाह! पहले रोज मैंने मुट्ठी-भर घास पोथी की जिल्द और पहले पन्ने के नीचे रख दी।’

दूसरे दिन मैंने घास दूसरे पन्ने पर रख दी और पोथी बन्द कर दी।

गधे ने उसे खोलकर घास खा ली। फिर रोज़ाना इसी तरह से आगे के पन्ने पलटने लगा, लेकिन जिस पन्ने पर घास नहीं मिलती तो गधा गुस्सें से रेंकने लगता ।

आयु बढ़ाने वाला पेड़ (अकबर बीरबल की कहानियां हिंदी में बच्चों के लिए)

एक बार तुर्किस्तान के बादशाह को अकबर की बुद्धी की परीक्षा के लेने का विचार हुआ। उसने एक एलची को पत्र देकर सिपाहियों के साथ दिल्ली भेजा। पत्र का मजमून कुछ इस प्रकार था- ‘अकबरशाह! मुझे सुनने में आया है कि आपके भारततवर्ष में कोई ऐसा पेड़ पैदा होता है जिसके पत्ते खाने से मनुष्य की आयु बढ़ जाती है। यदि यह बात सच्ची है तो मेरे लिए उस पेड़ के थोड़े पत्ते अवश्य भिजवाएं.’

बादशाह उस पत्र को पढ़कर विचारमग्न हो गए। फिर कुछ देर तक बीरबल से राय मिलाकर उन्होंने सिपाहियों सहित उस एलची को कैद कर एक सुदृढ़ किले में बेद करवा दिया। इस प्रकार कैद हुए उनको कई दिन बीत गए तो बादशाह अकबर बीरबल को लेकर उन कैदियों को देखने गए।

बादशाह को देखकर उनको अपने मुक्त होने की आशा हुई, परन्तु यह बात निर्मूल थी। बादशाह उनके पास पहुंचकर बोले – ‘तुम्हारा बादशाह जिस वस्तु को चाहता है, वह मैं तब तक उसे नहीं दे सकूंगा जब तक कि इस सुदृढ़ किले की एक-दो ईट न ढह जाए, उसी वक्त तुम लोग आजाद किए जाओगे। खाने-पीने की तुम्हें कोई तकलीफ नहीं होगी। मैंने उसका यथाचित प्रबन्ध करा दिया है।’ इतना कहकर बादशाह चले गए, परन्तु कैदियों की चिंता और बढ़ गई। वे अपने मुक्त होने के उपाय सोचने लगे। उनको अपने स्व्देश के सुखों का स्मरण कर बड़ा दुख होता था।

वे कुछ देर तक इसी चिंता में डूबे रहे। अंत में वे इश्वर की वन्दना करने लगे- ‘हे भबवान! क्या हम इस बन्धन से मुक्त नहीं किए जाएंगे? क्या हमारा जन्म इस किले में बन्द रहकर कष्ट भोगने के लिए हुआ है? आप तो दीनानाथ हैं, अपना नाम याद कर हम असहायों की भी सुध लीजिए।‘ इस प्रकार वे नित्य प्राथर्ना करने लगे।

ईश्वर की दयातलुता प्रसिद्ध है। एक दिन बड़े जोरों का भूकम्प आया और किले का कुछ भाग भूकम्प के कारण धराशायी हो गया। सामने का पर्वत भी टूटकर चकनाचूर हो गया। इस घटना के पश्चात एलची ने बादशाह के पास किला टूटने की सूचना भेजी।

बादशाह को अपनी कही हुई बात याद आ गई। इसलिए उस एलची को उसके साथियों सहित दरबार में बुलाकर बोले – ‘आपको अपने बादशाह का आशय बिदित होगा और अब उसका उत्तर भी तुमने समझ लिया है। यदि न समझा हो तो सुनो, मैं उसे और भी स्पष्ट किए देता हूं।’ देखो, तुम लोग गणना में केवल सौ हो और तुम्हारी आह से ऐसा सुदृढ़ किला ढह गया, फिर जहां हजारों मनुष्यों पर अत्याचार हो रहा हो, वहां के बादशाह की आयु कैसे बढ़ेगी? उसकी तो आयु घटती ही चली जाएगी और लोगों की आह से उसका शीघ्र ही पतन हो जाएगा। हमारे राज्य में अत्याचार नहीं होता, गरीब प्रजा पर अत्याचार न करना और भलीभांति पोष्ण करना ही आयुवर्धक वृक्ष है। बाकी सारी बातें मिथ्या हैं।‘

इस प्रकार समझा-बुझाकर बादशाह ने उस एलची को उसके साथियों सहित स्वदेश लौट जाने की आज्ञा दी और उनका राह-खर्च भी दिया। उन्होंने तुर्किस्तान में पहुंचकर यहां की सारी बातें अपने बादशाह को समझाईं। अकबर की शिक्षा लेकर बादशाह दरबारियों सहित उनकी भूरि-भुरि प्रशंसा करने लगा।

सबसे बड़ी ‘गर्ज़’ (Akbar Birbal Ki Kahani)

अकबर बादशाह विनोदी स्वभाव के थे। उन्हें पहेलियां बुझाने का बड़ा शौक था। उनके दरबार में एक से बढ़कर एक विद्वान और बुद्धिमान भी थे। लेकिन अकबर की अधितर पहेलियों का उत्तर बीरबल ही देते थे। यूं कहिए कि बीरबल ही अकबर की पहेलियों का उत्तर दे पाते थे, इसलिए अकबर बादशाह उनसे प्रसन्न रहते थे।

एक दिन की बात है कि बीरबल दरबार में उपस्थित नहीं थे। बीरबल की अनुपस्थिति में दूसरे सभासद बीरबल के वीषय में अकबर के कान भर रहे थे। उनकी तरह-तरह से बुराई कर रहे थे। अकबर बादशाह को यह सब अच्छा नहीं लगा। कारण था कि वे बीरबल को बहुत चाहते थे, उन्हें दिल से प्यार करते थे। अतः बादशाह ने अपने सभासदों से कहा- ‘तुम लोग ख्वामखाह बीरबल की बुराइयां कर रहे हो। वास्तव में बीरबल तुम लोगों से कहीं अधिक चतुर व बुद्धिमान हैं।‘

टकबर के ऐसा हने पर वे लोग कहने लगे – ‘‘बादशाह सलामत! टाप वास्तव में बीरबल को बहुत चाहते हैं, हम लोगों से ज्यादा प्यार करते हैं। इस तरह से आपने एक हिंदु को सिर चढ़ा रखा है।‘‘

डसी दिन जब सभा समाप्त होने का समय आया तो अकबर बादशाह ने अपने उन चार सभासदों से कहा – ‘देखो, आज बीरबल तो यहां नहीं, मुझे अपने एक सवाल का जवाब चाहिए। तुम चारों मेरे प्रश्न का उत्तर दो और यदि तुम लोगों ने मेरे प्रश्न का सही-सही उत्तर नहीं दिया तो मैं तुम चारों को फांसी पर चढ़वा दूंगा।‘

बादशाह की बात सुनकर वे चारों घबरा उठे। उनमें से एक ने हिम्मत करके कहा – ‘प्रश्न पूछिए बादशाह सलामत!‘

बादशाह ने पूछा – ‘संसार में सबसे बड़ी चीज़ क्या है?‘

अकबर का प्रश्न सुनकर चारों चुप। उनको समझ में सवाल का उत्तर नहीं आया। कुछ देर बाद उनमें से एक ने कहा – ‘खुदा की खुदाई सबसे बड़ी है।‘

दूसरे ने कहा – ‘बादशाह सलामत की सल्तनत बड़ी है।‘

उनके बेतुके उत्तर सुनकर बादशाह ने कहा – ‘अच्छी तरह सोच-समझकर उत्तर दो, वरना मैं कह चुका हूं कि तुम लोगों को फांसी लगवा दूंगा।‘

तीसरे ने डरते-डरते कहा – ‘बादशाह सलामत! ळमें कुछ दिनों की मोहलत दी जाए।‘

बादशाह ने कहा- ‘इसमें मुझे कोई एतराज नहीं है, मैं तुम लोगों को एक सप्ताह का समय देता हूं।‘

वे चारों सभा से मुंह लटकाए बाहर निकले। उनके चेहरों पर मुर्दनगी छा गई। चारों ही फांसी के नाम से पीले पड़ गए। छः दिन बीत गए लेकिन उन्हें कोई उत्तर न सूझ सका।

तब उन चारों ने आपस में सलाह की कि इस प्रश्न का उत्तर केवल बीरबल ही बता सकता है। इस परेशानी से हमें वही उबार सकता है। यह निश्चय करके वे चारों बीरबल के पास पहुंचे गए। उन्होंने बीरबल को पूरी घटना कह सुनाई और हाथ जोड़कर उनसे विनती की कि वह उनके प्रश्न का उत्तर बता दें।

बीरबल ने उनका प्रश्न सुनकर मुस्करा कर कहा – ‘मैं तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दूंगा, लेकिन मेरी एक शर्त है।‘

‘आप एक शर्त की बात करते हैं, हमें आपकी हजार शर्तें मंजूर हैं। बताइए क्या शर्त है?‘

तब बीरबल ने उनको अपनी शर्त बताते हुए कहा – ‘तुम चारों अपने कंधों पर मेरी चारपाई रखकर सभा महल तक ले चलोगे। इसके साथ ही तुम में से एक मेरा हुक्का पकड़ेगा, जिसे मैं पीता हुआ चलूंगा। एक मेरी जूतियां लेकर चलेगा।‘

अगर अन्य किसी समय पर बीरबल उनको यह सब करने के लिए कहते तो शायद वे ऐसा कभी न करते। लेकिन अब जब उन्हें फांसी लगने का डर था तो वे तुरन्त ही उनकी बात मानने को तैयार हो गए। उन्होंने वैसा ही किया। वे चारों अपने कंधों पर बीरबल की चारपाई उठाए, उनका हुक्का और जूतियां उठाए चल दिए।

बीरबल हुक्का पीते हुए चले जा रहे थे। रास्ते में लोग आश्चर्य से इस अजीब मंजर को देख रहे थे। उन्होंने जाकर बीरबल की चारपाई को सभा के मध्य रख दिया। बीरबल ने चारपाई से उतर कर कहा – ‘बादशाह सलामत! टापको अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया। संसार में सबसे बड़ी चीज ‘गर्ज‘ है।‘

अकबर बादशाह मुस्करा उठे। दरअसल वे उन चारों को सबक सिखाना चाहते थे।(1)

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