बेस्ट 31 inspirational stories in hindi | सफल बनाने वाली कहानियां 2022

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Inspirational stories in hindi: किसी ने मुझसे पूछा मोटिवेशनल स्टोरी पढ़ने से क्या होता है तो मैंने जवाब दिया की ऐसी कहानियाँ पढ़ने से हमें दुसरों की गलतियों का पता चलता है ताकि हम वही गलती ना करें। इसलिए ज्यादा से ज्यादा short motivational hindi stories with moral  को पढ़िए, जो आपके सोच को पूरी तरह से बदल देंगे और आपके जीवन को बदल देने वाली यह प्रेरणदायक हिंदी कहानियां आपको हर समय मोटीवेट करने में मदद करेगी।

Table of Contents

बोले हुए शब्द वापस नहीं आते (best motivational story in hindi)

बोले हुए शब्द वापस नहीं आते  (best motivational story in hindi)

स्टोरी इन हिंदी

एक बार एक किसान ने अपने पड़ोसी को भला बुरा कह दिया, पर जब बाद में उसे अपनी गलती का एहसास हुआ तो वह एक संत के पास गया.उसने संत से अपने शब्द वापस लेने का उपाय पूछा.

संत ने किसान से कहा , ” तुम खूब सारे पंख इकठ्ठा कर लो , और उन्हें शहर  के बीचो-बीच जाकर रख दो .” किसान ने ऐसा ही किया और फिर संत के पास पहुंच गया.

तब संत ने कहा , ” अब जाओ और उन पंखों को इकठ्ठा कर के वापस ले आओ”

किसान वापस गया पर तब  तक सारे पंख हवा से इधर-उधर उड़ चुके थे. और किसान खाली हाथ संत के पास पहुंचा. तब संत ने उससे कहा कि ठीक ऐसा ही तुम्हारे द्वारा कहे गए शब्दों के साथ होता है,तुम आसानी से इन्हें अपने मुख से निकाल तो सकते हो पर चाह कर भी वापस नहीं ले सकते.

इस कहानी से क्या सीख मिलती है:

  • कुछ कड़वा बोलने से पहले ये याद रखें कि भला-बुरा कहने के बाद कुछ भी कर के अपने शब्द वापस नहीं लिए जा सकते. हाँ, आप उस व्यक्ति से जाकर क्षमा ज़रूर मांग सकते हैं, और मांगनी भी चाहिए, पर human nature कुछ ऐसा होता है की कुछ भी कर लीजिये इंसान कहीं ना कहीं hurt हो ही जाता है.
  • जब आप किसी को बुरा कहते हैं तो वह उसे कष्ट पहुंचाने के लिए होता है पर बाद में वो आप ही को अधिक कष्ट देता है. खुद को कष्ट देने से क्या लाभ, इससे अच्छा तो है की चुप रहा जाए।

मेहनत रंग लाती है (life motivational stories in hindi)

मेहनत रंग लाती है (life motivational stories in hindi)

एक समय की बात है, एक गाँव में एक बहुत धनी व्यक्ति रहता था। वह सिर्फ धन से ही नहीं बल्कि मन से भी अमीर था। वह अपने गाँव की लोगो की हर मुश्किल परिस्थिति में मदद करता था। उसका नाम दूसरे गाँव में भी  प्रसिद्ध था। लेकिन उसका बेटा बहुत आलसी था, कोई काम नहीं करना चाहता था। इस बात से परेशान होकर वह व्यक्ति अपने एक दोस्त के पास गया और अपने बेटे के बारे में बताया।

उसके दोस्त ने उससे कहा, “परेशान होने की कोई बात नहीं तुम उसे मेरे पास भेज दो। मैं उसे कुछ महिनो में ठीक कर दूंगा।” उस धनी व्यक्ति ने घर आकर अपने बेटे को पास बुलाया और उससे कहा,  “देखो बेटा, मैं अब वृद्ध होता जा रहा हूँ इसलिए अब तुम्हे सारा काम  देखभाल करना होगा। क्यूंकि तुमने कभी कोई काम किया नहीं है इसलिए मेरे एक दोस्त के पास वह तुम्हे सारा काम समझा देगा। बस कुछ महीनो की बात है उसके बाद तुम वापस आ जाना।”

अगले दिन वह लड़का अपने पिता के दोस्त  के पास गया और कहा, “चाचा जी मुझे पिताजी ने आपके पास काम सिखने के लिए भेजा है।” उस आदमी ने कहा, “ठीक है आओ बेटे मैं तुम्हे काम दिखा देता हूँ।” उस लड़के को एक बड़ी बंजर सुखी जमीन के सामने ले जाकर कहा, “बेटे जाओ इस जमीन को जोतो।”

उस लड़के को बहुत गुस्सा आया फिर भी उसने गुस्से को रोकते हुए कहा, “पर चाचा जी पिताजी ने काम सिखने को कहा है और आप यह बेकार जमीन जोतने को दे रहे हो और इसकी मिटटी भी पूरी सख्त है।” उस आदमी ने कहा, “बेटे मैं जो कह रहा हूँ उसे करो उसके बाद मैं काम के बारे में तुम्हे अच्छी तरह से समझा दूंगा।”

वह लड़का न चाहते हुए भी काम पर लग गया और सोचा कि कुछ ही दिनों की तो बात है उसके बाद घर जाकर फिर आराम ही आराम करूँगा। पहले दिन उसकी हालत ख़राब हो गई। वह पूरी तरह से थक गया था और मन ही मन अपने पिता को कोस रहा था उसके बाद वह रात को खाना खा कर वह सो गया।

अगली सुबह वह फिर उस आदमी के पास गया और कहा, “चाचा जी आज क्या काम करना है?” उस आदमी ने कहा, “बेटा आज बाजार जाकर कुछ बीज और पौधे लेकर आना और उस जमीन पर लगा देना।” उसने ऐसा ही किया और रोज पेड़ पौधों में पानी डालता रहा और उसकी देखभाल करने लगा। इस तरह कुछ महीने बीत गए और वहाँ वह बंजर जमीन सुंदर बगीचे में बदल गया। तब उस आदमी ने लड़के को पास बुलाया और उसे समझाया, “देखो बेटे यह जमीन कितनी बंजर थी तुमने इस पर मेहनत कर एकसुंदर बगीचे में बदल दिया। उसी तरह आलसी का जीवन बिना कर्म के व्यर्थ होता है।”

वह लड़का समझ गया कि मेहनत रंग लाति है और उसने कहा,  “चाचा जी अब से मैं भी किसी काम में आलस नहीं करूँगा।”  कुछ दिनों बाद वह धनी आदमी अपने  बेटे से मिलने आया। उसका दोस्त उसे बेटे के पास ले गया। उस आदमी ने देखा उसका बेटा एक बहुत ही सुंदर बगीचे के  पेड़ पौधों में पानी डाल रहा था। उस आदमी ने  पूछा,  “मित्र तुम,तुम्हारे यहा तो यह बगीचा नहीं था यह कब बनाया?”

उसके दोस्त ने  कहा, “यह  बगीचा तुम्हारे बेटे ने ही बनाया है।” यह सुन उस धनी व्यक्ति के आँखों से आँसू आ गया और  उसने अपने  मित्र को धन्यवाद दिया और अपने बेटे को लेकर चला गया।

मेहनत बनाती है, असंभव को संभव (प्रेरणादायक कहानी छोटी सी)

हर व्यक्ति के जीवन में कुछ कार्य ऐसे जरुर होते हैं जिन्हें करना हमेशा असंभव ही लगता है.. और जब कोई दूसरा व्यक्ति आकर उसी असंभव काम को संभव करके दिखा देता है तो हमें लगता है कि यार वो बहुत लकी है|
 
दरअसल, असंभव कार्य को करने के लिए जितनी कठोर मेहनत की आवश्यकता होती है, उतनी आपने कभी की ही नहीं..
 
कोई भी काम असंभव नहीं होता, बल्कि थोडा कठिन होता है| जब कोई काम इतना कठिन होता है जिसे हम आसानी से नहीं कर सकते तो बस हम उसे असंभव कहने लगते हैं, यही असंभव शब्द जब हमारे दिमाग में बैठ जाता है तो हम फिर प्रयास करना ही बंद कर देते हैं|

आपको याद होगा कि पहले वन डे क्रिकेट में 300 रन बनाना, किसी भी टीम के लिए बहुत बड़ी बात होती थी, अगर किसी टीम ने 300 रन बना लिए तो उसकी जीत निश्चित हो जाती थी क्यूंकि उस समय तक 300 रन को पछाड़ना असंभव सा प्रतीत होता था|

लेकिन समय बदला, नए लोग आये… पिच पर रन तेजी से बनने लगे और आज तो वन डे में 300 रन बनाना बहुत मामूली सी बात है, अब तो लोग 400 रन को भी पछाड़ देते हैं|
 
पहले वन डे में शतक बनाने पर बहुत तारीफें होती थीं और वन डे में दोहरा शतक लगाना तो असंभव ही था| उसके बारे में तो कोई सोचता भी नहीं था…
 
लेकिन हमारे मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर ने लोगों के इस भ्रम को तोडा और वन डे में 200 रन बनाकर एक कीर्तिमान स्थापित किया.. और ये कहानी यहीं नहीं रुकी, कुछ ही दिन बाद विस्फोटक बल्लेबाज सहवाग ने भी दोहरा शतक लगा दिया| इसके बाद 200 रन कई लोग अब बना चुके हैं|

तो मित्रों असंभव तो कुछ था ही नहीं.. बल्कि काम बेहद कठिन था इसलिए हम उसे असंभव मान बैठे|

कोई फर्क नहीं पड़ता, अगर आपने असंभव मान लिया…
अरे कोई फर्क नहीं पड़ता, अगर आपने प्रयास नहीं किया…
कोई फर्क नहीं पड़ता.. अगर आपने हिम्मत छोड़ दी

लेकिन एक बात याद रखना.. एक ना एक दिन एक ऐसा शख्स आयेगा जो इस असंभव को संभव बना कर दिखा देगा.. और ऐसा करके वो शख्स दुनिया में छा जायेगा और सिर्फ यही बोलोगे कि वो लकी है|
 
दुनिया में मेहनत करने वालों की कमी नहीं है| आप नहीं तो कोई और सही.. असंभव के चक्रव्यूह को कोई आकर चुटकियों में ढेर कर देगा|
 
तो मित्रों, असंभव शब्द को अपने मन, मष्तिष्क से निकाल दीजिये क्यूंकि यह शब्द आपको आगे बढ़ने से रोक रहा है|

बाज की उड़ान (short inspirational stories in hindi)

बाज की उड़ान (short inspirational stories in hindi)

एक बार की बात है कि एक बाज का अंडा मुर्गी के अण्डों के बीच आ गया. कुछ दिनों  बाद उन अण्डों में से चूजे निकले, बाज का बच्चा भी उनमे से एक था.वो उन्ही के बीच बड़ा होने लगा. वो वही करता जो बाकी चूजे करते, मिटटी में इधर-उधर खेलता, दाना चुगता और दिन भर उन्हीकी तरह चूँ-चूँ करता. बाकी चूजों की तरह वो भी बस थोडा सा ही ऊपर उड़ पाता , और पंख फड़-फडाते हुए नीचे आ जाता . फिर एक दिन उसने एक बाज को खुले आकाश में उड़ते हुए देखा, बाज बड़े शान से बेधड़क उड़ रहा था. तब उसने बाकी चूजों से पूछा, कि-” इतनी उचाई पर उड़ने वाला वो शानदार पक्षी कौन है?”

तब चूजों ने कहा-” अरे वो बाज है, पक्षियों का राजा, वो बहुत ही ताकतवर और विशाल है , लेकिन तुम उसकी तरह नहीं उड़ सकते क्योंकि तुम तो एक चूजे हो!”

बाज के बच्चे ने इसे सच मान लिया और कभी वैसा बनने की कोशिश नहीं की. वो ज़िन्दगी भर चूजों की तरह रहा, और एक दिन बिना अपनी असली ताकत पहचाने ही मर गया.

 दोस्तों , हममें से बहुत से लोग  उस बाज की तरह ही अपना असली potential जाने बिना एक second-class ज़िन्दगी जीते रहते हैं, हमारे आस-पास की mediocrity हमें भी mediocre बना देती है.हम में ये भूल जाते हैं कि हम आपार संभावनाओं से पूर्ण एक प्राणी हैं. हमारे लिए इस जग में कुछ भी असंभव नहीं है,पर फिर भी बस एक औसत जीवन जी के हम इतने बड़े मौके को गँवा देते हैं.

आप चूजों  की तरह मत बनिए , अपने आप पर ,अपनी काबिलियत पर भरोसा कीजिए. आप चाहे जहाँ हों, जिस परिवेश में हों, अपनी क्षमताओं को पहचानिए और आकाश की ऊँचाइयों पर उड़ कर  दिखाइए  क्योंकि यही आपकी वास्तविकता है.

बाप और बेटे की एक प्रेरक कहानी (मोटिवेशनल कहानी इन हिंदी)

बाप और बेटे की एक प्रेरक कहानी (मोटिवेशनल कहानी इन हिंदी)

एक गांव में एक मूर्तिकार रहा करता था। वे काफी खूबसूरत मूर्ति बनाया करता था। और इस काम से वे अच्छा कमा भी लेता था। उसे एक बेटा हुआ। उस बच्चे ने बचपन से ही मुर्तिया बनाना शुरू कर दी। उसका बेटा भी बहुत अच्छा मुर्तिया बनाया करता था और बाप अपने बेटे के कामियाबी पर खुश होता था। लेकिन हर बार बाप अपने बेटे के बनाये मूर्तियों पर कोई न कोई कमिया निकाल दिया करता था।

उसका बाप कहता था,  “बहुत अच्छा मूर्ति बनाया है लेकिन अगली बार इस कमी को दूर करने की कोशिश करना।”

बेटा भी कोई शिकायत नहीं करता था। वे अपने बाप की सलाह पर अमल करते हुए मूर्तियों  को और भी बेहतर करने लगा। इस लगातार सुधार की बजह से बेटे की मुर्तिया बाप से भी अच्छी बनने लगी। और एक ऐसा समय आया जब उनके बेटे की मूर्तियों को लोग बहुत पैसा देकर खरीदने लगे। जब की बाप की मुर्तिया पहले वाली कीमत पर ही बिकने लगी।

बाप अब भी उसके बेटे की बनाये मूर्तियों पर कमिया निकालता रहता। लेकिन बेटे को अब यह अच्छा नहीं लगता था। लेकिन फिर भी वे उन कमियों पर सुधार लाता रहता।

एक समय ऐसा भी आया जब बेटे की सब्र ने जवाब दे दिया। बाप  जब कमिया निकाल रहा था तब बेटा बोला, “आप ऐसे मेरे मूर्तियों पर कमिया निकाल रहे है जैसे की आप बहुत बड़े मूर्तिकार है। अगर आपको इतनी ही समझ होती तो आपकी मुर्तिया इतनी कम कीमत पर नहीं बिकती।  मुझे नहीं लगता कि मुझे आपकी सलाह लेने की जरूरत है। मेरी मुर्तिया बहुत अच्छी है। ”

बाप ने जब बेटे की यह बातें सुनी तो उसने बेटे को सलाह देना और उसके मूर्तियों पर कमी निकालना बंध कर दिया। कुछ महीनो तक बेटा खुश रहा। फिर उसने यह धियान दिया की लोग अब उसके मूर्तियों की इतनी तारीफ नहीं करते जितनी पहले किया करते  थे। उसके मूर्तियों का दाम बढ़ना भी कम हो गया।

शुरू में तो बेटे को कुछ भी समझ नहीं आया। लेकिन फिर वे अपने बाप के पास गया और अपने बाप को समस्या के बारे मे बताया।

बाप ने बेटे को बहुत शांति से समझाया जैसे की उसे पहले से ही पता था की  एकदिन , ऐसा भी समय आएगा। बेटे ने बाप से पूछा, “क्या आप जानते थे की ऐसा होने वाला है?”

बाप ने कहा, “हाँ। क्युकी आज से कई  साल पहले मैं भी इसी हालात से गुजरा था।”

बेटे ने सवाल किया, “तो फिर आपने मुझे समझाया क्यों नहीं?”

बाप ने जवाब दिया, “क्युकी तुम समझना नहीं चाहते थे। मैं  जानता हूँ, की तुम्हारी जितनी अच्छी मुर्तिया मैं नहीं बनाता और यह भी  हो सकता है की मूर्तियों के बारेमे मेरी सलाह गलत हो और ऐसा भी नहीं है मेरी सलाह की बजह से तुम्हारी मुर्तिया बेहतर बनी हो। लेकिन मैं जब तुम्हारी मूर्तियों में कमिया दिखाता था तब तुम अपने बनाये मूर्तियों से संतुष्ट नहीं होते थे। तुम खुदको बेहतर करने की कोशिश करते थे। और वही बेहतर होने की कोशिश तुम्हारी कामियाबी का कारन था। लेकिन  जिस दिन तुम अपने काम से संतुष्ट हो गए और तुमने जब यह मान लिया की इसमें अब बेहतर होने की कोई जरुरत ही नहीं है तब तुम्हारी कोशिश भी रुक गयी। लोग हुमेहा तुमसे बेहतर की उमीद करते है और यही कारन है की अब तुम्हारी मूर्तियों के लिए तुम्हारी तारीफ नहीं होती। और न ही उनके लिए तुम्हे ज़ादा पैसे मिलते है।”

बेटा थोड़ी देर चुप रहा। फिर उसने सवाल किया, “तो अब मुझे क्या करना चाहिए।”

बाप ने जवाब दिया, “असंतुष्ट होना सिख लो। मानलो की तुम में हमेशा बेहतर होने  गुंजाइस बाकि है। यही बात तुम्हे हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेगी। तुम्हे हमेशा बेहतर बनाती रहेगी।”

नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी (real life inspirational stories in hindi)

नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी (real life inspirational stories in hindi)

आज नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी बॉलीवुड का एक जाना माना नाम है लेकिन क्या आपको पता है इसके पीछे की दर्दभरी दास्ताँ. वो कहते है ना कि कर्म करते जा और फल की इच्छा मत कर, ये कहावत इस कमाल के कलाकार ने सिद्ध कर के दिखाई. इन्होने अपने अभिनय से ना सिर्फ दर्शकों का दिल जीता बल्कि हर एक शख्स को कामयाब होने का राज़ भी सिखाया. अगर हम Painful Story Of Successful Person In Hindi के बारे में बात करे तो मैं नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी को सबसे ऊपर रखूँगा. हालांकि हर किसी की अपनी कहानी होती है और हर किसी की ज़िन्दगी में कामयाबी हासिल करने के लिए अलग दर्द भी होते है लेकिन नाज़ुद्दीन की मेहनत और लगन हर किसी के लिए जानना बहुत ज़रूरी है ताकि आप भी इनसे प्रेरणा ले सके।

तो आईये जानते है कैसे बनाया नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने बॉलीवुड में अपना बड़ा नाम और क्या क्या सहना पड़ा इन्हे इस मुकाम पर आने के लिए:

#नवाज़ुद्दीन UP के मुज़्ज़फरनगर के एक छोटे से गाँव बुढ़ाना से है. ये 7 भाई और 2 बहने है. एक इंटरव्यू में इन्होने बताया था कि इनके गाँव में खेती के इलावा ज़्यादा कुछ करने को था नहीं. वहां गुंडागर्दी बहुत थी और लोग छोटी-छोटी बातों पर तमंचा निकाल लेते थे. बस इसी वजह से इन्होने गाँव छोड़कर बाहर शहर में पढ़ने की सोची।

#चूँकि इनके परिवार की आमदन ज़्यादा नहीं थी, इन्हे पढाई के साथ काम भी करना पड़ता था. इन्होने कई छोटी छोटी नौकरियां भी की।

# नवाज़ुद्दीन को एक खिलोनो की फैक्ट्री में सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी मिली थी. वहां इन्हे 12 घंटे खड़े रहकर पहरा देना होता था. एक बार पहरा देते वक़्त धुप बहुत थी तो इन्होने सोचा कि 10 मिनट के लिए पेड़ की छांव में खड़े हो जाऊ. इसी बीच इन्हे फैक्ट्री के मालिक ने देख लिए और उसी वक़्त नौकरी से निकाल दिया. इन्हे अपने काम की तनख्वाह भी नहीं दी थी।

# फिर नवाज़ुद्दीन ने एक्टिंग सीखने के लिए दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा में दाखिला ले लिया. आपको बता दे कि इस एक्टिंग स्कूल में दाखिला लेना बहुत मुश्किल है. सिर्फ जिन्हे अच्छी एक्टिंग पहले से आती है, उन्हें ही एडमिशन दी जाती है. अनुपम खेर, ओम पूरी और नसीरुद्दीन शाह जैसे दिज्जग कलाकारों ने इसी स्कूल से अपनी एक्टिंग को निखारा. 1996 में नवाज़ुद्दीन ने इस स्कूल से सीख कर काम करना चाहा लेकिन उन्हें कोई खास सफलता नहीं मिली।

# 3 साल और छोटी-मोटी नौकरियां करने के बाद नवाज़ुद्दीन ने हार मान ली और अपना सामान बांध कर घर जाने ही वाले थे कि 1999 उन्हें एक फिल्म में छोटा सा रोल करने का ऑफर मिला. वो रोल शूल फिल्म में महज़ 2 सेकंड का. इस 2 सेकंड के रोल में उन्हें वेटर बनना था. इस फिल्म में मनोज बाजपाई और रवीना टंडन मुख्य किरदार में थी।

# इसके बाद भी उन्हें छोटे मोटे रोल ही मिले जैसे मुन्नाभाई MBBS में चोर का, सरफ़रोश फिल्म में भी एक गुंडे का. इसके बाद इन्हे जूनियर आर्टिस्ट के भी कई रोल मिले जिससे इन्हें बहुत कम पैसे मिल करते थे।

# एक इंटरव्यू में नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने बताया था कि कई बार जूनियर आर्टिस्ट के रोल के लिए भी इन्हे फिल्म के crew मेंबर्स रिश्वत देनी पड़ती थी. मतलब कि जूनियर आर्टिस्ट के रोल के लिए जो पैसे मिलते थे उसके आधे रिश्वत देने में ही निकल जाते थे।

# साल 2004 से लेकर 2012 तक नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ने कई हिंदी फिल्मो में छोटे – मोटे किरदार निभाए। कई फिल्मे ऐसी थी जिनमे आपको नवाज़ुद्दीन की मज़ूदगी का एहसास भी नहीं हुआ होगा. ऐसी ही कुछ फिल्मे थी जैसे ब्लैक फ्राइडे (2004), न्यू यॉर्क (2009), पीपली लाइव (2010), मांझी और फिर उन्हें एक बड़ी कामयाबी मिली 2012 में Gangs of Wasseypur फिल्म से. इस फिल्म के बाद नवाज़ुद्दीन के अभिनय को एक नयी पहचान मिली।

# इसके बाद इन्हे कई बड़े और अच्छे निर्देशकों के साथ काम करने का मौका मिला. इसके बाद इन्होने कई शानदार फिल्मे की जैसे The Lunchbox, Kahani, Talaash, Kick, Bajrangi Bhaijaan, Raees, MOM और कई अन्य फिल्मे. मुझे लगता है कि जब बात होती है painful story of successful person in hindi तो मन में नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी के इलावा और कोई नहीं आता. यकीनन और भी बहुत होंगे लेकिन जो जज्बा इस बन्दे ने दिखाया है ना यारो, वो कमाल का है. असल मायने में यही है आज के युग का सिकंदर।

कई लोग सोचते है कि जो हैंडसम और स्मार्ट लोग होते है सिर्फ वही बॉलीवुड में नाम कमा सकते है लेकिन मैं उन सबको बता दू कि नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी ना तो हैंडसम है, ना अच्छी कद काठी है, ना कोई बॉडी बनाई है और ना ही उन्हें अच्छी इंग्लिश आती है. इस दुनिया में अगर सक्सेस यानि कामयाबी पानी है तो चाहिए सिर्फ टैलेंट और वो आपको अपने भीतर खुद ही खोजना होगा. देर सवेर, वो आपको पता चल ही जाएगा

नए सपने (Motivational Story in Hindi for Success)

ये कहानी आपको सिखाएगी अगर जिंदगी में आप का भी कभी सपना टुटा है तो वापसी कैसे करनी है जिंदगी में नया सपना कैसे देखना है उसको पूरा कैसे करना   है। 

स्पेन का एक 10  साल का लड़का  जिसका ये सपना था की वो फुटबॉलर बना चाहता था उसने अपने  पेरेंट्स को जाकर के बताया की पापा देखना एक दिन मैं स्पेन का नंबर वन  फुटबॉलर बनूँगा नंबर वन गोआल कीपर बनूंगा क्यों की उसे गोआल कीपिंग बहुत पसंद थी।

उसने अपने पेरेंट्स को बताया पेरेंट्स ने उस पे भरोसा किया उसके मम्मी पापा ने उसके लिए कोचिंग लगवा दी वो फुटबॉल के मैदान में जाने लगा कोच साहब से मिलने लगा कोच को बोलने लगा देखना एक दिन  मैं स्पेन  का बहुत बड़ा  फुटबॉलर बनूँगा । 

जो हमरे यहाँ का बहुत बारे क्लब है real madrid वहा से गोआल कीपिंग करूँगा तो कोच ने देखा की उसका जो स्टूडेंट खेलने के लिए आया है सिखने के लिए आया है उसके आँखों में चमक है उसका सपना है कोच ने भी पूरी शिदत के साथ

उसको सिखाया उसको तैयार किया वो 10  साल का लड़का कब 20 साल का हो गया मालूम नहीं चला और इन 10  सालो में इसने कमाल की परफॉर्मेंस दी कमाल की गेम्स खेलें एक ऐसा दिन आने वाला था की उसे real madrid वाले उसे अपने में शामिल  करने वाले थे 

लेकिन उस दिन के आने से पहले ही एक वो  शाम में अपने दोस्तों के साथ में घूम रहा था कार में था तभी उसकी कार का एक्सीडेंट हो गया इतना भयानक हादसा हुआ की लड़का हॉस्पिटल पहुंच गया और फिर डॉक्टर ने इसके पेरेंट्स को बताया की आपके बच्चे के कमर के निचे के हिसे को पैरालिसिस हो चूका है

लकवा  मार गया है और आप का बच्चा  अब कभी भी चल नहीं पाएगा फिर  नहीं पाएगा फुटबॉल खेलना तो बहुत दूर की बात है।  इस बच्चे के पेरेंट्स के आखों में आँशु थे इन्हे समझ में नहीं आरहा था की उनके बच्चे का इतना बड़ा सपा टूट गया था। 

उन्हों ने जा कर के अपने बच्चे से बात की उसे समझाया की बेटा  अब आपके आने वाली जिंदगी बड़ी मुश्किल होने वाली है।  इस लड़के के जब मालूम चला तो ये हिल चूका था इसके लिए इसके सारे सपने टूट गए थे उदास  था मायूस  था

समझ  नहीं पा रहा था की क्या होगा आगे 18  महीने तक ये लड़का हॉस्पिटल तक था आप सोचिये की जो 18 महीने हॉस्पिटल में रहेगा तो उसके दिमाग में क्या क्या चलता रहेगा कितने सारे नकारात्मक विचार आएँगे इसके साथ भी यही हो रहा था

लेकिन इसने हर नहीं मानी इसे लग रहा था की इसे लाइफ में सकारात्मक विचार के साथ वापसी करनी है तो इस लड़के ने जो उसको खली समय इसे हॉस्पिटल में मिला था उसका सही उपयोग करना शुर किया।

गाने लिखना शुरू किया कविताएं लिखना शुरू किया इसे लिखने का शोख था  लिखता चला गया  धुन बनता चला गया उन्हें  गुण गुनाने लगा इसका जो दिमाग  था

वो  फुटबॉल से हट कर के म्यूजिक की तरफ आने लगा इसे लगने लगा की इसे अब म्यूजिक में कुछ करना है आप सोचिये वो लड़का जो अभी हॉस्पिटल में है वो अब नया सपना देख रहा है आपको यकीन नहीं होगा  5  साल के बाद में इसका  एक गाना आता है जो की पॉपुलर हो जाता है

वो गाना है लाइफ गोज ऑन दी सेम  और ये लड़का स्पेन का बहुत पॉपुलर सिंगर बन जाता है इनका नाम है जुलिवैलेसिअस इनकी सच्ची कहानी मैं आपके साथ शेयर की है

इनकी अब तक 30 करोड़ से ज्यादा एल्बम बिक  चुके है कई भाषाओँ में गाने गए हैं और ये हमें बताते है की अगर लाइफ में एक  सपना टूट जाता है , तो  जुलिवैलेसिअस से सीखिए नया सपना देखना शुरू कीजिये और उस नए सपने के लिए मेहनत करना शुरू कीजिये।

बालक की ईमानदारी की शिक्षादायक कहानी (heart touching motivational story in hindi)

एक छोटे से गाँव में नंदू नाम का एक बालक अपने निर्धन माता-पिता के साथ रहता था। एक दिन दो भाई अपनी फसल शहर में बेचकर ट्रैकटर से अपने गाँव आ रहे थे। फसल बेचकर जो पैसा मिला वह उन्होंने एक थैले में रख लिया था। अचानक एक गड्ढा आ गया और ट्रकटर उछला और थैली निचे गिर गई जिसे दोनों भाई देख नहीं पाए और सीधे चले गए।

बालक नंदू खेलकूद कर रात को अँधेरे में अपने घर जा रहा था। अचानक उसका पर किसी वस्तु से टकरा गया। उसने देखा तो पता चला कि किसी की थैली है। जब नंदू ने थैली खोलकर देखा तो उसमे नोट भरे हुए थे। वह हैरान हो गया  और सोचने लगा कि पता नहीं किसकी थैली होगी। उसने सोचा कि अगर वह थैली यही छोड़ गया तो कोई और इसे उठा ले जाएगा। वह मन ही मन सोचने लगा कि जिसकी यह थैली है उसे कितना दुख और कष्ट हो रहा होगा।

हालाँकि लड़का उम्र से छोटा था और निर्धन माँ-बाप का था लेकिन उसमें सूझबूझ काफी अच्छी थी। वह थैली को उठाकर अपने घर ले आया। उसने थैली को झोपडी में छुपाकर रख दिया फिर वापस आकर उसी रास्ते पर खड़ा हो गया। उसने सोचा कि कोई रोता हुआ आएगा तो पहचान बताने पर उसे थैली दे दूंगा।

इधर थोड़ी देर बाद दोनों भाई घर पहुँचे तो ट्रकटर में थैली नहीं थी। दोनों भाई यह जान निराश होते हुए बहुत दुखी होने लगे। पुरे साल की कमाई थैली में भरी थी। किसी को मिला भी होगा तो बताएगा भी नहीं। शायद अभी वह किसी के हाथ न लगा हो यह सोच दोनों भाई टोर्च लेकर उसी रास्ते पर चले जा रहे थे।

छोटा बालक नंदू उन्हें रास्ते में मिला। उसने उन दोनों से कुछ भी नहीं पूछा लेकिन उसे शंका हुई कि शायद यह थैली इन्ही की ही हो। उसने उनसे पूछा, ‘आप लोग क्या ढूंढ रहे है?” उन्होंने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया। उसने दोबारा पूछा, “आप दोनों क्या ढूंढ रहे हो?” उन्होंने कहा, “अरे कुछ भी ढूंढ रहे है तू जा तुझे क्या मतलब।”

दोनों आगे बढ़ते जा रहे थे। नंदू उनके पीछे चलने लगा। वह समझ गया था कि नोटों वाली थैली संभवता इन्हीं की ही है। उसने तीसरी बार फिर पूछा तो चिल्लाकर एक भाई ने कहा, “अरे चुप हो जा और हमें अपना काम करने दे। दिमाग को और ख़राब न कर।” अब नंदू को समझ आ गया की वह थैली अवश्य इन्हीं की ही है। उसने फिर पूछा, ‘”आपकी थैली खो गई है क्या?”

दोनों भाई एकदम रुक गए और बोले, “हाँ।” नंदू बोला, “पहले थैली की पहचान बताइए। जब उन्होंने पहचान बताई तो बालक उन्हें अपने घर ले गया। टोकरी में रखी थैली उन दोनों भाइयों को सौंप दी। दोनों भाइयों की प्रसन्नता का कोई ठिकाना नहीं था। नंदू की ईमानदारी पर दोनों बड़े हैरान थे। उन्होंने इनाम के तौर पर कुछ रूपए देने चाहे पर नंदू ने मना कर दिया और बोला, “यह तो मेरा कर्तव्य था।”

दूसरे दिन दोनों भाई नंदू के स्कूल पहुँच गए। उन्होंने बालक के अध्यापक को यह पूरी घटना सुनाते हुए कहा “हम सब विद्यार्थियों के सामने उस बालक को धन्यवाद देने आए हैं। अध्यापक के नेत्र से आँसू गिरने लगे। उन्होंने बालक की पीठ थपथपाई और पूछा, “बेटा, पैसे से भरे थैले के बारे में अपने माता-पिता को क्यों नहीं बताया।” नंदू बोला, “गुरूजी, मेरे माता-पिता निर्धन हैं। रुपयों को देखकर उनका मन बदल जाता तो हो सकता है रुपयों को देखकर उसे लौटाने नहीं देते और यह दोनों भाई बहुत निराश हो जाते। यह सोच मैंने उन्हें नहीं बताया।

सभी ने नंदू की बड़ी प्रशंसा की। दोनों भाइयों ने उसे कहा, “बेटा धन्यवाद। गरीब होकर भी तुमने ईमानदारी को नहीं छोड़ा।

प्रेरणा का स्रोत (Motivational Short Story in Hindi)

“हर चीज का हल होता है,आज नहीं तो कल होता है|”

एक बार एक राजा की सेवा से प्रसन्न होकर एक साधू नें उसे एक ताबीज दिया और कहा की राजन  इसे अपने गले मे डाल लो और जिंदगी में कभी ऐसी परिस्थिति आये की जब तुम्हे लगे की बस अब तो सब ख़तम होने वाला है ,परेशानी के भंवर मे अपने को फंसा पाओ ,कोई प्रकाश की किरण नजर ना आ रही हो ,हर तरफ निराशा और हताशा हो तब तुम इस ताबीज को खोल कर इसमें रखे कागज़ को पढ़ना ,उससे पहले नहीं!

राजा ने वह ताबीज अपने गले मे पहन लिया !एक बार राजा अपने सैनिकों के साथ शिकार करने घने जंगल मे गया!  एक शेर का पीछा करते करते राजा अपने सैनिकों से अलग हो गया और दुश्मन राजा की सीमा मे प्रवेश कर गया,घना जंगल और सांझ का समय ,  तभी कुछ दुश्मन सैनिकों के घोड़ों की टापों की आवाज राजा को आई और उसने भी अपने घोड़े को एड लगाई,  राजा आगे आगे दुश्मन सैनिक पीछे पीछे!   बहुत दूर तक भागने पर भी राजा उन सैनिकों से पीछा नहीं छुडा पाया !  भूख  प्यास से बेहाल राजा को तभी घने पेड़ों के बीच मे एक गुफा सी दिखी ,उसने तुरंत स्वयं और घोड़े को उस गुफा की आड़ मे छुपा लिया !  और सांस रोक कर बैठ गया , दुश्मन के घोड़ों के पैरों की आवाज धीरे धीरे पास आने लगी !  दुश्मनों से घिरे हुए अकेले राजा को अपना अंत नजर आने लगा ,उसे लगा की बस कुछ ही क्षणों में दुश्मन उसे पकड़ कर मौत के घाट उतार देंगे !  वो जिंदगी से निराश हो ही गया था , की उसका हाथ अपने ताबीज पर गया और उसे साधू की बात याद आ गई !उसने तुरंत ताबीज को खोल कर कागज को बाहर निकाला और पढ़ा !   उस पर्ची पर लिखा था —“यह भी कट जाएगा “

राजा को अचानक  ही जैसे घोर अन्धकार मे एक  ज्योति की किरण दिखी , डूबते को जैसे कोई सहारा मिला !  उसे अचानक अपनी आत्मा मे एक अकथनीय शान्ति का अनुभव हुआ !  उसे लगा की सचमुच यह भयावह समय भी कट ही जाएगा ,फिर मे क्यों चिंतित होऊं !  अपने प्रभु और अपने पर विश्वासरख उसने स्वयं से कहा की हाँ ,यह भी कट जाएगा !

और हुआ भी यही ,दुश्मन के घोड़ों के पैरों की आवाज पास आते आते दूर जाने लगी ,कुछ समय बाद वहां शांति छा गई !  राजा रात मे गुफा से निकला और किसी तरह अपने राज्य मे वापस आ गया !

दोस्तों,यह सिर्फ किसी राजा की कहानी नहीं है यह हम सब की कहानी है !हम सभी परिस्थिति,काम ,तनाव के दवाव में इतने जकड जाते हैं की हमे कुछ सूझता नहीं है ,हमारा डर हम पर हावी होने लगता है ,कोई रास्ता ,समाधान दूर दूर तक नजर नहीं आता ,लगने लगता है की बस, अब सब ख़तम ,है ना?

जब ऐसा हो तो २ मिनट शांति से बेठिये ,थोड़ी गहरी गहरी साँसे लीजिये !  अपने आराध्य को याद कीजिये और स्वयं से जोर से कहिये –यह भी कट जाएगा !   आप देखिएगा एकदम से जादू सा महसूस होगा , और आप उस परिस्थिति से उबरने की शक्ति अपने अन्दर महसूस करेंगे !  आजमाया हुआ है ! बहुत कारगर है !

महापुरुषों की प्रेरक कहानियां

असली खुशी (inspirational stories in hindi language)

किसी ने खूब कहा है कि किसी की मदद करने के लिए 

केवल धन की जरुरत नहीं होती, उसके लिए  मन की भी जरुरत होती है। 

एक बार की बात है एक व्यक्ति थे। उन्होंने अपना सारा जीवन दुसरो की मदद करने के लिए निकाल दिया था। उन्हें हमेशा दुसरो की मदद करने में खुशी मिलती थी। और जब उनका आखरी समय आया तो यमराज ने उनसे कहा, “आपने अपनी सारी जीवन दुसरो की मदद करि है इसलिए आप चाहे तो मरने के बाद स्वर्ग में भी रह सकते हैं या नर्क में भी रह सकते हैं।”

उस व्यक्ति ने कुछ सोचा और कहा, “पहले मैं नर्क में जाकर देखना चाहता हूँ कि वहाँ कैसा है। अगर मुझे वहाँ अच्छा लगेगा तो मैं वहाँ रहूँगा नहीं तो मैं स्वर्ग में जाऊँगा।”

यमराज उन्हें नर्क में लेकर जाते हैं। और जब वह व्यक्ति वहाँ जाता है तो देखता है कि एक बहुत बड़ा सा हॉल है, वहाँ पर बहुत बड़ा टेबल लगा हुआ है। खाने का बहुत अच्छा -अच्छा सामान है लेकिन। लेकिन फिर भी सब लोग भूखे हैं। सबके चेहरे पर उदासी है और सबकी शक्लो पर साफ दिख रहा है कि उन्होंने बहुत समय से कुछ भी नहीं खाया है।”

उस व्यक्ति को यह बात बहुत अजीब लगती है कि खाने का इतना सामान पड़ा हुआ है फिर भी हर व्यक्ति यहाँ भूखा सा क्यों दिख रहा है। उसने इधर-उधर देखा। फिर उसने गौर किया कि सबके हाथ इस तरह हैं कि कौनि से किसी के भी हाथ मुड़ नहीं रहे हैं। अब अगर हाथ किसी के मुड़ नहीं रहे हैं तो वह लोग खा कैसे रहे हैं।

फिर व्यक्ति ने यमराज से पूछा कि अब मुझे यहाँ नहीं रहना हैं अब आप मुझे स्वर्ग में ले चलिए। जब वह स्वर्ग में जाते हैं तो वहाँ पर भी एक बहुत बड़ा हॉल होता है। उस हॉल में भी एक बहुत बड़ा खाने का टेबल होता है जिसपे नर्क के जितना ही अच्छा खाना रखा हुआ था। लेकिन यहाँ पर सभी लोग बहुत खुश थे। यहाँ पर कोई भी भूखा नहीं दिख रहा था और हर इंसान के चेहरे पर एक अलग ही चमक दिखाई दे रही थी।

इस बार उस व्यक्ति ने यमराज से कहा, “अच्छा यहाँ पर किसी को भी कौनि में कोई तकलीफ नहीं है, यहाँ पर सब अपनी कौनि मोड़ सकते हैं इसलिए सबने अच्छे से खाना खाया है और सब अच्छे से रह रहें हैं।” तो यमराज कहते हैं, “नहीं तुम ध्यान से देखो, ‘यहाँ पर भी किसी की कौनि मुड़ नहीं सकती है लेकिन यहाँ के लोगों ने एक  दूसरे को खाना खिलाना सिख लिया है इसलिए यहाँ पर सब खुश है।

दोस्तों हमारी जिंदगी भी इसी तरह होती है। हम पूरी जिंदगी खुद के बारे में सोचकर ही गुजर देते हैं, कभी हम दुसरो के बारे में नहीं सोचते। अगर हम दुसरो की मदद करेंगे तो कोई इंसान हमारा भी मदद जरूर करेगा और असेही हम एक दूसरे के साथ खुशियाँ बांटकर खुश रह सकते है, एक दूसरे का दुःख कम कर सकते हैं।

इस कहानी से हमें यही सीख मिलती है की हमेशा हमें जीवन में दुसरो की मदद करना चाहिए और कभी भी किसी को भी अकेला नहीं छोड़ना चाहिए। महान सेवा यह है कि हम किसी जरूरतमंद की इस तरह मदद करे कि बाद में वह अपनी मदद खुद ही कर सके। हमेशा यह चीज याद रखे कि जब आप दुसरो की मदद करते हैं तो मन में आपको ख़ुशी जरूर मिलती है। और अगर मन में  नहीं मिल रही है तो आप मन से उसकी सेवा नहीं कर रहे हैं।

बड़ा बनने के लिए बड़ा सोचो (युवाओं के लिए प्रेरणादायक कहानी)

अत्यंत गरीब परिवार का एक  बेरोजगार युवक  नौकरी की तलाश में  किसी दूसरे शहर जाने के लिए  रेलगाड़ी से  सफ़र कर रहा था | घर में कभी-कभार ही सब्जी बनती थी, इसलिए उसने रास्ते में खाने के लिए सिर्फ रोटीयां ही रखी थी |

आधा रास्ता गुजर जाने के बाद उसे भूख लगने लगी, और वह टिफिन में से रोटीयां निकाल कर खाने लगा | उसके खाने का तरीका कुछ अजीब था , वह रोटी का  एक टुकड़ा लेता और उसे टिफिन के अन्दर कुछ ऐसे डालता मानो रोटी के साथ कुछ और भी खा रहा हो, जबकि उसके पास तो सिर्फ रोटीयां थीं!! उसकी इस हरकत को आस पास के और दूसरे यात्री देख कर हैरान हो रहे थे | वह युवक हर बार रोटी का एक टुकड़ा लेता और झूठमूठ का टिफिन में डालता और खाता | सभी सोच रहे थे कि आखिर वह युवक ऐसा क्यों कर रहा था | आखिरकार  एक व्यक्ति से रहा नहीं गया और उसने उससे पूछ ही लिया की भैया तुम ऐसा क्यों कर रहे हो, तुम्हारे पास सब्जी तो है ही नहीं फिर रोटी के टुकड़े को हर बार खाली टिफिन में डालकर ऐसे खा रहे हो मानो उसमे सब्जी हो |

तब उस युवक  ने जवाब दिया, “भैया , इस खाली ढक्कन में सब्जी नहीं है लेकिन मै अपने मन में यह सोच कर खा रहा हू की इसमें बहुत सारा आचार है,  मै आचार के साथ रोटी खा रहा हू  |”

 फिर व्यक्ति ने पूछा , “खाली ढक्कन में आचार सोच कर सूखी रोटी को खा रहे हो तो क्या तुम्हे आचार का स्वाद आ रहा है ?”

“हाँ, बिलकुल आ रहा है , मै रोटी  के साथ अचार सोचकर खा रहा हूँ और मुझे बहुत अच्छा भी लग रहा है |”, युवक ने जवाब दिया|

 उसके इस बात को आसपास के यात्रियों ने भी सुना, और उन्ही में से एक व्यक्ति बोला , “जब सोचना ही था तो तुम आचार की जगह पर मटर-पनीर सोचते, शाही गोभी सोचते….तुम्हे इनका स्वाद मिल जाता | तुम्हारे कहने के मुताबिक तुमने आचार सोचा तो आचार का स्वाद आया तो और स्वादिष्ट चीजों के बारे में सोचते तो उनका स्वाद आता | सोचना ही था तो भला  छोटा क्यों सोचे तुम्हे तो बड़ा सोचना चाहिए था |”

मित्रो इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है की जैसा सोचोगे वैसा पाओगे | छोटी सोच होगी तो छोटा मिलेगा, बड़ी सोच होगी तो बड़ा मिलेगा | इसलिए जीवन में हमेशा बड़ा सोचो | बड़े सपने देखो , तो हमेश बड़ा ही पाओगे | छोटी सोच में भी उतनी ही उर्जा और समय खपत होगी जितनी बड़ी सोच में, इसलिए जब सोचना ही है तो हमेशा बड़ा ही सोचो|

आप खास है (Motivational Story for Students in Hindi)

एक जाने माने वक्ता अपने हाथों में 500रू. का नोट लिए सेमिनार हॉल में प्रवेश करते है। उस सेमिनार हॉल में लगभग 200 लोग बैठे हुए थे। उन्होंने 500 रू का नोट सभी को दिखाते हुए पुछा – ‘कौन-कौन इस 500रू. के नोट को लेने की इच्छा रखता है?’

हॉल में मौजूद लोगों के हाथ धीरे-धीरे उठने लगे।

उन्होंने कहा, ‘मैं आप ही लोगों में से किसी एक को यह 500रू. का नोट देने वाला हूं, लेकिन पहले आप मुझे ये कर लेने दीजिए’ यह कहकर उन्होंने नोट को मोड़-तरोड़ दिया।

उसके बाद उन्होंने पूछा – ‘इसे अब भी कौन लेना चाहता है?’ अभी भी लगभग सारे हाथ ऊपर थे।

‘ठीक है’ उन्होंने कहा। ‘क्या होगा अगर मैं ये करूं?’ ये कहकर उन्होंने 500रू. के नोट को फर्श पर गिरा दिया और उसे अपने जूते से रगड़ने लगे।

कुछ देर बाद उन्होंने उसे दुबार हाथ में लिया, लेकिन अब वह नोट बुरी तरह तुड़-मुड़ और गंदा हो गया था। फिर उन्होंने लोगों से पूछा – ‘इसे अब भी कौन लेना चाहता है?’ इस बार भी लगभग सभी लोगों के हाथ खड़े थे!

मेरे दोस्तों, आज आप सभी ने बहुत ही बहुमूल्य चीज सीखा। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मैंने इस नोट के साथ क्या किया। आप इसे अब भी लेना चाहते है, क्योंकि इससे अब भी इसका मूल्य घटा नहीं है। यह अब भी 500 रू ही है। यही चीज हम सभी के साथ होती है। कई बार हम अपने जीवन में गिरते हैं, कठिनाईयों से लड़ते-लड़ते थक जाते है। अपने गलत निर्णयों से भारी मुसीबतों का सामना करते है। इन सारी परिस्थितियों से जूझ कर हम अपने आपको मूल्यहीन और बेकार समझने लगते है लेकिन इसका कोई अर्थ नहीं है कि हमारे जीवन में क्या हो चुका है और भविष्य में क्या होगा, आप अपना महत्व कभी नहीं खो सकते। आप खास है – इसे आप कभी न भूले।”

अंत में हम यहाँ इस संकलन को एक और लधु-शिक्षाप्रद कहानी के साथ खत्म कर रहे है। आशा है, यह कहानी आपमें एक बड़ा बदलाव लाएगी।

अगर बुरा वक़्त चल रहा है तो सब्र करो(Short motivational story in hindi)

एक बार की बात है एक राजा साहब के पास में बड़ा सुन्दर  विशाल महल था और उस विशाल सी  महल में एक सुंदर सी बगीची थी  उस सुन्दर सी बगीची में एक माली था और अंगूरों की बेल थी माली जो था वो  इस बात से परेशान था

की अंगूरों की बेल पे रोजाना एक चिड़ियाँ आकर के आक्रमण करती थी  और कुछ इस तरीके से वो आक्रमण करती थी जिसे की जो मीठे मीठे अंगूर थे उसे तो खा लेती थी जो अधपके थे  और जो खटे अंगूर थे उसे ज़मीन पर  गिरा देती थी।

  माली इस बात से बड़ा परेशान चल रहा था की इस अंगूरों के बेल को ये चिड़ियाँ एक दिन तबाह कर देगी नस्ट कर देगी उसने बहुत कोसिस की लेकिन उसको कोई उपाय  मिला  नहीं तो वो राजा के पास पंहुचा और कहा

मालिक हुकुम आपही कुछ कीजिये मुझसे कुछ हो नहीं पारहा  है अंगूरों की बेल कभी भी ख़त्म हो सकती है राजाने  कहा माली साहब आप चिंता मत कीजिये आपका काम मैं करूँगा।

  अगले दिन राजा साहब पहुंचे खुद और अंगूरों की बेल के पीछे जाके छुप गए और जैसे ही चिड़ियाँ आई राजा ने फुर्ती दिखाते हु चिड़ियाँ को पाकर लिया। 

जैसे ही चिड़ियाँ को पकड़ा चिड़ियाँ ने राजा के कहा हे राजन मुझे माफ़ करना  मुझे मत मारो मैं  आपको चार ज्ञान की बातें बताउंगी राजा बहुत घुसे में थे राजा ने बोला पहेली बात बताओ चिड़ियाँ ने कहा अपनी हाथ में आए शत्रु को कभी भी जाने न दे

राजा ने कहा दूसरी बात बता चिड़ियाँ ने कहा कभी भी असम्भव बात पर यकीन न करें राजा ने कहा बहुत हो गया डरामा तीसरी बात बताओ  चिड़ियाँ ने कहा बीती बात कर पछतावा न करें

राजा ने कहा अब चौथी बात बता अब खेल खत्म करता हु बहुत देर से परेशान कर रखा है

चिड़ियाँ ने कहा राजा साहब अपने जिस तरीके से मुझे पाकर रखा है मुझे साँस नहीं आरही आप  मुझे थोड़ी सी ढील देंगें तो शायद मैं  आपको चौथी बात बता पाऊं  राजा ने हलकी सी ढील दी

और  चिड़ियाँ उर कर के डाल पे बैठ गई चिड़ियाँ ने कहा मेरे पेट में दो हिरे हैं ये सुन कर के राजा पश्चाताप करने लगा उदाश हो गया

और राजा की ये शक्ल देख कर के चिड़ियाँ ने ने बोला राजा साहब मैंने जो आपको अभी  चार  ज्ञान की  बात  बताई थी पहली बात बताई थी अपने शत्रु को कभी हाथ में आने के बाद  छोड़ें न

आपने हाथ में आए शत्रु यानि मुझे छोर  दिया दूसरी  बात बताई थी  असबभाव बात पर यकीन  न करें , आपने यकीं कर लिया की मेरे छोटे से पेट में दो हिरे हैं ,

तीसरी बात बताई थी की बीती हुई बात पर पश्चताप न करें आप उदास है आप पश्चाताप कर रहें है जबकि मेरे पेट में हिरे है ही नहीं उसको सोच कर के आप पश्चाताप कर रहें है।

उस चिड़िया ने राजा को नहीं हम सबको भी बताई हम सब भी जो बीत चूका होता है उस पर कई बार पश्चाताप कर रहें होतें हैं हमेशा भूतकाल में  रहतें है और भविस का सोचतें नहीं हैं प्रेजेंट में रहना शुरू की जिए

फ्यूचर की प्लानिंग करना सुरु कीजिये अपने सपनो को फॉलो करना शुरू कीजिये।  जिंदगी में जो हो गया  आपका उसपर कण्ट्रोल नहीं है लेकिन जो होगा उसको आप बदल सकते है।  

KFC सक्सेस कहानी (रियल लाइफ स्टोरी इन हिंदी)

मुश्किल इस दुनिया मे कुछ भी नही,

 फिर भी लोग अपने इरादे तोड़ देते है,

अगर सच्चे दिल से हो चाहत कुछ पाने की,

तो सितारे भी अपनी जगह छोड़ देते है.

KFC Success Story: यह सक्सेस स्टोरी उस इंसान की है जिसने जिंदगी भर संघर्ष किया, असफलता और परेशानियो से झुज़ते रहे फिर भी हार ना मानते हुए अपने प्रयासो को जारी रखा और अपने अंतिम दीनो मे सफलता की एक ऐसी मिसाल कायम कर दी जिसे सुनकर कोई भी दातो तले उंगली दबा देगा.

ये कहानी है केनटकी फ्राइड चिकन कंपनी के फाउंडर कर्नल हारलॅंड सॅनडर्स की.

KFC Success Story: उनका जन्म 9 सेप्टेंबर 1890 को इंडियाना के एक शहर हेनरीविल्ले मे हुआ था. उनके पिता का नाम डेविड सॅनडर्स और मा का नाम मार्गरेट सॅनडर्स था. उनके अलावा उनका एक छोटा भाई और एक छोटी बेहन भी थी. उनके घर मे सब कुछ अच्छा चल रहा था पर अचानक 1895 मे गर्मी के दीनो मे तेज बुखार की वजह से उनके पिता की मृत्यु हुई. उस समय सॅनडर्स केवल 5 साल के थे पिता के मृत्यु के बाद घर की आर्थिक स्थिति खराब हो रही थी जिसकी वजह से सॅनडर्स की मा को बाहर फॅक्टरी मे जाकर काम करना पड़ रहा था. और सॅनडर्स के उपर इतनी कम उम्र मे अपने भाई बेहन के देख रेख की ज़िम्मेदारी आ गयी. उन्ही कठिन दीनो मे उनकी मा मार्गरेट ने उन्हे खाना बबना भी सीखा दिया. और सिर्फ़ 7 साल के उम्र मे ही वी खाना बनाना मे भी माहिर हो गये. खाने मे उन्हे चिकन बनाना शुरू से ही पसंद था.

1902 मे सॅनडर्स के मा ने विलियम ब्रादेट नाम के इंसान से फिर से शादी कर ली फिर उनका पूरा परिवार इंडियाना के ग्रीनवुड इलाक़े मे रहने आ गया. सॅनडर्स के सौतेले पिता सॅनडर्स से बहोत नफ़रत करते थे. जिसके वजह से उनके अच्छे संबंध नही थे. और इन्ही कारनो की वजह से हारलॅंड सॅनडर्स ने अपना घर छोड़ दिया और फिर खेत मे आकर रहने लगे. घर छोड़ने के बाद उनकी पढ़ाई भी छूट गयी. 13 साल की उम्र मे वे इंडियाना के पोलाइस शहर मे आ गये जहा उन्होने घोड़ा गाड़ी पे पेंटिंग का काम करना शुरू कर दिया. कुछ दीनो बाद वो काम छोड़ दिया और 1906 मे इंडियाना के ऑल्बेनी मे आकर अपने अंकल के साथ रहने लगे. उनके अंकल स्ट्रीट कार की एक कंपनी के लिए काम करते थे और उन्ही के मदत से सॅनडर्स को कंडक्टर की नौकरी मिल गयी. इसी बीच उन्होने रेलवे मे फायरमैन की नौकरी भी की. KFC Success Story

फायरमैन की नौकरी करते समय ही उनकी मुलाकात जोसफिन नाम की लड़की से हुई जिससे उन्होने 1909 मे करीब 19 साल के उम्र मे शादी कर ली. जोसफ्ं से उनको 1 लड़का और 2 लड़किया हुई अब ऐसा लग रहा था की सॅनडर्स की जिंदगी अब पटरी पर लौट रही है. तभी एक सहयोगी से झगड़ा होने के बाद उन्हे नौकरी से निकल दिया और उसके बाद उनकी पत्नी भी अपने बच्चो के साथ उन्हे छोड़ कर गयी. इस बात का उनके दिल पर बहोत गहरा असर हुआ. वो दिन ब दिन टूटते जा रहे थे. लेकिन उन्होने अपने आप को संभाला और नौकरी की तलाश शुरू कर दी, उन्होने अलग अलग तरह के काम कर के अपना पेट पालना शुरू कर दिया, बहोत सारे बिज़नेस किए पर हर जगह वे असफल रहे।

1929 मे सॅनडर्स केनटकी राज्य के छोटेसे शहर कॉरबिन मे चले गये और अमेरिका के रूट 25 पर एक गॅस स्टेशन खोला और उसी के बगल मे एक छ्होटसा रेस्टोरेंट भी खोला जहा वह विशेष तरह का तला हुआ चिकन बनाने लगे. जिसे लोगो द्वारा बहुत पसंद किया जाने लगा. लोगो द्वारा पसंद करने के कारण उन्होने उस बिज़नेस को और बड़ा करने का सोचा. और होटल अच्छे से चलाने के लिए कॉर्नेल यूनिवर्सिटी से 8 साप्ताह का होटल मॅनेज्मेंट का कोर्स किया. हारलॅंड सॅनडर्स द्वारा बनाया चिकन केनटकी के गवर्नर को इतना पसंद आया की उन्होने सॅनडर्स को कर्नल की उपाधि दे डाली, और तभी से हारलॅंड सॅनडर्स के आयेज कर्नल जुड़ने लगा।

1937 मे सॅनडर्स ने अपने होटेल की कुछ और ब्रॅंचस शुरू करने की कोशिश की पर उनका यह प्रयास भी असफल रहा. और कुछ ही सालो मे हाइवे बनाना के कारण चल रहा था वो भी रेस्टोरेंट बंद हो गया, कुछ ही दीनो मे जमा पूंजी भी ख़त्म हो गयी. अब उनकी उमर भी 62 साल हो चुकी थी और उन्होने पूरे जीवन अपना पेट पालने के अलावा कुछ भी नही किया था।

पर उन्हे अपने चिकन के रिसर्च पर पूरा विश्वास था. वो अपने मसले और चिकन लेकर मार्केटिंग करने निकल पड़े. उसके बाद उन्होने अलग अलग रेस्टोरेंट से मिलना शुरू किया पर किसने भी उनका साथ नही दिया. उन्होने करीब 1000 रेस्टोरेंट की ठोकरे खाई. और उसके बाद जाकर उन्हे उनका पहला कस्टमर  मिला. लेकिन उसके बाद मे हारलॅंड सॅनडर ने कभी भी पीछे मूड कर नही देखा और देखते ही देखते अपने यूनीक चिकन रेसिपी की छाप छोड़ी।

आज कर्नल सॅनडर्स के खFC 118+ देशो मे 18875 ब्रॅंचस है पहला कफ्क यूयेसे मे 1952 मे खोला गया. आख़िरकार अपर सफलताओ को पाने के बाद 16 डेक 1980 मे 90 साल की उम्र मे अमेरिका के केनटकी मे हारलॅंड सॅनडर्स की मृत्यु हुई।

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1. अंसार अहमद शेख (21 वर्षीय)– ऑटो चालक का बेटा

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अंसार अहमद शेख UPSC सिविल सेवा परीक्षा में सफल होने वाले सबसे युवा उम्मीदवार रहे हैं। उन्होंने यह उपलब्धि 2015 में अपने पहले ही प्रयास में सफलता अर्जित की। उस समय इनकी उम्र मात्र 21 वर्ष थी। इनका अखिल भारतीय रैंक 361 था।

अंसार शेख ऑटो रिक्शा चलाने वाले के बेटे और एक मैकेनिक के भाई हैं। महाराष्ट्र के जालना गांव के गरीब परिवार से ताल्लुक रखते हैं। अपनी कमजोर आर्थिक स्थिति के बावजूद अनवर ने शुरुआत से ही पढ़ाई में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया और पुणे के प्रतिष्ठित कॉलेज में बी.ए. (राजनीति विज्ञान) में दाखिला लिया। दृढ़ इच्छाशक्ति से प्रेरित अनवर ने यूपीएससी परीक्षाओं की तैयारी के साथ–साथ लगातार तीन वर्षों तक रोजाना 12 घंटों तक काम किया।

इन्होंने धार्मिक भेदभाव समेत सभी प्रकार की बाधाओं पर जीत हासिल की और भारत के सबसे प्रतिष्ठित प्रतियोगी परीक्षा यूपीएससी में सफलता अर्जित की। गरीब रुढ़ीवादी मुस्लिम परिवार के अंसार की उपलब्धि वाकई प्रशंसनीय है। कठिन प्रतियोगिता (कड़ी प्रतिस्पर्धा ) के इस दौर में अपनी पहचान के लिए संघर्ष करने वाले कई गरीब उम्मीदवारों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं अनवर।

2. कुलदीप द्विवेदी (27 वर्षीय) IPS– सुरक्षा गार्ड का बेटा

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वर्ष 2015 में यूपीएससी द्वारा आयोजित की गई सिविल सेवा परीक्षा में कुलदीप द्विवेदी की अखिल भारतीय रैंक 242 रही। लखनऊ विश्वविद्यालय में सुरक्षा गार्ड का काम करने वाले के बेटे कुलदीप द्विवेदी ने यह साबित कर दिया कि यदि आपमें सफल होने की इच्छाशक्ति है तो कोई भी बाधा उसे रोक नहीं सकती। इनके पिता सूर्यकांत द्विवेदी लखनऊ विश्वविद्यालय में सुरक्षा गार्ड के तौर पर काम करते हैं और पांच लोगों के परिवार का लालन– पालन करते हैं। लेकिन सूर्य कांत की कमजोर आर्थिक स्थिति भी उनके बेटे को भारतीय समाज में सबसे प्रतिष्ठित नौकरी हासिल करने हेतु प्रोत्साहित करने से न रोक सकी। उन्होंने अपने बेटे की महत्वाकांक्षा का सिर्फ नैतिक रूप से बल्कि अपनी क्षमता के अनुसार आर्थिक रूप से भी समर्थन किया। नतीजों के घोषित होने के बाद भी पूरे परिवार के लिए यह विश्वास करना मुश्किल हो रहा था कि उनके सबसे छोटे बेटे ने अपने जीवन की सबसे बड़ी खुशी हासिल कर ली है।

संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) द्वारा आयोजित की जाने वाली लोक सेवा परीक्षा में रैंक लाने का अर्थ क्या है, यह अपने परिवार को समझाने में कुलदीप द्विवेदी को समय लगा। तीन भाईयों और एक बहन में ये सबसे छोटे हैं और बचपन से ही सिविल सेवक बनना चाहते थे।

कुलदीप द्विवेदी ने 2009 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक किया था और 2011 में अपने स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की। उन्होंने साबित कर दिखाया कि कड़ी मेहनत किसी भी परिस्थितियों पर निर्भर नहीं करती बल्कि खुद की क्षमताओं पर भरोसा करना सबसे महत्वपूर्ण है। उनकी सफलता दृढ़– संकल्प एवं लक्ष्य पर केंद्रित मन और पिता के प्रयासों का उदाहरण है। इन्होंने अपनी गरीबी को पीछे छोड़ते हुए सफलता के लिए काफी मेहनत की।

3. श्वेता अग्रवाल– पंसारी की बेटी

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एक और दिल को छू लेने वाली कहानी। भद्रेश्वर के पंसारी की बेटी – श्वेता अग्रवाल जिन्होंने 2015 में हुई यूपीएससी की परीक्षा में 19वीं रैंक हासिल कर अपने IAS बनने के सपने को साकार किया। इनके संघर्ष की कहानी कई बाधाओँ को पार करने से भरी है। इसमें मूलभूत शिक्षा सुविधाओँ से लेकर यूपीएससी परीक्षा 2015 की अव्वल 3 महिला उम्मीदवारों में आना तक शामिल है। वे बताती हैं कि कैसे गरीबी से लड़ते हुए उनके माता– पिता ने उन्हें अच्छी शिक्षा प्रदान की। श्वेता को अपने माता– पिता पर बेहद गर्व है।

श्वेता ने अपनी स्कूली शिक्षा सेंट जोसेफ कॉन्वेंट बंदेल स्कूल से पूरी की। स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद श्वेता ने सेंट जेवियर्स कॉलेज कोलकाता से आर्थशास्त्र में स्नातक किया।

श्वेता ने इससे पहले यूपीएससी परीक्षा दो बार पास की, लेकिन वे आईएएस अधिकारी ही बनना चाहती थी। बंगाल कैडर में शामिल होने पर श्वेता को गर्व है और यह भी सोचती हैं कि ज्यादातर युवा सिविल सेवा से इसलिए दूर रहते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उन्हें जनता की बजाय राजनीतिक आकाओं के मातहत काम करना पड़ेगा। यह हमेशा कहा जाता है कि मध्यमवर्गीय परिवार की लड़की के माता–पिता द्वारा उनके महत्वाकांक्षी सपनों को समर्थन देना बहुत मुश्किल होता है l लेकिन लैंगिक भेद समेत सभी प्रकार की बाधाओँ को पीछे छोड़ते हुए श्वेता अग्रवाल और उनका परिवार बिना शर्त की जाने वाली कड़ी मेहनत और लगन का उदाहरण है।

ज़िन्दगी में अगर आपको भी लक्ष्य मालूम नहीं है (अच्छी कहानियां)

ये कहानी है एक ऐसे व्यक्ति की जो ट्रैन से सफर किया करते थे  अपने दफ़्दर ये आते थे और जाते थे और ट्रैन की सफर से कुछ न कुछ  सीखते थे

और घर जा कर के dairy  में लिखते थे की आज मैंने ट्रैन की सफर में ये सीखा रोजाना का ये उनका रूटीन था

एक दिन वो अपने ऑफिस के लिए निखले ट्रैन में जा कर के बैठे ट्रैन रवाना हुए उनके  ठीक सामने वाली सीट पे एक फॅमिली बैठी हुई थी बच्चे खिल खिला रहे थे बाते वाते चल रही थी,

तभी वहा से एक पानी बेचने वाला लड़का निकला  पानी बेचते हुए लड़का निकल   रहा था ज़ोर ज़ोर से आवाजे दे रहा था इनके सामने वाली सीट पे जो फॅमिली बैठी हुई थी

उसमे एक भाई साहब थे उन्हों पूछा बेटा पानी की बॉटल कितने की दी तो उस लड़के ने बोला भैया 20 rs की बोतल है तो इन्होने बोला की ये 15  की बोतल दो ये 20 rs में क्या बेच रहे हो 15rs में दो

तो बताओ वो जो पानी बेच रहा था लड़का वो सिर्फ मुस्कुराया कुछ नहीं बोला चुप चाप आगे बढ़ गया ये जो भाई साहब सामने की सीट पे बैठे हुए थे

जो की रोजाना लिखते थे की आज क्या सीखा इनको लगा अंदर से  जिज्ञासा हुई  भाई क्या मतब आज सीखा है ? ये फटा फट उस लड़के के पीछे गए की

ये आज मुझे ये कुछ बढ़िया सा सिख दे देगा की क्या करना चाहिए लाइफ में मुस्कुरा के  कैसे चलागया ज़िद बहस नहीं की। 

वो उस लड़के के पीछे पीछे निकल लिए वो लड़का इस कोच से दूसरे कोच आगे बढ़ चूका था पानी बेचते बेचते उसे जा कर के रोका और पूछा भाई एक बात बताओ मैं  तुमसे कुछ पूछना चाह  रहा हु तुम अभी मेरे कोच में थे वहा पे एक फॅमिली थी

याद आया ये बाँदा तुमसे बोल रहा था की 15  की बोतल दो 20 की क्यों दे रहे हो तुमने कुछ नहीं  बोला उसे तुम चुप चाप आगे बढ़ गए मतलब ऐसा क्यों तुम्हे गुसा नहीं आया की कहा 2 – 5 रूपये के लिए ज़िद कर रहा है

एक गरीब आदमी  से तुम कुछ तो बोलते फिर उस लड़के ने कहा वो जो भाई साहब बैठे हुए थे

उनको पानी पीना ही नहीं था उनको प्यास ही नहीं लगी थी तो ये जो बांदा था जो रोज लिखता था उसने पूछा अरे तुम्हे कैसे पता चल गया की उनको प्यास नहीं लगी थी

तुम क्या अंतर यामी हो तुम्हे पता चल गया की उन्हें पानी नहीं पीनी है हो सकता है की उनको प्यास लगी हो,

तो फिर से लड़के ने बोला  उन्हें प्यास नहीं लगी है जिसको प्यास लगी रहती है वो पहले  पानी की बोतल लेता है उसको पिता  है  उसके बाद में दाम  पूछता है  और पैसे दे देता है वो फालतू की ज़िद बहस नहीं करता है। 

उस लड़के ने जब ये  जवाब दिया तो उन्होंने उसे सुना और घर जा कर के dairy में बहुत कुछ लिख डाला इन्होने लिखा ज़िन्दगी में अगर हमने गोल बना लिया है अगर हमारे  माइंड में बात  फिक्स है

तो हम फालतू के वाद  विवाद में नहीं पड़ेगे लेकिन हमारा गोल फिक्स नहीं है अगर हमें पता ही नहीं है की हमें क्या करना है

तो हम बहुत साडी कमिया उस गोल में ज़िन्दगी के गाल में भी निकालते रहेंगे और बस इसी चाकर में टाइम खत्म कर देंगे।  खास कर के जो  भी स्टूडेंट्स इस कहानी को बढ़ रहें है

मैं उनको बोलना चाहता हुं की अपने गोल को फिक्स कीजिये क्यों की अगर आपके माइंड में फिक्स नहीं होगा की आपको क्या करना है

तो आप वो तीन चार ऑप्शंस में उलझ कर के रह जाएंगे  साल पर साल निकलते चले जाएंगे और उसके बाद में आपको महसूस होगा की क्या टाइम तो तब था

तब तो कुछ क्या ही नहीं लाइफ में अपने गोल को फिक्स कीजिये और फिर  वाद विवाद में परने वाली बात आएगी ही नहीं।

मैं सबसे तेज दौड़ना चाहती हूँ !(Real life inspirational stories of success)

विल्मा रुडोल्फ का जन्म टेनिसी के एक गरीब परिवार में हुआ था. चार साल की उम्र में उन्हें लाल बुखार के साथ डबल निमोनिया हो गया जिस वजह से वह पोलियो से ग्रसित हो गयीं. उन्हें पैरों में ब्रेस पहनने पड़ते थे और डॉक्टरों के अनुसार अब वो कभी भी चल नहीं सकती थीं।

लेकिन उनकी माँ हमेशा उनको प्रोत्साहित करती रहतीं और कहती कि भगवान् की दी हुई योग्यता ,दृढ़ता और विश्वास से वो कुछ भी कर सकती हैं।

विल्मा बोलीं , ” मैं इस दुनिया कि सबसे तेज दौड़ने वाली महिला बनना चाहती हूँ .”

डॉक्टरों की सलाह के विरूद्ध 9 साल की उम्र में उन्होंने ने अपने ब्रेस उतार फेंकें और अपना पहला कदम आगे बढाया जिसे डोक्टरों ने ही नामुमकिन बताया था . 13 साल की उम्र में उन्होंने पहली बार रेस में हिस्सा लिया और बहुत बड़े अन्तर से आखिरी स्थान पर आयीं।

और उसके बाद वे अपनी दूसरीतीसरीऔर चौथी रेस में दौड़ीं और आखिरी आती रहीं पर उन्होंने हार नहीं मानी वो दौड़ती रहीं और फिर एक दिन ऐसा आया कि वो रेस में फर्स्ट आ गयीं.  15  साल की उम्र में उन्होंने टेनिसी स्टेट यूनिवर्सिटी में दाखिल ले लिया जहाँ उनकी मुलाकात एक कोच से हुई जिनका नाम एड टेम्पल था .

उन्होंने ने कोच से कहा , ” मैं इस दुनिया की सबसे तेज धाविका बनना चाहती हूँ.”

टेम्पल ने कहा ,” तुम्हारे अन्दर जिस तरह का जज़्बा हैं तुम्हे कोई रोक नहीं सकता और उसके आलावा मैं भी तुम्हारी मदद करुगा.”

देखते-देखते वो दिन आ गया जब विल्मा ओलंपिक्स में पहुँच गयीं  जहाँ अच्छे से अच्छे एथलीटों के साथ उनका मुकाबला होना था जिसमे कभी न हारने वाली युटा हीन भी शामिल थीं. पहले 100मीटर रेस हुई विल्मा ने युटा को हराकर गोल्ड मैडल जीताफिर 200 मीटर का मुकाबला हुआइसमें भी विल्माने युटा को पीछे छोड़ दिया और अपना दूसरा गोल्ड मैडल जीत गयीं।

तीसरा इवेंट 400मीटर रिले रेस थी जिसमे अक्सर सबसे तेज दौड़ने  वाला व्यक्ति अंत में दौड़ता है . विल्मा और युटा भी अपनी-अपनी टीम्स में आखिरी में दौड़ रही थीं. रेस शुरू हुई पहली तीन एथलीट्स ने आसानी से बेटन बदल लीं पर जब विल्मा की बारी आई तो थोड़ी गड़बड़ हो गयी और बेटन गिरते-गिरते बची इस बीच युटा आगे निकल गयी विल्मा ने बिना देरी किये अपनी स्पीड बढ़ाई  और मशीन की तरह दौड़ते हुए आगे निकल गयीं और युटा को हराते हुए अपना तीसरा गोल्ड मैडल जीत गयीं।

यह इतिहास बन गया : कभी पोलियो से ग्रस्त रही महिला आज दुनिया की सबसे तेज धाविका बन चुकी थी।

भगवान पर भरोसा (सफलता motivational story in hindi)

पढ़ने में 10 मिनट तो लग सकते है, किन्तु मन प्रसन्न हो जाएगा 🙏🏻

एक पुरानी सी इमारत में था वैद्यजी का मकान था। पिछले हिस्से में रहते थे और अगले हिस्से में दवाख़ाना खोल रखा था। उनकी पत्नी की आदत थी कि दवाख़ाना खोलने से पहले उस दिन के लिए आवश्यक सामान एक चिठ्ठी में लिख कर दे देती थी। वैद्यजी गद्दी पर बैठकर पहले भगवान का नाम लेते फिर वह चिठ्ठी खोलते। पत्नी ने जो बातें लिखी होतीं, उनके भाव देखते , फिर उनका हिसाब करते। फिर परमात्मा से प्रार्थना करते कि हे भगवान ! मैं केवल तेरे ही आदेश के अनुसार तेरी भक्ति छोड़कर यहाँ दुनियादारी के चक्कर में आ बैठा हूँ। वैद्यजी कभी अपने मुँह से किसी रोगी से फ़ीस नहीं माँगते थे। कोई देता था, कोई नहीं देता था किन्तु एक बात निश्चित थी कि ज्यों ही उस दिन के आवश्यक सामान ख़रीदने योग्य पैसे पूरे हो जाते थे, उसके बाद वह किसी से भी दवा के पैसे नहीं लेते थे चाहे रोगी कितना ही धनवान क्यों न हो।

एक दिन वैद्यजी ने दवाख़ाना खोला। गद्दी पर बैठकर परमात्मा का स्मरण करके पैसे का हिसाब लगाने के लिए आवश्यक सामान वाली चिट्ठी खोली तो वह चिठ्ठी को एकटक देखते ही रह गए। एक बार तो उनका मन भटक गया। उन्हें अपनी आँखों के सामने तारे चमकते हुए नज़र आए किन्तु शीघ्र ही उन्होंने अपनी तंत्रिकाओं पर नियंत्रण पा लिया। आटे-दाल-चावल आदि के बाद पत्नी ने लिखा था, *”बेटी का विवाह 20 तारीख़ को है, उसके दहेज का सामान।”* कुछ देर सोचते रहे फिर बाकी चीजों की क़ीमत लिखने के बाद दहेज के सामने लिखा, ” *यह काम परमात्मा का है, परमात्मा जाने।*”

एक-दो रोगी आए थे। उन्हें वैद्यजी दवाई दे रहे थे। इसी दौरान एक बड़ी सी कार उनके दवाखाने के सामने आकर रुकी। वैद्यजी ने कोई खास तवज्जो नहीं दी क्योंकि कई कारों वाले उनके पास आते रहते थे। दोनों मरीज दवाई लेकर चले गए। वह सूटेड-बूटेड साहब कार से बाहर निकले और नमस्ते करके बेंच पर बैठ गए। वैद्यजी ने कहा कि अगर आपको अपने लिए दवा लेनी है तो इधर स्टूल पर आएँ ताकि आपकी नाड़ी देख लूँ और अगर किसी रोगी की दवाई लेकर जाना है तो बीमारी की स्थिति का वर्णन करें।

वह साहब कहने लगे “वैद्यजी! आपने मुझे पहचाना नहीं। मेरा नाम कृष्णलाल है लेकिन आप मुझे पहचान भी कैसे सकते हैं? क्योंकि मैं 15-16 साल बाद आपके दवाखाने पर आया हूँ। आप को पिछली मुलाकात का हाल सुनाता हूँ, फिर आपको सारी बात याद आ जाएगी। जब मैं पहली बार यहाँ आया था तो मैं खुद नहीं आया था अपितु ईश्वर मुझे आप के पास ले आया था क्योंकि ईश्वर ने मुझ पर कृपा की थी और वह मेरा घर आबाद करना चाहता था। हुआ इस तरह था कि मैं कार से अपने पैतृक घर जा रहा था। बिल्कुल आपके दवाखाने के सामने हमारी कार पंक्चर हो गई। ड्राईवर कार का पहिया उतार कर पंक्चर लगवाने चला गया। आपने देखा कि गर्मी में मैं कार के पास खड़ा था तो आप मेरे पास आए और दवाखाने की ओर इशारा किया और कहा कि इधर आकर कुर्सी पर बैठ जाएँ। अंधा क्या चाहे दो आँखें और कुर्सी पर आकर बैठ गया। ड्राइवर ने कुछ ज्यादा ही देर लगा दी थी।

एक छोटी-सी बच्ची भी यहाँ आपकी मेज़ के पास खड़ी थी और बार-बार कह रही थी, ” चलो न बाबा, मुझे भूख लगी है। आप उससे कह रहे थे कि बेटी थोड़ा धीरज धरो, चलते हैं। मैं यह सोच कर कि इतनी देर से आप के पास बैठा था और मेरे ही कारण आप खाना खाने भी नहीं जा रहे थे। मुझे कोई दवाई खरीद लेनी चाहिए ताकि आप मेरे बैठने का भार महसूस न करें। मैंने कहा वैद्यजी मैं पिछले 5-6 साल से इंग्लैंड में रहकर कारोबार कर रहा हूँ। इंग्लैंड जाने से पहले मेरी शादी हो गई थी लेकिन अब तक बच्चे के सुख से वंचित हूँ। यहाँ भी इलाज कराया और वहाँ इंग्लैंड में भी लेकिन किस्मत ने निराशा के सिवा और कुछ नहीं दिया।” Positive Thinking Story In Hindi

आपने कहा था, “मेरे भाई! भगवान से निराश न होओ। याद रखो कि उसके कोष में किसी चीज़ की कोई कमी नहीं है। आस-औलाद, धन-इज्जत, सुख-दुःख, जीवन-मृत्यु सब कुछ उसी के हाथ में है। यह किसी वैद्य या डॉक्टर के हाथ में नहीं होता और न ही किसी दवा में होता है। जो कुछ होना होता है वह सब भगवान के आदेश से होता है। औलाद देनी है तो उसी ने देनी है। मुझे याद है आप बातें करते जा रहे थे और साथ-साथ पुड़िया भी बनाते जा रहे थे। सभी दवा आपने दो भागों में विभाजित कर दो अलग-अलग लिफ़ाफ़ों में डाली थीं और फिर मुझसे पूछकर आप ने एक लिफ़ाफ़े पर मेरा और दूसरे पर मेरी पत्नी का नाम लिखकर दवा उपयोग करने का तरीका बताया था।

मैंने तब बेदिली से वह दवाई ले ली थी क्योंकि मैं सिर्फ कुछ पैसे आप को देना चाहता था। लेकिन जब दवा लेने के बाद मैंने पैसे पूछे तो आपने कहा था, बस ठीक है। मैंने जोर डाला, तो आपने कहा कि आज का खाता बंद हो गया है। मैंने कहा मुझे आपकी बात समझ नहीं आई। इसी दौरान वहां एक और आदमी आया उसने हमारी चर्चा सुनकर मुझे बताया कि खाता बंद होने का मतलब यह है कि आज के घरेलू खर्च के लिए जितनी राशि वैद्यजी ने भगवान से माँगी थी वह ईश्वर ने उन्हें दे दी है। अधिक पैसे वे नहीं ले सकते। Positive Thinking Story In Hindi

मैं कुछ हैरान हुआ और कुछ दिल में लज्जित भी कि मेरे विचार कितने निम्न थे और यह सरलचित्त वैद्य कितना महान है। मैंने जब घर जा कर पत्नी को औषधि दिखाई और सारी बात बताई तो उसके मुँह से निकला वो इंसान नहीं कोई देवता है और उसकी दी हुई दवा ही हमारे मन की मुराद पूरी करने का कारण बनेंगी। आज मेरे घर में दो फूल खिले हुए हैं। हम दोनों पति-पत्नी हर समय आपके लिए प्रार्थना करते रहते हैं। इतने साल तक कारोबार ने फ़ुरसत ही न दी कि स्वयं आकर आपसे धन्यवाद के दो शब्द ही कह जाता। इतने बरसों बाद आज भारत आया हूँ और कार केवल यहीं रोकी है।

वैद्यजी हमारा सारा परिवार इंग्लैंड में सेटल हो चुका है। केवल मेरी एक विधवा बहन अपनी बेटी के साथ भारत में रहती है। हमारी भान्जी की शादी इस महीने की 21 तारीख को होनी है। न जाने क्यों जब-जब मैं अपनी भान्जी के भात के लिए कोई सामान खरीदता था तो मेरी आँखों के सामने आपकी वह छोटी-सी बेटी भी आ जाती थी और हर सामान मैं दोहरा खरीद लेता था। मैं आपके विचारों को जानता था कि संभवतः आप वह सामान न लें किन्तु मुझे लगता था कि मेरी अपनी सगी भान्जी के साथ जो चेहरा मुझे बार-बार दिख रहा है वह भी मेरी भान्जी ही है। मुझे लगता था कि ईश्वर ने इस भान्जी के विवाह में भी मुझे भात भरने की ज़िम्मेदारी दी है।

वैद्यजी की आँखें आश्चर्य से खुली की खुली रह गईं और बहुत धीमी आवाज़ में बोले, ” कृष्णलाल जी, आप जो कुछ कह रहे हैं मुझे समझ नहीं आ रहा कि ईश्वर की यह क्या माया है। आप मेरी श्रीमती के हाथ की लिखी हुई यह चिठ्ठी देखिये।” और वैद्यजी ने चिट्ठी खोलकर कृष्णलाल जी को पकड़ा दी। वहाँ उपस्थित सभी यह देखकर हैरान रह गए कि ”दहेज का सामान” के सामने लिखा हुआ था ” यह काम परमात्मा का है, परमात्मा जाने।”

काँपती-सी आवाज़ में वैद्यजी बोले, “कृष्णलाल जी, विश्वास कीजिये कि आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ कि पत्नी ने चिठ्ठी पर आवश्यकता लिखी हो और भगवान ने उसी दिन उसकी व्यवस्था न कर दी हो। आपकी बातें सुनकर तो लगता है कि भगवान को पता होता है कि किस दिन मेरी श्रीमती क्या लिखने वाली हैं अन्यथा आपसे इतने दिन पहले ही सामान ख़रीदना आरम्भ न करवा दिया होता परमात्मा ने। वाह भगवान वाह! तू महान है तू दयावान है। मैं हैरान हूँ कि वह कैसे अपने रंग दिखाता है।”

वैद्यजी ने आगे कहा,सँभाला है, एक ही पाठ पढ़ा है कि सुबह परमात्मा का आभार करो, शाम को अच्छा दिन गुज़रने का आभार करो, खाते समय उसका आभार करो, सोते समय उसका आभार करो।

शिकंजी का स्वाद (शार्ट मोटिवेशनल स्टोरी इन हिंदी विथ मोरल)

एक प्रोफ़ेसर क्लास ले रहे थे. क्लास के सभी छात्र बड़ी ही रूचि से उनके लेक्चर को सुन रहे थे. उनके पूछे गये सवालों के जवाब दे रहे थे. लेकिन उन छात्रों के बीच कक्षा में एक छात्र ऐसा भी था, जो चुपचाप और गुमसुम बैठा हुआ था।

प्रोफ़ेसर ने पहले ही दिन उस छात्र को नोटिस कर लिया, लेकिन कुछ नहीं बोले. लेकिन जब ४-५ दिन तक ऐसा ही चला, तो उन्होंने उस छात्र को क्लास के बाद अपने केबिन में बुलवाया और पूछा, “तुम हर समय उदास रहते हो. क्लास में अकेले और चुपचाप बैठे रहते हो. लेक्चर पर भी ध्यान नहीं देते. क्या बात है? कुछ परेशानी है क्या?”

“सर, वो…..” छात्र कुछ हिचकिचाते हुए बोला, “….मेरे अतीत में कुछ ऐसा हुआ है, जिसकी वजह से मैं परेशान रहता हूँ. समझ नहीं आता क्या करूं?” प्रोफ़ेसर भले व्यक्ति थे. उन्होंने उस छात्र को शाम को अपने घर पर बुलवाया। शाम को जब छात्र प्रोफ़ेसर के घर पहुँचा, तो प्रोफ़ेसर ने उसे अंदर बुलाकर बैठाया. फिर स्वयं किचन में चले गये और शिकंजी बनाने लगे. उन्होंने जानबूझकर शिकंजी में ज्यादा नमक डाल दिया।

फिर किचन से बाहर आकर शिकंजी का गिलास छात्र को देकर कहा, “ये लो, शिकंजी पियो। ”छात्र ने गिलास हाथ में लेकर जैसे ही एक घूंट लिया, अधिक नमक के स्वाद के कारण उसका मुँह अजीब सा बन गया।

यह देख प्रोफ़ेसर ने पूछा, “क्या हुआ? शिकंजी पसंद नहीं आई?” “नहीं सर, ऐसी बात नहीं है. बस शिकंजी में नमक थोड़ा ज्यादा है.” छात्र बोला। “अरे, अब तो ये बेकार हो गया. लाओ गिलास मुझे दो. मैं इसे फेंक देता हूँ.” प्रोफ़ेसर ने छात्र से गिलास लेने के लिए अपना हाथ बढ़ाया।

लेकिन छात्र ने मना करते हुए कहा, “नहीं सर, बस नमक ही तो ज्यादा है. थोड़ी चीनी और मिलायेंगे, तो स्वाद ठीक हो जायेगा।” यह बात सुन प्रोफ़ेसर गंभीर हो गए और बोले, “सही कहा तुमने. अब इसे समझ भी जाओ. ये शिकंजी तुम्हारी जिंदगी है. इसमें घुला अधिक नमक तुम्हारे अतीत के बुरे अनुभव है. जैसे नमक को शिकंजी से बाहर नहीं निकाल सकते, वैसे ही उन बुरे अनुभवों को भी जीवन से अलग नहीं कर सकते।

वे बुरे अनुभव भी जीवन का हिस्सा ही हैं. लेकिन जिस तरह हम चीनी घोलकर शिकंजी का स्वाद बदल सकते हैं. वैसे ही बुरे अनुभवों को भूलने के लिए जीवन में मिठास तो घोलनी पड़ेगी ना. इसलिए मैं चाहता हूँ कि तुम अब अपने जीवन में मिठास घोलो।” प्रोफ़ेसर की बात छात्र समझ गया और उसने निश्चय किया कि अब वह बीती बातों से परेशान नहीं होगा।

सीख: जीवन में अक्सर हम अतीत की बुरी यादों और अनुभवों को याद कर दु:खी होते रहते हैं. इस तरह हम अपने वर्तमान पर ध्यान नहीं दे पाते और कहीं न कहीं अपना भविष्य बिगाड़ लेते हैं. जो हो चुका, उसे सुधारा नहीं जा सकता. लेकिन कम से कम उसे भुलाया तो जा सकता है और उन्हें भुलाने के लिए नई मीठी यादें हमें आज बनानी होगी. जीवन में मीठे और ख़ुशनुमा लम्हों को लाइये, तभी तो जीवन में मिठास आयेगी।

सफलता का गुरु मंत्र – उड़ना है तो गिरना सीख लो (Short Motivational Story in Hindi for Success)

एक चिड़िया का बच्चा जब अपने घोंसले से पहली बार बाहर निकलता है तो उसके पंखों में जान नहीं होती। वो उड़ने की कोशिश करता है लेकिन जरा सा उड़कर गिर जाता है। वह फिर से दम भरता है और फिर से उड़ने की कोशिश करता है लेकिन फिर गिरता है।

वो उड़ता है और गिरता है। यही क्रम निरंतर चलता जाता है। एक बार नहीं, दो बार नहीं बल्कि हजारों बार वो गिरता है लेकिन वो उड़ना नहीं छोड़ता और एक समय ऐसा भी आता है जब वो खुले आकाश में आनंद से उड़ता है।

मेरे दोस्त जिंदगी में अगर उड़ना है तो गिरना सीख लो क्योंकि आप गिरोगे, एक बार नहीं बल्कि कई बार। आपको गिरकर फिर उठना है और फिर उड़ना है।

याद करो वो बचपन के दिन, जब बच्चा छोटा होता है तो वो चलने की कोशिश करता है। पहली बार चलता है तो गिरता है, आप भी गिरे होंगे। एक बार नहीं, कई बार, और कई बार तो बच्चों को चोट भी लग जाती है। किसी का दांत टूट जाता है, तो किसी के घुटने में चोट लग जाती है और कई बार तो सर से खून तक निकल आता है, पट्टी बांधनी पड़ती है।

लेकिन वो बच्चा चलना नहीं छोड़ता। सर पे पट्टी बंधी है, चोट लगी है, दर्द भी हुआ है लेकिन माँ की नजर बचते ही वो फिर से चलने की कोशिश करता है। उसे गिरने का डर नहीं है और ना ही किसी चोट का डर है, उसको चलना सीखना है और वो तब तक नहीं मानता जब तक चल ना ले।

सोचो उस बच्चे में कितनी हिम्मत है, उसके मन में एक लक्ष्य है – “चलना सीखना”। और वो चलना सीख भी जाता है क्योंकि वो कभी गिरने से डरता ही नहीं है।

लेकिन जब यही बच्चा बड़ा हो जाता है, उसके अदंर समझ आ जाती है तो वो डरने लगता है। इंसान जब भी कोई नया काम करने की कोशिश करता है उसके मन में गिरने का डर होता है।

=> स्टूडेंट डरता है कि पहला इंटरव्यू है, नौकरी लगेगी या नहीं लगेगी….
=> बिजनेसमैन डरता है कि नया बिजनिस कर तो लिया लेकिन चलेगा या नहीं चलेगा….
=> क्रिकेटर सोचता है कि मेरा पहला मैच है रन बना पाउँगा या नहीं बना पाउँगा…

अरे नादान मानव, तुमसे ज्यादा साहसी तो वो बच्चा है जो हजार बार गिरकर भी गिरने से नहीं डरता। सर से खून भी आ जाये तो भी नन्हें कदम फिर से चलने की कोशिश करते हैं। और एक तुम तो हो, थोड़े समझदार क्या हुए, तुम तो नासमझ हो गए।

दुनिया में कोई भी इंसान इतनी आसानी से सफल नहीं होता, ठोकरें खानी पड़ती हैं। अब ठोकरों से डरोगे तो कभी सफल नहीं हो पाओगे। राह में चाहे जितनी ठोकरें आयें आप अपने लक्ष्य को मत छोड़ो। ये ठोकरें तो आपकी परीक्षा लेती हैं, आपके कदम को मजबूत बनाती हैं ताकि जिंदगी में फिर कभी ठोकर ना खानी पड़े।

अवसर की पहचान (सफलता की प्रेरक कहानी)

एक बार एक ग्राहक चित्रो की दुकान पर गया । उसने वहाँ पर अजीब से चित्र देखे । पहले चित्र मे चेहरा पूरी तरह बालो से ढँका हुआ था और पैरोँ मे पंख थे ।एक दूसरे चित्र मे सिर पीछे से गंजा था।

ग्राहक ने पूछा – यह चित्र किसका है?

दुकानदार ने कहा – अवसर का ।

ग्राहक ने पूछा – इसका चेहरा बालो से ढका क्यो है?

दुकानदार ने कहा -क्योंकि अक्सर जब अवसर आता है तो मनुष्य उसे पहचानता नही है ।

ग्राहक ने पूछा – और इसके पैरो मे पंख क्यो है?

दुकानदार ने कहा – वह इसलिये कि यह तुरंत वापस भाग जाता है, यदि इसका उपयोग न हो तो यह तुरंत उड़ जाता है ।

ग्राहक ने पूछा – और यह दूसरे चित्र मे पीछे से गंजा सिर किसका है?

दुकानदार ने कहा- यह भी अवसर का है । यदि अवसर को सामने से ही बालो से पकड़ लेँगे तो वह आपका है ।अगर आपने उसे थोड़ी देरी से पकड़ने की कोशिश की तो पीछे का गंजा सिर हाथ आयेगा और वो फिसलकर निकल जायेगा । वह ग्राहक इन चित्रो का रहस्य जानकर हैरान था पर अब वह बात समझ चुका था।

दोस्तो,

आपने कई बार दूसरो को ये कहते हुए सुना होगा या खुद भी कहा होगा कि ‘हमे अवसर ही नही मिला’ लेकिन ये अपनी जिम्मेदारी से भागने और अपनी गलती को छुपाने का बस एक बहाना है । Real मे भगवान ने हमे ढेरो अवसरो के बीच जन्म दिया है । अवसर हमेशा हमारे सामने से आते जाते रहते है पर हम उसे पहचान नही पाते या पहचानने मे देर कर देते है । और कई बार हम सिर्फ इसलिये चूक जाते है क्योकि हम बड़े अवसर के ताक मे रहते हैं । पर अवसर बड़ा या छोटा नही होता है । हमे हर अवसर का भरपूर उपयोग करना चाहिये।

दो माली (बच्चों के लिए प्रेरक कहानियां)

यह एक ऐसी कहानी है जो बच्चे और माता–पिता दोनों को ही एक अच्छी सीख दे सकता है। बच्चे बहुत कोमल व संवेदनशील होते हैं, और कई बार आप एक अभिभावक के रूप में यह तय नहीं कर पाते हैं कि स्वतंत्रता की रेखा कहाँ खींचनी चाहिए।

यहाँ एक कहानी है जो बताती है उन चुनौतियों के बारे में जब आप किसी काम को खुद से करने की चेष्ठा करते हैं।

एक बार, दो पड़ोसी थे, जिनके पास अपना–अपना बागान था और वे उनमें पौधे उगाते थे। उनमें से एक पड़ोसी बहुत सख्त था और अपने पौधों की जरुरत से ज्यादा देखभाल करता था। दूसरा पड़ोसी, उतना ही करता था जितने की आवश्यकता थी, लेकिन वह अपने पौधे की पत्तियों को अपने मन–मर्जी दिशा के बढ़ने देता था।

एक शाम, बहुत बड़ा तूफान आया, जिसमें भारी बारिश हुई। तूफान ने कई पौधों को नष्ट कर दिया।

अगली सुबह, जब सख्त पड़ोसी उठा, तो उसने पाया कि उसके सारे पौधे उखड़ गए और बर्बाद हो गए। वहीं, जब दूसरा पड़ोसी उठा, तो उसने पाया कि उसके पौधे अभी भी मिट्टी में मजबूती से लगे हुए हैं, इतने तूफान के बावजूद।

रिलैक्स पड़ोसी का पौधा खुद ही चीजें करना सीख गया था। इसलिए, इसने अपना काम किया, गहरी जड़ें उगाईं, और मिट्टी में अपने लिए जगह बनाई। इस प्रकार, यह तूफान में भी मजबूती से खड़ा रहा। जबकि, उस सख्त पड़ोसी ने अपने पौधों का जरुरत से ज्यादा खयाल रखा था, लेकिन शायद वह भूल गया सिखाना कि बुरे समय में खुद का खयाल कैसे रखते हैं।

कहानी से सीख: अभी या बाद में, आपको खुद से ही सबकुछ करना होगा। जब तक माता–पिता अत्यधिक सख्त होना बंद नहीं करते, तब तक कुछ भी अपने आप काम नहीं करेगा।

गुजरा हुआ वक्त दोबारा नही आता : सफलता की कहानियाँ

एक नगर में एक बहुत ही अमीर आदमी रहता था, उस आदमी ने अपना सारा जीवन पैसे कमाने में लगा दिया, उसके पास इतना धन था, कि वह उस नगर को भी ख़रीद सकता था, लेकिन उसने अपने संपूर्ण जीवन भर में कभी किसी की मदद तक नही की।

इतना धन होने के बावजूद, उसने अपने लिए भी उस धन का उपयोग नही किया, न कभी अपनी पसंद के कपड़े, भोजन, एवं अन्य इच्छा की पूर्ति तक नही की। वह केवल अपने जीवन में पैसे कमाने में व्यस्त रहा, वह इतना व्यस्त एवं मस्त हो गया पैसा कमाने में उसे उसके बुढ़ापे का भी पता नही चला, और वह जीवन के आख़िरी पड़ाव पर पहुँच गया।

इस तरह उसके जीवन का अंतिम दिन भी नज़दीक आ गया और यमराज उसके प्राण लेने धरती पर आये, जिसे देख कर वह आदमी डर गया, यमराज ने कहा, “अब तेरे जीवन का अंतिम समय आ गया है, और मै तुझे अपने साथ ले जाने आया हूँ।”

सुनकर वह आदमी बोला – “प्रभु अभी तक तो मैंने अपना जीवन जिया भी नही, मै तो अभी तक आपने काम में व्यस्त था”, अतः मुझे अपनी कमाई हुई धन दौलत का उपयोग करने के लिए समय चाहिए।

यमराज ने उत्तर दिया – “मैं तुम्हें और समय नही दे सकता, तुम्हारे जीवन के दिन समाप्त हो गये है, और अब दिनों को और नही बढाया जा सकता”।

यमराज की यह बात सुनकर उस आदमी ने कहा- “प्रभु मेरे पास इतना पैसा है, आप चाहो तो आधा धन लेकर मुझे जीवन का एक और बर्ष दे दीजिये”।

प्रतियुत्त्तर में यमराज ने कहा ऐसा संभव नही। इस पर आदमी ने कहा – “आप चाहो, तो मेरा 90 प्रतिशत धन लेकर मुझे 1 महीने का समय ही दे दीजिए।”

यमराज ने फिर मना कर दिया।फिर आदमी ने कहा- “आप मेरा सारा धन लेकर 1 ही घंटा दे दीजिये”। तब यमराज ने उसको समझाया – बीते हुए समय को धन से दोबारा प्राप्त नही किया जा सकता।

इस प्रकार जिस आदमी को अपने धन पर अभिमान था, उसे वह सब व्यर्थ लगने लगा, क्योंकि उसने अपना संपूर्ण जीवन उस व्यर्थ चीज को कमाने में लगा दिया, जो आज उसे जिंदगी का 1 घंटा भी ख़रीद के नही दे पाई। दुखी मन से वह अपनी मौत के लिए तैयार हो गया।

कहानी से शिक्षा

तो दोस्तों, आपने देखा की जिस आदमी ने अपना संपूर्ण जीवन जिसको कमाने में लगा दिया, वही चीज उसके लिए एक सेकंड का समय भी नही ख़रीद पाई। जीवन भगवान द्वारा दिया गया वहुमुल्य उपहारों में से एक है, जिसको पैसे से प्राप्त नही किया जा सकता। इसलिए जीवन के हर पल का आनंद लीजिये एवं उसको एन्जॉय करिए। कहा गया है जीवन बहुत अमूल्य है, इसको व्यर्थ ना जाने दे, हर पल को ख़ुशी के साथ जिए तभी आप अपने जीवन से खुश हो सकते है।  

लक्ष्य पर ध्यान (स्वामी विवेकानंद की प्रेरक कहानी)

यह उन दिनों की बात है जब स्वामी विवेकानंद अमेरिका में थे। एक दिन वो सैर के लिए निकले और घूमते-घूमते एक पुल के पास पहुंचे। तभी उनकी नजर पुल पर खड़े बच्चों पर गई। सभी बच्चे बंदूक से पुल के नीचे बहती बड़ी-सी नदी में तैर रहे अंडों के छिलकों पर निशाना लगाने की लगातार कोशिश कर रहे थे। कई कोशिशों के बाद भी वो एक बार भी अंडे के छिलके पर सही निशाना नहीं लगा पाए।

यह देखकर स्वामी विवेकानंद बड़े हैरान हुए। उनके मन में हुआ कि मुझे भी एक बार कोशिश करनी चाहिए। उन्होंने बच्चों से बंदूक मांगी और खुद निशाना लगाने लगे। स्वामी ने बंदूक तानी और अंडे के छिलके पर पहली बार में ही निशाना लगा लिया। पहला निशाना सही लगने के बाद उन्होंने एक के बाद एक कई सारे अंडे के छिलकों पर सही निशाना लगाया।

स्वामी के निशाने की कला को देखकर बच्चे हैरान रह गए। बच्चों ने स्वामी से पूछा कि आखिर वो कैसे एक के बाद एक सही निशाना लगा रहे हैं। आगे बच्चों ने कहा कि वो बहुत देर से उन छिलकों पर निशाना लगाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है। हमें भी बताइए सही तरीके से निशाना लगाने के लिए क्या करना चाहिए।

स्वामी विवेकानंद ने बच्चों को जवाब देते हुए कहा कि इस दुनिया में ऐसा कोई काम नहीं है, जो किया नहीं जा सकता। दुनिया में कोई भी काम असंभव नहीं है। बस अपना सारा ध्यान उस काम की तरफ लगाओ, जिसे तुम्हें करना है या जिसे तुम कर रहे हो। उन्होंने आगे बताया कि अगर निशाना लगाते वक्त तुम्हारा सारा ध्यान अंडे के छिलके पर होता, तो तुम निशाना ठीक तरीके से लगा पाते।

कहानी से सीख : लक्ष्य को पूरा करने की चाहत रखने वाले को हमेशा पूरा ध्यान उस लक्ष्य पर ही रखना चाहिए। ऐसा करने से लक्ष्य चूकता नहीं है।

हमेशा सीखते रहो (Best Motivational Stories In Hindi)

एक बार गाँव के दो व्यक्तियों ने शहर जाकर पैसे कमाने का निर्णय लिया. शहर जाकर कुछ महीने इधर-उधर छोटा-मोटा काम कर दोनों ने कुछ पैसे जमा किये. फिर उन पैसों से अपना-अपना व्यवसाय प्रारंभ किया. दोनों का व्यवसाय चल पड़ा. दो साल में ही दोनों ने अच्छी ख़ासी तरक्की कर ली.

व्यवसाय को फलता-फूलता देख पहले व्यक्ति ने सोचा कि अब तो मेरे काम चल पड़ा है. अब तो मैं तरक्की की सीढ़ियाँ चढ़ता चला जाऊंगा. लेकिन उसकी सोच के विपरीत व्यापारिक उतार-चढ़ाव के कारण उसे उस साल अत्यधिक घाटा हुआ.

अब तक आसमान में उड़ रहा वह व्यक्ति यथार्थ के धरातल पर आ गिरा. वह उन कारणों को तलाशने लगा, जिनकी वजह से उसका व्यापार बाज़ार की मार नहीं सह पाया. सबने पहले उसने उस दूसरे व्यक्ति के व्यवसाय की स्थिति का पता लगाया, जिसने उसके साथ ही व्यापार आरंभ किया था. वह यह जानकर हैरान रह गया कि इस उतार-चढ़ाव और मंदी के दौर में भी उसका व्यवसाय मुनाफ़े में है. उसने तुरंत उसके पास जाकर इसका कारण जानने का निर्णय लिया.

अगले ही दिन वह दूसरे व्यक्ति के पास पहुँचा. दूसरे व्यक्ति ने उसका खूब आदर-सत्कार किया और उसके आने का कारण पूछा. तब पहला व्यक्ति बोला, “दोस्त! इस वर्ष मेरा व्यवसाय बाज़ार की मार नहीं झेल पाया. बहुत घाटा झेलना पड़ा. तुम भी तो इसी व्यवसाय में हो. त्तुमने ऐसा क्या किया कि इस उतार-चढ़ाव के दौर में भी तुमने मुनाफ़ा कमाया?”

यह बात सुन दूसरा व्यक्ति बोला, “भाई! मैं तो बस सीखता जा रहा हूँ, अपनी गलती से   भी और साथ ही दूसरों की गलतियों से भी. जो समस्या सामने आती है, उसमें से भी सीख लेता हूँ. इसलिए जब दोबारा वैसी समस्या सामने आती है, तो उसका सामना अच्छे से कर पाता हूँ और उसके कारण मुझे नुकसान नहीं उठाना पड़ता. बस ये सीखने की प्रवृत्ति ही है, जो मुझे जीवन में आगे बढ़ाती जा रही है.”

दूसरे व्यक्ति की बात सुनकर पहले व्यक्ति को अपनी भूल का अहसास हुआ. सफ़लता के मद में वो अति-आत्मविश्वास से भर उठा था और सीखना छोड़ दिया था. वह यह प्रण कर वापस लौटा कि कभी सीखना नहीं छोड़ेगा. उसके बाद उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और तरक्की की सीढ़ियाँ चढ़ता चला गया.

सीख: दोस्तों, जीवन में कामयाब होना है, तो इसे पाठशाला मान हर पल सीखते रहिये. यहाँ नित नए परिवर्तन और नए विकास होते रहते हैं. यदि हम स्वयं को सर्वज्ञाता समझने की भूल करेंगे, तो जीवन की दौड़ में पिछड़ जायेंगे. क्योंकि इस दौड़ में जीतता वही है, जो लगातार दौड़ता रहता है. जिसें दौड़ना छोड़ दिया, उसकी हार निश्चित है. इसलिए सीखने की ललक खुद में बनाये रखें, फिर कोई बदलाव, कोई उतार-चढ़ाव आपको आगे बढ़ने से नहीं रोक सकता।

सबसे बड़ा धन –(motivational stories in hindi for success)

काफी समय पहले एक राजा जंगल में शिकार करने गया था। बरसात का मौसम होने के कारन यह अंदाज़ लगाना बहुत मुश्किल हो गया था की कब अचानक बारिश होने। और हुआ भी यही। अचानक आकाश में बादल छा गए और बारिश होने लगा। सूरज डूब गया और धीरे धीरे अँधेरा छाने लगा। अँधेरे में राजा अपने महल का रास्ता भूल गया और अपने सिपाहियों से अलग हो गया। भूख, प्यास और थकावट से राजा काफी परेशान हो रहा था।

कुछ ही देर बाद राजा को सामने तीन बच्चे खेलते हुए नजर आए। तीनों बच्चे काफी अच्छे दोस्त लग रहे थे। उन्हें देखकर राजा ने उन्हें अपने पास बुलाया। राजा ने कहा, “सुनो बच्चो, जरा यहाँ आओ।”

यह सुनकर बच्चे उनके पास आए। राजा ने बच्चो से पूछा, “क्या तुम कही से थोड़ा भोजन और जल ला सकते हो? मैं बहुत भूका हूँ और प्यास भी लग रही है।”

बच्चो ने कहा, “जी जरूर, हम  अभी घर जाकर आपके लिए कुछ ले आते है।”

तीनो बच्चे गांव की ओर भागे। और तुरंत कुछ भोजन और जल लेकर आ गए। राजा बच्चो के उत्साह और प्रेम को देखकर बहुत प्रसन्न हुए। तो राजा ने बच्चो से पूछा, “प्यारे बच्चो तुम लोग जीबन में क्या करना चाहते हो। मैं तुम सब की मदद करना चाहता हूँ।”

यह बात सुनकर बच्चे काफी देर तक सोचते रहे। फिर उनमे से एक बच्चे ने कहा, “मुझे धन चाहिए। मैंने कभी दो वक़्त की रोटी नहीं खाई। कभी अच्छे कपड़े नहीं पहने। इसलिए मुझे केबल धन चाहिए। ताकि मैं अच्छा खाना और अच्छे कपड़े पहन सकूँ।”

इसपर राजा मुस्कुराते हुए बोले, “ठीक है, मैं तुम्हे इतना धन दूंगा की जीवनभर सुखी रहोगे।”

यह सब सुनकर बच्चे के ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा।

दूसरे बच्चे की बारी थी। तो राजा ने उससे भी पूछा, “तुम्हे क्या चाहिए?”

बच्चे ने कहा, “क्या आप मुझे एक बहुत बड़ा बंगला और घोड़ा गाड़ी देंगे।”

इसपर राजा ने कहा, “जरूर, मैं तुम्हे एक आलीशान बांग्ला और घोड़ा गाड़ी दूंगा।”

अब तीसरे बच्चे की बारी थी। तो उसने कहा , ” मुझे न धन चाहिए और न घोडा गाड़ी चाहिए। मुझे आप ऐसा आशिर्बाद दीजे जिससे मैं पढ़लिखकर विद्बान बन सकूँ। और शिक्षा समाम्प्त होने पर मैं अपनी देश का सेवा कर सकूँ।”

तीसरे बच्चे की इच्छा सुनकर राजा उससे काफी प्रभाबित हुए। राजा ने उस बच्चे के लिए उत्तम शिक्षा का प्रबंध किया। वह बच्चा बोहुति मेहनती था। इसलिए दि-रात एक करके वह पढ़ाई करता था। और एक दिन, बहुत बड़ा विद्वान बन गया। और समय आने पर राजा ने उसे अपने राज्य में मंत्री पद पर नियुक्त कर दिया।

एक दिन, राजा को अचानक बर्षो पहले घटी उस घटना की याद आ गई। उन्होंने मंत्री से कहा, कई सालों पहले तुम्हारे साथ जो दो बच्चे थे अब उनका क्या हालचाल है? मैं चाहता हूँ की मैं एक बार फिर तुम तीनों से मिलु। इसलिए तुम कल तुम्हारे दोनों मित्रों को भोजन पर आमंत्रित कर लो। ”

मंत्री ने अपने दोनों मित्रों को सन्देश भिजवा दिया। और अगले दिन, सभी एक साथ राजा के सामने उपस्तिथ हुए।

राजा ने कहा, “आज तुम तीनों को फिरसे एक साथ देखकर मैं बहुत खुश हूँ।”

राजा ने मंत्री के कंधे पर हाथ रखकर कहा, “इनके बारेमे तो मैं जानता हूँ पर तुम दोनों अपने बारेमे बताओं।”

जिस बच्चे ने धन माँगा था वह बहुत दुखी होते हुए बोला,  “राजा साहब, मैंने उस दिन आपसे धन मांगकर बड़ी गलती कि। इतना सारा धन पाकर मैं आलसी बन गया। और बहुत सारा धन बेकार चीजों में खर्च कर दिया। मेरा बहुत सा धन चोरी भी हो गया। और कुछ बर्ष पहले मैं वापस उसी स्तिथि में पहुंच गया जहाँ पर आपने मुझे देखा था। ”

अब बंगला गाड़ी मांगने वाला बच्चा भी रोते हुए बोला, “महाराज, मैं बड़े ठाट से अपने बंगले में रह रहा था। पर बर्षो पहले आई बाढ़ में मेरा सब कुछ बर्बाद हो गया। और मैं भी अपने पहले जैसे स्तिथि में ही पहुंच गया। ”

सबकी बातें सुनने के बाद राजा बोले, “इस बात को अच्छी तरह गांठ बांधलो, धन संपत्ति सदा हमारे पास नहीं रहते। पर ज्ञान जीबनभर मनुष्य के काम आता है। और उसे कोई चुरा भी नहीं सकता। शिक्षा ही मनुष्य को बिद्बान और बड़ा आदमी बनाता है। इसलिए सबसे बड़ा धन ज्ञान और विद्या है। पहले इसे हासिल करो उसके बाद धन अपने आप आ जायेगा।”

आप दूसरों को क्या दे रहे हैं (Motivational Story in Hindi for Students)

एक किसान हमेशा एक बेकरीवाले वाले को एक पौंड मक्खन बेचा करता था। वह किसान हमेशा सुबह के समय उस बेकरी वाले के पास आता और उसे एक पौंड मक्खन दे जाता। एक बार बेकरी वाले ने सोचा कि वह हमेशा उस पर भरोसा करके मक्खन ले लेता है। क्यों न आज मक्खन को तौला जाए?

इससे उसको पता चल सके कि उसे पूरा मक्खन मिल रहा है या नहीं?

जब बेकरीवाले ने मक्खन तौला तो मक्खन का वजन कुछ कम निकला। बेकरीवाले को गुस्सा आया और उसने उस किसान पर केस कर दिया। मामला अदालत तक पहुंच गया। उस किसान को जज के सामने पेश किया गया।

जज ने उस किसान से प्रश्न करना शुरू किया। जज ने पूछा कि वह उस मक्खन को तौलने के लिए बाट का प्रयोग करता है क्या?

किसान ने जवाब दिया “मेरे पास तौलने के लिए बाट तो नहीं है। फिर भी मक्खन तौल लेता हूं”

जज हैरानी से पूछता है “बिना बाट के तुम मक्खन कैसे तौलते हो?

इस जवाब किसान ने दिया कि “वह लम्बे समय से इस बेकरीवाले से एक पौंड ब्रेड का लोफ खरीदता है। हमेशा यह बेकरीवाला उसे देकर जाता है और मैं उतने ही वजन का उसे मक्खन तौल कर दे आता हूं।”

किसान का यह जवाब सुनकर बेकरीवाला हक्का बक्का रह गया।

शिक्षा: इस बेकरीवाले की तरह ही हम भी अपने जीवन में वो ही पाते हैं, जो हम दूसरों के देते हैं। एक बार आप सोचिये आप दूसरों को क्या दे रहे हैं धोखा, दुःख, ईमानदारी, झूठ या फिर वफा।

हर व्यक्ति का महत्व (Motivational Story in Hindi)

एक बार एक विद्यालय में परीक्षा चल रही थी। सभी बच्चे अपनी तरफ से पूरी तैयारी करके आये थे। कक्षा का सबसे ज्यादा पढ़ने वाला और होशियार लड़का अपने पेपर की तैयारी को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त था। उसको सभी प्रश्नों के उत्तर आते थे लेकिन जब उसने अंतिम प्रशन देखा तो वह चिन्तित हो गया।

सबसे अंतिम प्रशन में पूछा गया था कि “विद्यालय में ऐसा कौन व्यक्ति है जो हमेशा सबसे पहले आता है? वह जो भी है, उसका नाम बताइए।”

परीक्षा दे रहे सभी बच्चों के ध्यान में एक महिला आ रही थी। वही महिला जो सबसे पहले स्कूल में आकर स्कूल की साफ सफाई करती। पतली, सावलें रंग की और लम्बे कद की उस महिला की उम्र करीब 50 वर्ष के आसपास थी।

ये चेहरा वहां परीक्षा दे रहे सभी बच्चों के आगे घूम रहा था। लेकिन उस महिला का नाम कोई नहीं जानता था। इस सवाल के जवाब के रूप में कुछ बच्चों ने उसका रंग-रूप लिखा तो कुछ ने इस सवाल को ही छोड़ दिया।

परीक्षा समाप्त हुई और सभी बच्चों ने अपने अध्यापक से सवाल किया कि “इस महिला का हमारी पढ़ाई से क्या सम्बन्ध है।”

इस सवाल का अध्यापक जी ने बहुत ही सुन्दर जवाब दिया “ये सवाल हमने इसलिए पूछा था कि आपको यह अहसास हो जाये कि आपके आसपास ऐसे कई लोग हैं जो महत्वपूर्ण कामों में लगे हुए है और आप उन्हें जानते तक नहीं। इसका मतलब आप जागरूक नहीं है।”

शिक्षा: हमारे आसपास की हर चीज, व्यक्ति का विशेष महत्व होता है, वह खास होता है। किसी को भी नजरअंदाज नहीं करें।

एक लापरवाह लड़के की कहानी (true motivational stories in hindi)

जब भी सूरज पढ़ने के लिए किताबें निकालता तो उसका मन पढ़ाई में नहीं लगता था। किताबे खोलते ही उसे बाहर जाकर अपने दोस्तों के साथ मस्ती करने का मन करता है। उसके माँ ने उसे खेलने के लिए कभी रोका नहीं, सिर्फ इतना समझाता रहता था की खेलने के साथ साथ पड़ना भी जरुरी होता है। पर सूरज का बिगड़ैल मन हमेशा उल्टा ही करता था।

जब उसके सभी साथी स्कूल से आकर थोड़ा सुस्ताकर पड़ने बैठ जाते और शाम को खेलने निकलते, वही सूरज स्कूल से आकर टीवी देखने लग जाता और शाम होते ही खेलने निकल जाता। पढ़ाई पर मन न लगने की वजह से क्लास की परीक्षा में बड़ी ही मुश्किल से पास हो पाया। इतने कम नंबर देखकर उसके माँ ने उसे खूब डाटा और पड़ने के लिए जोर देने को कहा। माँ  के डर से सूरज पड़ने तो बैठ जाता पर उसका चंचल मन पढ़ाई में उसका  साथ नहीं देता था।

एक शाम उसकी माँ ने उसे बताया की धोबी अभी तक उसकी स्कूल यूनिफार्म लेकर नहीं आया। और अगर नहीं आया तो अगले दिन वह स्कूल नहीं जा पायेगा। उसके माँ ने उसे बताया की सायद धोबी बीमार पड़ा होगा। माँ ने सूरज को उसकी स्कूल यूनिफार्म लाने के लिए धोबी के घर जाने को कहा।

धोबी का घर पास ही एक बस्ती में था इसलिए सूरज पैदल ही चल पड़ा। उस बस्ती में काफी गरीब लोग रहते थे। उस बस्ती में तो कई घरो में बिजली भी नहीं थी लेकिन सड़को पर बिजली के खंबे लगे थे, जो चारों तरफ रौशनी फैला रहे थे।

जब सूरज धोबी के घर पहुंचा तो देखा की उसकी माँ का कहना सही था। धोबी बीमार पड़ा था इसलिए स्कूल यूनिफार्म लेकर नहीं आ पाया। सूरज ने धोबी से अपनी यूनिफार्म ली और घर की तरफ चल पड़ा। सूरज रास्ते पर चल रहा था की तभी उसकी नजर एक खंबे के निचे बैठे एक लड़के पर पड़ती है, जो किताबे खोलकर पड़ रहा था।

उसकी लगन देखकर सूरज उसके पास गया और उससे कहा, आखिर तुम इतनी रात को सड़क पर बैठकर क्यों पड़ रहे हो?” उस लड़के ने कहा, “दिन भर मैं अपने पिता के साथ घर घर जाकर सब्जी बेचता हूँ। और फिर  पहर के स्कूल में पड़ने जाता हूँ। शाम को घर आकर घर के कामों में माँ का हाथ बटाता हूँ। क्युकी उसका परिवार बिजली का खर्चा नहीं उठा पाता है इसलिए रात का खाना खा कर यही पड़ने बैठ जाता है।”

उसकी बातें सुनकर सूरज को बहुत बुरा लगा और मन ही मन वह रो पड़ा। उसने अपने आप से कहा, “कहाँ मैं दिन भर टीवी देखता और खेलता रहता हूँ, और कहाँ यह जो माँ और अपने पिता के कामो में हाथ बटाने के बाद  भी सड़क पर बैठा पढ़ाई कर रहा है।”  उस लड़के की लगन को देखकर सूरज का सिर शर्म से झुक गया।

उसकी कदम तो घर के तरफ चल रहे थे लेकिन मगर उसका मन वही बैठा हुआ था। घर पहुंचने तक उसने यह थान लिया था की आज से पढ़ाई में पूरा मन लगाकर पढ़ेगा। सूरज के इस फैसले ने मानो उसे पूरी तरह से बदल दिया। सूरज सिर्फ पास ही नहीं हुआ बल्कि अपने स्कूल के बार्षिक परीक्षा में फर्स्ट आया।

अपना हुनर कभी नहीं भूलें (Motivational Story in Hindi)

एक बार एक राजा था। उसके राज्य में सभी अच्छे से चल रहा था। उस राजा ने अपने सैनिकों को बढ़ाने के लिए बहुत मेहनत की थी। तलवारबाजी, खेलकूद और शासन कला ये गुण तो सभी राजाओं में होते ही है लेकिन इस राजा को इसके अलावा एक और भी शौक था। वह था कालीन बुनना।

ये गुण हर किसी राजाओं में नहीं मिलता। राजा के इस काम को बहुत पसंद किया जाता था। लेकिन इसके साथ ही यह भी कहा जाता था कि ये काम एक राजा के लायक का नहीं होता।

एक बार की बात है जब वह राजा अपने सैनिकों के साथ जंगल में शिकार के लिए गया। वहां पर अचानक वह अपने सैनिकों से बिछड़ गया। राजा को अकेला देख वहां के डाकुओं ने उस पर हमला बोल दिया और उसे बंदी बना दिया। राजा के पास से कुछ नहीं मिलने के कारण डाकुओं ने राजा को मारने का निर्णय किया।

इस पर राजा को एक युक्ति सूझी “राजा ने डाकुओं से कहा कि यदि तुम मुझे कालीन बुनने का सामान ला दो तो मैं तुम्हे इस राज्य के राजा से सौ सोने के सिक्के दिलवाऊंगा।”

इस पर डाकू मान गये। राजा को कालीन बुनने का सामान दिया गया। राजा ने कालीन बुनना शुरू किया। जब ये कालीन पूरा बुन दिया तो इसे राजभवन में भेजा गया।

वहां पर रानी इस कालीन को देखकर राजा के काम को पहचान गई और उसमें लिखे राजा के सन्देश को पढ़ लिया। राजभवन में आये डाकुओं को पकड़ लिया गया और राजा को जंगल से छुड़वाया गया।

राजा के अपने हाथों के इस हुनर ने राजा की जान बचा ली।

हीरे की खान (Motivational Short Story in Hindi)

अफ्रीका महाद्वीप में हीरों की कई खानों की खोज हो चुकी थी, जहाँ से बहुतायत में हीरे प्राप्त हुए थे. वहाँ के एक गाँव में रहने वाला किसान अक्सर उन लोगों की कहानियाँ सुना करता था, जिन्होंने हीरों की खान खोजकर अच्छे पैसे कमाये और अमीर बन गए. वह भी हीरे की खान खोजकर अमीर बनना चाहता था.

एक दिन अमीर बनने के सपने को साकार करने के लिए उसने अपना खेत बेच दिया और हीरों की खान की खोज में निकल पड़ा. अफ्रीका के लगभग सभी स्थान छान मारने के बाद भी उसे हीरों का कुछ पता नहीं चला. समय गुजरने के साथ उसका मनोबल गिरने लगा. उसे अपना अमीर बनने का सपना टूटता दिखाई देने लगा. वह इतना हताश हो गया कि उसके जीने की तमन्ना ही समाप्त हो गई और एक दिन उसने नदी में कूदकर अपनी जान दे दी.

इस दौरान दूसरा किसान, जिसने पहले किसान से उसका खेत खरीदा था, एक दिन उसी खेत के मध्य बहती छोटी नदी पर गया. सहसा उसे नदी के पानी में से इंद्रधनुषी प्रकाश फूटता दिखाई पड़ा. उसने ध्यान से देखा, तो पाया कि नदी के किनारे एक पत्थर पर सूर्य की किरणें पड़ने से वह चमक रहा था. किसान ने झुककर वह पत्थर उठा लिया और घर ले आया.

वह एक ख़ूबसूरत पत्थर था. उसने सोचा कि यह सजावट के काम आएगा और उसने उसे घर पर ही सजा लिया. कई दिनों तक वह पत्थर उसके घर पर सजा रहा. एक दिन उसके घर उसका एक मित्र आया. उसने जब वह पत्थर देखा, तो हैरान रह गया.

उसने किसान से पूछा, “मित्र! तुम इस पत्थर ही कीमत की जानते हो?”

किसान ने जवाब दिया, “नहीं.”

“मेरे ख्याल से ये हीरा है. शायद अब तक खोजे गए हीरों में सबसे बड़ा हीरा.” मित्र बोला.

किसान के लिए इस बात पर यकीन करना मुश्किल था. उसने अपने मित्र को बताया कि उसे यह पत्थर अपने खेत की नदी के किनारे मिला है. वहाँ ऐसे और भी पत्थर हो सकते हैं.”

दोनों खेत पहुँचे और वहाँ से कुछ पत्थर नमूने के तौर पर चुन लिए. फिर उन्हें जाँच के लिए भेज दिया. जब जाँच रिपोर्ट आयी, तो किसान के मित्र की बात सच निकली. वे पत्थर हीरे ही थे. उस खेत में हीरों का भंडार था. वह उस समय तक खोजी गई सबसे कीमती हीरे की खदान थी. उसका खदान का नाम ‘किम्बर्ले डायमंड माइन्स’ है. दूसरा किसान उस खदान की वजह से मालामाल हो गया.

पहला किसान अफ्रीका में दर-दर भटका और अंत में जान दे दी. जबकि हीरे की खान उसके अपने खेत में उसके क़दमों तले थी.

सीख: मित्रों, इस कहानी में हीरे पहले किसान के कदमों तले ही थे, लेकिन वह उन्हें पहचान नहीं पाया और उनकी खोज में भटकता रहा. ठीक वैसे ही हम भी सफलता प्राप्ति के लिए अच्छे अवसरों की तलाश में भटकते रहते हैं. हम उन अवसरों को पहचान नहीं पाते या पहचानकर भी महत्व नहीं देते, जो हमारे आस-पास ही छुपे रहते हैं. जीवन में सफ़ल होना है, तो आवश्यकता है बुद्धिमानी और परख से उन अवसरों को पहचानने की और धैर्य से अनवरत कार्य करने की. सफ़लता निश्चित है। (1)

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